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पेटेंट विनिर्देश क्या है? | patent specification in hindi

पेटेंट विनिर्देश

प्रस्तावना(Introduction) :-

पेटेंट विनिर्देश सुनिश्चित करने की पूरी प्रक्रिया में एक निर्णय विधिक  एवं तकनीकी दस्तावेज होता है आविष्कार की व्याख्या करने के लिए उसका वर्णन महत्वपूर्ण होता है और जिस दस्तावेज द्वारा आविष्कार का वर्णन किया जाता है उसे विनिर्देश कहते हैं |

  • आविष्कार की व्याख्या इसलिए आवश्यक होती है ताकि पेटेंट की अवधि बीत जाने के पश्चात आविष्कार का उपयोग सार्वजनिक रूप से अन्य व्यक्तियों द्वारा किया जा सके|
  • यह पेटेंट के लिए आवेदन का सरवान भाग होता है |पेटेंट तब तक अनुदत्त नहीं किया जाता है जब तक  की पेटेंट के लिए आवेदक अपने आविष्कार को पूर्णत: प्रकट नहीं करता है |
  • विनिर्देश के द्वारा ही आविष्कार की नवीनता और उपयोगिता का निर्धारण किया जाता है |
  • इसमें जब तक आवेदक द्वारा आविष्कार का वर्णन नहीं प्रस्तुत किया जाता है ,अविष्कार को  पेटेंटीकृत नही किया जाता है|
  • विनिर्देश के दो मुख्य भाग होते हैं – (1 )वर्णन या  विवरण = वर्णन के द्वारा आविष्कार को पर्याप्त रूप से प्रकट किया जाता है ताकि यह कुशल व्यक्ति द्वारा उसका अध्ययन करने के बाद उसे संपादित किया जा सके| (2) दावे= दावे के माध्यम से पेटेंट के बारे में एकाधिकार के  क्षेत्र को सुनिश्चित एवं सीमांकित किया जाता है|

 

पेटेंट विनिर्देश की प्रकृति ( Nature of patent specification) :-

  • पेटेंट विनिर्देश आविष्कार का वर्णन मात्र ही नहीं होता है बल्कि एक तकनीकी और विधिक दस्तावेज होता है|
  • पेटेंट अनुदत्त किए जाने से पूर्व नियंत्रक के निर्देश पर परीक्षक द्वारा आविष्कार के नवीन एवं उपयोगी होने के बारे में विनिर्देश की आवश्यक जांच एवं परीक्षा की जाती है और परीक्षक के संतुष्ट होने पर ही आविष्कार के अस्तित्व का निर्धारण होता है कि पेटेंट के लिए आवेदन स्वीकार है अथवा नहीं
  • विनिर्देश का महत्व उस समय स्पष्ट होता है जब किसी व्यक्ति द्वारा विनिर्देश का इस आधार पर विरोध किया जाता है कि विनिर्देश के अंतर्गत आविष्कार का पूर्ण ,पर्याप्त और संतोषप्रद वर्णन नहीं किया गया है|
  • आविष्कार का वर्णन क्रमवार और दावे का प्ररूपण सभी आवश्यक विवरणों के साथ सरल और स्पष्ट भाषा में किया जाना चाहिए और अस्पष्टता से बचना चाहिए|
  • आविष्कार के कार्य पद्धति की स्पष्ट व्याख्या आवश्यक होती है|
  • दावों का निर्धारण एवं प्ररूपण जिस पर एकाधिकार का क्षेत्र निर्भर करता है ,पर्याप्त ज्ञान और सावधानी से होना चाहिए|
  • पूर्ण विनिर्देश में किया गया दावा अनंतिम  विनिर्देश में उल्लिखित दावों पर आधारित होना चाहिए|
  • विनिर्देश की स्वीकृति के आधार पर ही अंततोगत्वा पेटेन्ट अनुदत्त किया जाता है| पेटेन्ट विधि का सर्जन है|विधि द्वारा पेटेंट अधिकारों को स्वीकृति और मान्यता प्रदान की जाती है इसलिए विनिर्देश के आधार पर प्रदत पेटेंट अधिकारों के प्रवर्तन में विधि की शक्ति निहित होती है जो पेटेंट की प्रकृति को विधिक बना देती है|  विनिर्देश अविष्कार की प्रकृति को सुनिश्चित करता है|

