आईपीसी में धर्म से सम्बन्धित अपराधों के विषय में प्रावधान :-
परिचय
आईपीसी में धर्म से सम्बन्धित अपराधों के विषय में प्रावधान अध्याय XV में धारा 295, 295A, 296, 297 और 298 के तहत परिभाषित किया गया है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत है जो संविधान की प्रस्तावना के अनुरूप है। भारत के अनुच्छेद 25 से 30 के साथ जिसमें भारत के संविधान का अनुच्छेद 25 धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। इस प्रकार सभी व्यक्ति अपनी पसंद के धर्म को मानने और प्रचार करने के हकदार हैं। राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है और उसे धर्मों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। राज्य को चर्च, मंदिर आदि के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। हालाँकि, यह स्वतंत्रता काफी विशाल है, लेकिन असीमित नहीं है। यह उस विषय में सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है।
इस धारा के अंतर्गत अपराधों को तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
1. पूजा स्थलों की अपवित्रता या पूजा की वस्तु (s 295 और 297)
2. व्यक्तियों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना (295A और 296)
3. धार्मिक सभाओं को परेशान करना। ( 296)
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 295 –
किसी वर्ग के धर्म का अपमान करने के आशय से उपासना के स्थान को क्षति करना या अपवित्र करना-
जो कोई किसी उपासना स्थान को या व्यक्तियों के किसी वर्ग द्वारा पवित्र मानी गई किसी वस्तु को नष्ट, नुकसानग्रस्त या अपवित्र इस आशय से करेगा कि किसी वर्ग के धर्म का तदद्वारा अपमान किया जाए या यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा कि व्यक्तियों का कोई वर्ग ऐसे नाश, नुकसान या अपवित्र किए जाने को अपने धर्म के प्रति अपमान समझेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 295 के आवश्यक तत्व–
इस धारा के अन्तर्गत अपराध गठित करने के लिये निम्नलिखित तत्व आवश्यक हैं :-
(1) (क) किसी उपासना स्थल को, या
(ख) व्यक्तियों के किसी वर्ग द्वारा पवित्र मानी गयी किसी वस्तु को नष्ट करना, क्षतिग्रस्त करना या अपवित्र करना।
(2) ऐसा कार्य –
(क) व्यक्तियों के एक वर्ग के धर्म का अपमान करने के आशय से किया जाय, या
(ख) इस सम्भाव्यता के ज्ञान से किया जाये कि व्यक्तियों का एक वर्ग इसे अपने धर्म का अपमान मानेगा।
1809 में बनारस के एक पवित्र स्थान पर गाय के वध से हिंसक प्रतिक्रियाएं हुईं और कई लोगों की जान चली गई। इस प्रकार यह धारा सभी धर्मों के लोगों की मान्यताओं, प्रथाओं और संस्कृतियों का सम्मान करने के लिए भारत के नागरिकों के बीच गंभीरता पैदा करने के लिए अधिनियमित की गई है। इस धारा के तहत किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने के लिए यह साबित करना महत्वपूर्ण है कि किसी व्यक्ति का इरादा था और नुकसान, अपवित्रता या विनाश हुआ है।
केस- सिवकोटि स्वामी ,1885
अपवित्र करना- इस शब्द का अर्थ केवल ऐसे कार्यों तक सीमित नहीं है जो पूजा के लिये उपयुक्त किसी वस्तु को भौतिक वस्तुओं की तरह गन्दा करते हैं। अपितु इसका विस्तार उन कार्यों तक है जो पूजा के लिये उपयुक्त किसी वस्तु को वस्तुतः अशुद्ध करते हैं।
इसका आशय केवल गन्दा करना नहीं है बल्कि इसका अर्थ है धार्मिक अपदूषण।
केस – शिव शंकर,1940
किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जिसे हिन्दू धर्म के अन्तर्गत साधारणतया जनेऊ धारण करने का अधिकार नहीं है, या हिन्दू धर्म के अन्तर्गत आचार-कर्म हेतु जिसके लिये जनेऊ पहनना अनिवार्य नहीं है, जनेऊ को क्षति पहुँचायी जाती है या नष्ट किया जाता है तो ऐसा कार्य हिन्दू धर्म के अपमान जैसा नहीं है। इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति उच्च वर्गीय हिन्दू दिखने के लिये मात्र जनेऊ धारण करता है तो यह नहीं माना जायेगा कि उसने हिन्दू धर्म का अपमान किया है।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 295-क
विमर्शित और विद्वेषपूर्ण कार्य जो किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आशय से किए गए हों –