 

विनिर्देश के प्रकार :-

पेटेन्ट अधिनियम,1970 की धारा 9 के अंतर्गत वर्णन की पर्याप्तता के आधार पर निम्नलिखित दो  प्रकार के विनिर्देशों का उल्लेख  किया गया है- 1. अनंतिम विनिर्देश|  2.पूर्ण विनिर्देश|

अनंतिम और पूर्ण विनिर्देश (धारा 9) :-

1 . अनंतिम विनिर्देश क्या है ?  :-

अनंतिम विनिर्देश दाखिल करने का मुख्य उद्देश्य पूर्वता  तिथि निश्चित करना होता है जिसके आधार पर नियंत्रक आविष्कार को पेटेंट अनुदत्त करने में प्राथमिकता देता है |जिस तिथि को अनंतिम विनिर्देश नियंत्रक के समक्ष दाखिल किया जाता है, उसे पूर्वता तिथि कहते हैं|

धारा 9 (1) – जहां किसी पेटेंट के लिए किसी आवेदन (जो कोई कन्वेंशन आवेदन है या भारत को अभिहित किए जाने के लिए पेटेंट सहयोग संधि के अधीन फाइल किया गया कोई आवेदन नहीं है) के साथ एक अनंतिम विनिर्देश से लगा हो, वहां एक पूर्ण विनिर्देश आवेदन फाइल करने की तारीख से 12 मास  के भीतर फाइल किया जाएगा और यदि पूर्ण इस प्रकार फाइल नहीं किया जाता है तो आवेदन उस बारे में यह  समझा जाएगा कि उसका परित्याग कर दिया गया है|

परंतु पूर्ण विनिर्देश पूर्वोक्त तारीख  से 12 मास  के पश्चात किंतु उस तारीख से 15 मास के भीतर किसी भी समय किया जा सकेगा यदि नियंत्रक से उस आशय की प्रार्थना की गई है और बिहित फ़ीस पूर्ण विनिर्देश फाइल किए जाने की तारीख को  या उसके पूर्व संदत्त कर दी गई है|

धारा 9(2) जहां उसी आवेदक के नाम से दो या दो  अधिक आवेदनों के साथ ऐसे आविष्कारों की बाबत, जो सजातीय है या जिसमें से एक अन्य आविष्कार का उपांतर है ,अनंतिम विनिर्देश है और नियंत्रक  की यह राय है कि ऐसे समस्त आविष्कार ऐसे है  कि उनसे एकल आविष्कार बनता है और जो उचित रूप से एक ही पेटेंट के अंतर्गत आ सकते हैं वहां वह ऐसे सब अनंतिम विनिर्देशों की बाबत एक ही पूर्ण विनिर्देश फाइल किए जाने की अनुज्ञा दे सकेगा|

परन्तु धारा 9 की उपधारा (1)के अधीन विनिर्दिष्ट कालावधि को सबसे पहले अनंतिम विनिर्देश के फाइल करने की तारीख से गणना में लिया जायेगा|

धारा 9(3)- जहाँ पेटेन्ट के लिए ऐसे आवेदन के साथ (जो कोई कन्वेंशन आवेदन या भारत को अभिहित किए जाने के लिए पेटेंट सहयोग संधि के अधीन फाइल किया गया कोई आवेदन नहीं है) ऐसा विनिर्देश हो जिसका पूर्ण विनिर्देश होना तात्पर्यित है, वहां नियंत्रक यदि आवेदक ऐसे आवेदन को फाइल करने की तारीख से 12 माह  के भीतर किसी समय ऐसा अनुरोध करता है तो यह निर्देश दे सकेगा कि ऐसा विनिर्देश इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए अनंतिम विनिर्देश समझा जाएगा और आवेदन पर तदनुसार आगे कार्यवाही कर सकेगा|

धारा 9(4)- जहां पेटेंट के लिए ऐसे आवेदन के अनुसरण में, जिसके साथ अनंतिम विनिर्देश है या ऐसे विनिर्देश है जो उपधारा (3) के अधीन दिए गए निर्देश के आधार पर अनंतिम विनिर्देश माना गया है, पूर्ण विनिर्देश फाइल कर दिया गया है वहां नियंत्रक यदि आवेदक के पेटेंट अनुदत्त करने से पहले किसी भी समय ऐसी प्रार्थना करता है तो ,अनंतिम विनिर्देश को रद्द कर सकेगा और आवेदन को पूर्ण  विनिर्देश फाइल किए जाने की तारीख से उत्तर दिनांकित कर सकेगा|

2. पूर्ण विनिर्देश क्या है ?(Complete Specification) :-

आविष्कार का पूर्ण और पर्याप्त वर्णन जिसमें वे सभी दावे अंतर्विष्ट  होते हैं ,जिसके बारे में आवेदक एकाधिकार चाहता है, पूर्ण विनिर्देश कहलाता है |पेटेंट अधिनियम 1970 की धारा 10 के अंतर्गत विनिर्देशों की अंतर्वस्तु का उल्लेख किया गया है:-

धारा 10 – (1)  हर विनिर्देश में,चाहे वह अनंतिम  हो या पूर्ण आविष्कार का वर्णन होगा और वह आविष्कार से संबंधित विषय- वस्तु को पर्याप्त रूप से करने वाले शीर्षक से आरंभ होगा |

(2 ) ऐसे किन्ही  नियमों के ,जो इस निमित्त  इस अधिनियम के अधीन बनाए जाएं ,अधीन रहते हुए, किसी विनिर्देश के प्रयोजनों के लिए ,चाहे वह  पूर्ण हो या अनंतिम लेखांकन दिए  जा सकेगे  और यदि नियंत्रक ऐसी अपेक्षा करें तो वे  दिए  जाएंगे और जब तक नियंत्रक अन्यथा निर्देश ना दें इस प्रकार दिए गए लेखांकन , विनिर्देश के भाग  समझे  जाएंगे और इस अधिनियम में विनिर्देश के प्रति निर्देशों का अर्थ तदनुसार लगाया जाएगा |

(3 ) यदि किसी विशिष्ट मामले में नियंत्रक यह समझता है कि आवेदन के साथ किसी ऐसी वस्तु का प्रतिमान या नमूना भी होना चाहिए जो  आविष्कार को चित्रांकित करती है या जिससे आविष्कार का बनना अभिकथित  है तो ऐसा प्रतिमान या  नमूना जिसकी वह अपेक्षा करें किसी आवेदन के किसी पेटेंट को अनुदत्त करने के लिए नियमित पाए जाने से पहले दिया जाएगा किंतु ऐसा प्रतिमान या नमूना विनिर्देश का भाग नहीं समझा जाएगा|

(4) हर पूर्ण विनिर्देश में –

(क) आविष्कार और उसके प्रचलन या उपयोग का और उस ढंग का जिससे उसे क्रियान्वित  किया जाना है ,पूर्णत: और विशिष्ट: वर्णन होगा|

(ख) आविष्कार को क्रियान्वित करने का सर्वोत्तम ढंग  जो आवेदक को ज्ञात है और जिसके लिए वह  संरक्षण का दावा करने का हकदार है, प्रकट किया जाएगा ;तथा

(ग ) अंत में ऐसा दावा या ऐसे दावे होंगे  जिसमें या जिनमें  उस आविष्कार का क्षेत्र परिभाषित  है ,जिसके लिए संरक्षण का दावा किया गया है उसके साथ आविष्कार के बारे में तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए संक्षिप्त सार होगा|

परन्तु –

  • नियंत्रक तीसरे पक्षकार को और अच्छी जानकारी देने के लिए संक्षिप्त सार का संशोधन कर सकेगा;
  • यदि आवेदक विनिर्देश में किसी जैव  पदार्थ का वर्णन करता है जिसे खंड( क) और खंड (ख) का समाधान करने के लिए इस रूप में वर्णित नहीं किया जा सकता है और यदि ऐसा पदार्थ जनता के लिए उपलब्ध नहीं है तो आवेदन को ऐसा पदार्थ बुडापेस्ट संधि के अधीन किसी अंतरराष्ट्रीय निक्षेपागार प्राधिकरण के पास निक्षेपित करके तथा निम्नलिखित शर्तों को पूरा करने के पश्चात पूरा किया जाएगा ,अर्थात

(अ) पदार्थ का निक्षेप भारत में पेटेंट के आवेदन के  फाइल करने की तारीख के पश्चात नहीं किया जाएगा और उसका निर्देश विहित अवधि के भीतर विनिर्देश में किया जाएगा|