जो कोई भारत के नागरिकों के किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के विमर्शित और विद्वेषपूर्ण आशय से उस वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान उच्चारित या लिखित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा, या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
केस – रामजी लाल मोड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
इस मामले में चुनौती दी गई थी, याचिकाकर्ता, मुद्रक और गौरशाक (गौ रक्षक) नामक मासिक पत्रिका के प्रकाशक को निषिद्ध सामग्री छापने के लिए दोषी ठहराया गया था। चुनौती इसलिए थी क्योंकि उन्हें संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (a) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 295A सार्वजनिक व्यवस्था और शांति बनाए रखने के हित में बनाई गई है और यह जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण तरीके से किए जाने पर धर्म के अपमान के गंभीर रूप को दंडित करती है।
केस – सजाता भद्रा बनाम पश्चिम बंगाल राज्य 2006
इस वाद में एक भारतीय नागरिक पैटीशनर ने बांगलादेश की तसलीमा नसरीन द्वारा लिखी पुस्तक द्विखण्डिता (Dwikhandita) के जब्त किये जाने सम्बन्धी आदेश को निरस्त करने हेतु एक पेटीशन दाखिल किया। पुस्तक की आरोपित आपत्तिनजनक सामग्री लेखिका की आत्मकथात्मकय के जिल्द III से सम्बन्धित थी। उसने स्वयं जो एक मस्लिम धर्मावलम्बी महिला थी, आरोपित आपत्तिजनक अंश बंगलादेश द्वारा इस्लाम को राज्य-धर्म की मान्यता देने से उत्पन्न वहां के समाज में मुस्लिम महिलाओं की हैसियत (status) के सम्बन्ध में लिखा था। उसने बंगलादेश का संविधान जिसका पंथनिरपेक्षता एक महत्वपूर्ण लक्षण था, जिससे अब वह विचलित हो गया (deviated) था के सम्बन्ध में पुस्तक में अपना राजनीतिक विचार एवं दर्शन व्यक्त किया था। उक्त पुस्तक के तीसरे वाल्यूम में अपनी मातृभूमि में महिलाओं की दशा के सन्दर्भ में आरोपित लेखांश (passages) लिखे गये हैं। कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया कि पुस्तक में भारत में उस वर्ग के नागरिकों के धर्म अथवा धार्मिक विश्वास सम्बन्धी धार्मिक भावनाओं को आहत करने या चोट पहुंचाने का आशय परिलक्षित नहीं होता है। लेखिका का जानबूझकर का विद्वेषपूर्ण ढंग से किसी प्रकार धार्मिक घृणा फैलाने का आशय नहीं है। पुस्तक को जब्त करने सम्बन्धी आदेश निरस्त कर दिया गया। किसी पुस्तक को भा० द० संहिता की धारा 295-क के दायरे में होना सिद्ध करने के लिये पुस्तक समग्र रूप से पढ़ा जाना चाहिये न कि उसे टुकड़ों में पढ़ा जाये। पुस्तक के आरोपित लेखांश को उसकी केन्द्रीय विषयवस्तु से अलग सन्दर्भ में नहीं पढ़ा जाना चाहिये।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 296
धार्मिक जमाव में विघ्न करना–
जो कोई धार्मिक उपासना या धार्मिक संस्कारों में वैध रूप से लगे हुए किसी जमाव में, स्वेच्छया विघ्न कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, उसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
धारा 296 के आवश्यक अवयव –
-इस धारा में निम्नलिखित अवयव हैं :-
(1) स्वेच्छया कोई विघ्न कारित किया जाये।
(2) विघ्न किसी ऐसे जमाव में कारित किया जाये जो किसी धार्मिक उपासना या धार्मिक संस्कार में लगे हों।
(3) यह जमाव विधितः किसी धार्मिक उपासना या संस्कार में लगा हो। अर्थात् यह जमाव वही कार्य कर रहा हो जिसको करने का उसे अधिकार है।
भारतीय दण्ड संहिता धारा 297
कब्रिस्तानों आदि में अतिचार करना-
जो कोई किसी उपासना स्थान में, या किसी कब्रिस्तान पर या अन्त्येष्टि क्रियाओं के लिए या मृतकों के अवशेषों के लिए निक्षेप स्थान के रूप में पृथक रखे गए किसी स्थान में अतिचार या किसी मानव शव की अवहेलना या अन्त्येष्टि संस्कारों के लिए एकत्रित किन्हीं व्यक्तियों को विघ्न कारित,इस आशय से करेगा कि किसी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुँचाए या किसी व्यक्ति के धर्म का अपमान करे, या यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा कि तद्द्वारा किसी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुँचेगी, या किसी व्यक्ति के धर्म का अपमान होगा,वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
केस – बुरहान शाह , 1887
इस धारा का मूल तत्व उस आशय और ज्ञान में विहित है जिससे प्रेरित होकर कोई व्यक्ति कब्रिस्तान या अन्त्येष्टि क्रिया के लिये मृतकों के अवशेषों के लिये निक्षेप के रूप में रखे गये किसी स्थान में अतिचार या किसी मानव शव की अवहेलना या अन्त्येष्टि संस्कारों के लिये एकत्रित व्यक्तियों को विघ्न कारित करता है, ताकि ऐसे व्यक्तियों की भावनाओं को ठेस पहुँचे या ऐसे व्यक्ति के धर्म का अपमान हो