(आ)  उसके लिए अपेक्षित उस पदार्थ के उपलब्ध सभी लक्षणों की जिनकी सही रूप से पहचान की जानी है या उन्होंने उपदर्शित  किया जाना है, उपलब्ध सभी विशिष्टयां,विनिर्देश  में सम्मिलित हैं जिनके अंतर्गत निक्षेपागार संस्था  का नाम और पता तथा उस संस्था  के पास पदार्थ के  निक्षेप की तारीख तथा उनकी संख्या भी है|

(इ)  निक्षेपगार संस्था में उक्त  पदार्थ तक पहुंच भारत में पेटेंट के लिए आवेदन की तारीख के पश्चात या यदि पूर्विकता का दावा किया जाता है तो पूर्विकता की तारीख  के पश्चात ही उपलब्ध है;

(ई) विनिर्देशों में जैव  पदार्थ के जब उसका किसी आविष्कार में उपयोग किया गया है, स्रोत और भौगोलिक मूल का  प्रकटन|

4(क)  भारत को अभिहित करने वाले किसी अंतरराष्ट्रीय आवेदन की दशा में आवेदन के साथ फाइल किए गए हक, वर्णन रेखांकन संछिप्तसार और दावे इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए पूर्ण विनिर्देश  समझे जाएंगे|

(5) पूर्ण विनिर्देश का दावा या दावे एकल आविष्कार या उससे जुड़े हुए आविष्कारों के समूह से संबंध होंगे जिससे कल आविष्कारिक  संकल्पना की रचना हो सके, स्पष्ट और संछिप्त होंगे तथा विनिर्देश में प्रकट किए गए विषय पर निष्पक्ष रुप   से आधारित होंगे|

(6) आविष्कार के आविष्कर्ता होने  के बारे में घोषणा ऐसी दशाओं में जो विहित  की जाए, पूर्ण विनिर्देश  के साथ या उस विनिर्देश के फाइल किए जाने के पश्चात उस अवधि के भीतर जो विहित  की जाए, विहितं प्ररूप में दी जाएगी|

(7) इस धारा के पूर्वगामी उपबन्धों के अधीन रहते हुए अनंतिम विनिर्देश के पश्चात फाइल किए गए पूर्ण विनिर्देश में अनंतिम विनिर्देश में वर्णित आविष्कार के ऐसे विकास या परिवर्धनो की बाबत दावे सम्मिलित किए जा सकेंगे जो ऐसे विकास या परिवर्धन हो ,जिनकी बाबत आवेदक पेटेंट के लिए धारा 6 के उपबन्धों के अधीन अलग से आवेदन करने का हकदार होगा |

पूर्विकता तिथियां (priority dates):-धारा 11

पेटेंट अधिनियम ,1970 की धारा 11 के अंतर्गत पूर्ण विनिर्देश के दावों की पूर्विकता तिथियों के बारे में प्रावधान किया गया है| अधिनियम की धारा 11 की उपधारा(1) के अनुसार पूर्ण विनिर्देश के प्रत्येक दावे के लिए एक पूर्विकता तिथि होती है |

पूर्ण विनिर्देश के दावों की पूर्विकता तारीख (धारा 11) :-

धारा11  – (1 ) पूर्ण विनिर्देश के हर एक दावे की एक पूर्विकता तारीख होगी|

(2 )जहां पूर्ण विनिर्देश, ऐसे एकल आवेदन के अनुसरण में जिसके साथ –

  • अंतिम विनिर्देश हैं ,अथवा
  • ऐसा विनिर्देश हैं जिसे धारा (9 ) की उपधारा (3 )के अधीन दिए गए निर्देश के आधार पर अनंतिम विनिर्देश माना जाता है |

फाइल किया जाता है और दावा खंड(क ) या खंड( ख )में निर्दिष्ट विनिर्देश में प्रकट किये गये विषय पर पूर्ण रूप से आधारित है वहां उस दावे की पूर्विकता तारीख सुसंगत विनिर्देश के फ़ाइल् किये जाने की तारीख होगी |

(3 ) जहां ऐसे दो या अधिक आवेदनों के अनुसरण में पूर्ण विनिर्देश फाइल किया जाता है या उस पर कार्यवाही  की जाती है जिनके साथ ऐसे विनिर्देश हैं जो उपधारा(2 )में वर्णित है |और दावा –

(क)  उन विनिर्देशों में से किसी एक में प्रकट किए गए विषय पर पूर्ण रूप से आधारित हैं वहां उस दावे की पूर्विकता  तारीख, उस आवेदन के फाइल किए जाने की तारीख होगी जिसके साथ वह विनिर्देश है;

(ख)  भागत: किसी एक में और भागत: किसी दूसरे में प्रकट किए गए विषय पर पूर्ण रूप से आधारित है वहां उस दावे की  पूर्विकता तारीख उस आवेदन की फाइल किए जाने की तारीख होगी जिसके साथ पश्चातवर्ती तारीख का विनिर्देश है।

3(क)  जहां भारत में पहले फाइल किए गए आवेदन पर आधारित पूर्ण विनिर्देश उस आवेदन की तारीख से 12 माह के भीतर फाइल किया गया है और दावा पहले किए गए आवेदन में प्रकट किए गए विषय पर उचित रूप से आधारित है वहां उस दावे की पूर्विकता की तारीख पहले किए गए आवेदन की वह तारीख होगी जिसमें विषय पहले प्रकट किया गया था।

(4) जहां धारा 16 की उपधारा( 1 )के आधार पर किए गए अतिरिक्त आवेदन के अनुसरण में पूर्ण विनिर्देश फाइल कर दिया गया है और दावा यथास्थिति पूर्ववर्ती अनंतिम या पूर्ण विनिर्देशों में से किसी में प्रकट किए गए विषय पर पूर्ण रूप से आधारित है ,वहां उस दावे की पूर्विकता तारीख उस  विनिर्देश के फ़ाइल् किये जाने की तारीख होगी जिसमें वह विषय प्रथम बार प्रकट किया गया है|

(5) जहां पूर्ण विनिर्देश के किसी दावे की यदि इस उपधारा के उपबन्ध न होते तो इस धारा के पूर्वगामी उपबंधों के अधीन दो या अधिक पूर्विकता तारीखें होती वहां उस दावे की पूर्विकता तारीख वह होगी जो उन तारीखों में से पूर्वोतर या पूर्व तम हो|

(6) ऐसे किसी मामले में जिसे उपधारा (2 ), (3),(3 क ),(4 ) और( 5) लागू नहीं होती, दावे की पूर्विकता तारीख धारा 137 उपबंधों के अधीन रहते हुए ,पूर्ण विनिर्देश के फाइल किए जाने की तारीख होगी|

(7) इस धारा में, आवेदन या पूर्ण विनिर्देश के फाइल करने की तारीख के प्रति निर्देश, उन दशाओं में जिनमें उसकी यथास्थिति धारा 9 या धारा 17 के अधीन उत्तर- दिनांकित किया गया है या धारा 16 के अधीन पूर्व दिनांकित किया गया है उस तारीख के प्रति निर्देश होगा जिस तारीख से उसको इस प्रकार उत्तर दिनांकित या पूर्व – दिनांकित किया गया है|

(8) पेटेंट के पूर्ण विनिर्देश में का कोई दावा –

(क ) किसी अविष्कार का प्रकाशन या उपयोग ऐसे दावे की पूर्विकता तारीख को या उसके पश्चात करने के कारण ही वहां तक जहां तक कि वह उस दावे में दावाकृत है; अथवा

(ख ) उसी या किसी पश्चातवर्ती  पूर्विकता तारीख के दावे में किसी ऐसे अन्य पेटेंट के जो आविष्कार का दावा करता है, अनुदत्त किये  जाने के कारण ही वहां तक जहां तक कि वह प्रथम वर्णित दावे में दावाकृत  है;

अविधिमान्य नही होगा |

विनिर्देश का प्ररुपण (Drafting of Specification) :-

वाद:-  विश्वनाथ प्रसाद राधेश्याम बनाम एच .एम. इंडस्ट्रीज [A.I.R.1982] SC 1444,1449.