किसी पूजा-स्थल में अतिचार-इस धारा के अन्तर्गत अतिचार शब्द से तात्पर्य केवल आपराधिक अतिचार से ही नहीं है। अपितु धारा 441 के अन्तर्गत वर्णित आशय से किया गया कोई सामान्य अतिचार भी आता है। यहाँ अतिचार का अर्थ है किसी पूजास्थल में इस धारा में परिभाषित आशय या ज्ञान से कारित कोई विध्वंसक या हानिकारक कार्य एक मामले में कुछ व्यक्तियों को एक मस्जिद के अन्दर सम्भोग करता हुआ पाया गया। उन्हें इस धारा के अन्तर्गत दोषी ठहराया गया।
मानव शव की अवहेलना- यदि किसी व्यक्ति की ऑपरेशन के दौरान मृत्यु हो जाती है, तत्पश्चात् डाक्टर उस मृतक के जिगर को दूसरे रोगी के शरीर में लगाने के लिये निकाल लेता है और वह ऐसा मृतक की पत्नी जो उसकी एक मात्र उत्तराधिकारिणी थी, की सहमति या ज्ञान के बिना ऐसा करता है। मृतक की पत्नी शिकायत दर्ज कराती है। डाक्टर ने मानव शव का अपमान कारित किया इसलिये इस धारा के अन्तर्गत दण्डित किया जायेगा। इसी प्रकार यदि कोई डाक्टर किसी मृतक की आंख बिना सम्बन्धियों की सहमति के निकाल लेता है तो वह भी दोषी होगा।
भारतीय दण्ड संहिता धारा 298
धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के विमर्शित आशय से शब्द उच्चारित करना आदि-
जो कोई किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के विमर्शित आशय से उसकी श्रवणगोचरता में कोई शब्द उच्चारित करेगा या कोई ध्वनि करेगा या उसकी दृष्टिगोचरता में, कोई अंगविक्षेप करेगा, या कोई वस्तु रखेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
केस -शाली भाद्र्शाह,1981
गुजरात उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि धारा 298 ऐसे मौखिक शब्दों से सम्बन्धित है जो किसी व्यक्ति की उपस्थिति में उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के आशय से बोले जाते हैं, इसका सम्बन्ध किसी ऐसे लेख से नहीं है जो किसी साप्ताहिक में प्रकाशित किया गया हो।
केस – रहमान ,1893
गाय के गोश्त को किसी गाँव में बिना ढकी हुई हालत में लेकर जानबूझकर इस आशय से टहलना कि हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं पर आघात पहुँचे, इस धारा के अन्तर्गत अपराध है।
केस – किताब अली बनाम शान्ती रंजन,1965
इस मामले में यह कहा गया कि बकरीद के दिन किसी मसलमान द्वारा गाय की बलि कोई अनिवार्य धार्मिक कृत्य नहीं है और ऐसे कार्य के लिये संविधान के अनच्छेद 25 के संरक्षण का दावा नहीं किया जा सकता है।
केस – मीर चित्तन बनाम सम्राट
इस मामले में इस धारा के तहत आरोपी को जिम्मेदार ठहराया गया क्योंकि उसने हिंदुओं की उपस्थिति में शादी की दावत के लिए एक गाय को मार डाला, यह जानते हुए कि इससे उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचेगी।
निष्कर्ष –
आईपीसी में धर्म से सम्बन्धित अपराधों के विषय पर यह एक बहुत महत्वपूर्ण अध्याय था और आज भी यह उससे भी अधिक है क्यों की यह न्याय प्रणाली की जिम्मेदारी है कि वह अपने नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता को बनाए रखे। भारत में, जहां धार्मिक सहिष्णुता अचानक बदल रही है, इन धाराओं का बना रहना महत्वपूर्ण है, जो हमारे अधिकारों की रक्षा और उन्हें बनाए रखने के लिए तैयार किए गए थे।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
क्या भारत में ईशनिंदा कानून हैं?
भारत भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और अन्य कानूनों में विभिन्न वर्गों में अभद्र भाषा पर प्रतिबंध लगाता है जो भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रतिबंधों का विस्तार करते हैं।
क्या धारा 295A जमानती है?
धारा 295ए के तहत किया गया अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती और गैर-शमनीय अपराध है। गैर-जमानती अपराध का अर्थ है कि गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के तुरंत बाद जमानत पर रिहा होने का अधिकार नहीं होगा
संदर्भ
- भारतीय दंड संहिता, केडी गौर, चौथा संस्करण
- आपराधिक कानून की पाठ्यपुस्तक, ग्लेनविल विलियम्स, चौथा संस्करण,
- भारतीय दण्ड सहिता – प्रो. सूर्यनारायण मिश्र
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