इस वाद में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि पूर्ण विनिर्देश में ब्योरेवार अविष्कार की प्रकृति और तरीका, जिसमें उसे संपादित होना है, का वर्णन और अभिनिश्चियन होना चाहिए | विनिर्देश अनंतिम हो अथवा  पूर्ण शीर्षक से आरंभ होना चाहिए और पूर्ण विनिर्देश की दशा में दवाकृत आविष्कार के सुभिन्न कथन से समाप्त होना चाहिए |

विनिर्देशों का संशोधन [Amendment of Specification]:-

  • पेटेंट अधिनियम 1970 की धारा 57 के अंतर्गत पेटेंट के लिए आवेदक द्वारा पेटेंट परिनियमावली,2003 में अंतर्विष्ट प्ररूप -13 में पूर्ण विनिर्देश या [इससे संबंधित किसी दस्तावेज में ]संशोधन के लिए नियंत्रक को आवेदन किया जाता है और नियंत्रक पूर्ण विनिर्देश या इससे संबंधित किसी दस्तावेज में ऐसी शर्तों के अध्ययधीन ,जैसा कि वह उचित समझे, संशोधन की अनुमति प्रदान कर सकता है |

परंतु जब पेटेंट के उल्लंघन के लिए कोई वाद न्यायालय में या पेटेंट के प्रति संहरण के बारे में कोई कार्यवाही उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है तो नियंत्रण विनिर्देश या इससे संबंधित किसी दस्तावेज में संशोधन किए जाने के बारे में कोई आदेश नहीं देता है चाहे  ऐसा वाद या कार्यवाही संशोधन के लिए आवेदन दाखिल करने से पहले या बाद में प्रारंभ की गई हो|

  • पूर्ण विनिर्देश में संशोधन के लिए किए गए आवेदन में उन सभी कारणों का उल्लेख किया जाता है, जिनके लिए संशोधन आवश्यक समझा गया है| पूर्ण विनिर्देश या इससे संबंधित किसी दस्तावेज में संशोधन की इजाजत के लिए आवेदन और प्रस्तावित संशोधन की प्रकृति को प्रकाशित किया जा सकता है |
  • जहां धारा 57 की उपधारा (3 )के अंतर्गत आवेदन में प्रकाशित किया गया है तो आवेदन प्रकाशन के पश्चात कोई हितबद्ध व्यक्ति पेटेंट परिनियमावली,2003 में अंतर्विष्ट प्ररूप -14 में आवेदन के प्रकाशन की तिथि से 3 माह की अवधि के भीतर नियंत्रक को विरोध सूचना दे सकता है और नियंत्रक आवेदक तथा विरोधी पक्षकार की सुनवाई करने के बाद मामले का निर्णय करता है|

पूर्ण विनिर्देश का संशोधन दावे की पूर्वता तिथि का संशोधन हो सकता है या सम्मिलित कर सकता है|

पेटेंट अधिनियम ,1970 की धारा 58 के अनुसार , अपील बोर्ड या उच्च न्यायालय के समक्ष पेटेंट के प्रति संहरण के लिए किसी कार्यवाही में अपील बोर्ड या उच्च न्यायालय जैसी भी स्थिति हो ,पेटेंटी को उसके पूर्ण विनिर्देश में संशोधन के लिए खर्चे ,विज्ञापन आदि से संबंधित ऐसी शर्तों के अधीन जिसे वह उचित समझता है, अनुमति प्रदान कर सकता है और यदि पेटेंट के व प्रतिसंहरण की किसी कार्यवाही में अपील बोर्ड या उच्च न्यायालय पेटेंट का अवैध होना निर्णीत करता है तो पेटेंट का प्रतिसंहरण  करने के वजाय विनिर्देश में संशोधन की अनुमति प्रदान कर सकता है |

  • जहां आवेदक द्वारा अपील बोर्ड या उच्च न्यायालय जैसी भी स्थिति हो, को पूर्ण विनिर्देश में संशोधन अनुमत करने के लिए आदेश पारित करने के लिए आवेदन किया जाता है, तो आवेदक ऐसी आवेदन की सूचना नियंत्रक को देता है और नियंत्रक हाजिरी या सुनवाई किए जाने के लिए अधिकृत होता है और यदि नियंत्रक अपील बोर्ड या उच्च न्यायालय द्वारा हाजिर होने के लिए आदेशित किया जाता है, तो नियंत्रण के समक्ष हाजिर होता है|
  • अपील बोर्ड या उच्च न्यायालय द्वारा विनिर्देश में संशोधन अनुमत  करने से संबंधित सभी आदेशों की प्रतियां नियंत्रक को प्रेषित की जाती हैं और नियंत्रक संशोधन का उल्लेख करते हुए उन्हें रजिस्टर में दर्ज करवाता है |
  • जहां पूर्ण विनिर्देश या इससे संबंधित किसी दस्तावेज में संशोधन की अनुमति प्रदान करता है और यदि नियंत्रत द्वारा अपेक्षा की जाती है तो आवेदक संशोधित विनिर्देश या अन्य दस्तावेज विहित समय के भीतर समुचित कार्यालय को सोंपता है|

समुचित कार्यालय :-

समुचित कार्यालय से पेटेन्ट कार्यालय का समुचित कार्यालय, जो नियम 4 में विनिर्दिष्ट है अभिप्रेतहै | पूर्ण विनिर्देश कीस्वीकृति से पूर्व या पश्चात पूर्ण विनिर्देश में कोई संशोधन निम्न शर्तों के अधीन होता है:-

  • संशोधन दावा त्याग ,सुधार या व्याख्या के रूप में होना चाहिए ;या
  • संशोधन स्पष्ट त्रुटी में सुधार करने के प्रयोजन से किया जाना चाहिए;या
  • यथा संशोधित विनिर्देश में ऐसे किसी विषय के बारे में दावा नहीं किया जाना चाहिए जिसे संशोधन से पूर्व के विनिर्देश में  सरत: प्रकट नहीं किया गया है ;या
  • संशोधित  विनिर्देश का दावा संशोधन से पूर्व के विनिर्देश में किए गए दावे के क्षेत्र के अंतर्गत होना चाहिए |

दावात्याग(Disclaimer):-

  • संशोधन दावात्याग के रूप में होना चाहिए|
  • दावात्याग आवेदक द्वारा किया गया कथन होता है जिसमें वह दावा से इनकार करता है |
  • यह पेटेंटी के एकाधिकार को सीमित करने योग बनाता है|
  • दावात्याग अभिव्यक्त तौर पर किया जाना आवश्यक नहीं है ,यह  विवक्षित रूप में भी किया जा सकता है|

यदि पेटेंट अवैध है तो पेटेंटी प्रतिसंहरण से बचने के लिए विनिर्देश में संशोधन कर सकता है |यह अवैध दावों  को हटाने द्वारा या उसमें  संशोधन द्वारा किया जा सकता है|

  • समुच्यय पेटेंट के मामले में यदि किसी आवश्यक लक्षण को जोड़ा गया है या उप -समुच्यय उत्पादित किया गया है तो उप -समुच्यय तक विनिर्देश के क्षेत्र को जो प्रारंभिक दावे के अंतर्गत है ;संशोधन द्वारा सीमित किया जा सकता है ,जिसे दावात्याग कहते हैं|

सुधार (Correction) :-

सुधार का तात्पर्य किसी त्रुटि या भूल ,जो विनिर्देश को तैयार करने में हुई है,को  शुद्ध करना होता है जिसे संशोधन द्वारा ही किया जा सकता है|

सुधार का अर्थ निर्णय की गलती में सुधार नहीं होता है| यदि विनिर्देश को देखने मात्र से ही भूल प्रकट होता है तो ऐसी स्थिति में यह प्रमाणित करने के लिए साक्ष्य  की आवश्यकता नहीं होती है कि भूल करित की गई है लेकिन यदि भूल ऐसी नहीं है जो देखने मात्र से ही प्रकट हो तो भूल को सिद्ध करने के लिए साक्ष्य आवश्यक हो सकता है |सुधार या संशोधन द्वारा विनिर्देश के क्षेत्र को विस्तृत नहीं किया जा सकता है|

व्याख्या (Explanation) :-

व्याख्या किसी बात या तथ्य  को स्पष्ट एवं सुनिश्चित करने का माध्यम होता है |जब आविष्कारक द्वारा आविष्कार को पेटेंटीकृत कराया जाता है तो विनिर्देश में प्रयुक्त कुछ शब्दों अभिव्यक्तियों को स्पष्ट करने के लिए “व्याख्या “की आवश्यकता होती है |व्याख्या के द्वारा अस्पष्ट एवं अनिश्चित विनिर्देशो को स्पष्ट और निश्चित बनाया जाता है और व्याख्या के दौरान विनिर्देश में संशोधन या सुधार करने के लिए नियंत्रक या उच्च न्यायालय द्वारा अनुमति प्रदान की जा सकती है|

संदर्भ सूची :-

 

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