हमारा कानून

न्यायिक पृथक्करण तथा तलाक (विवाह विच्छेद) में अंतर | Difference between judicial separation and divorce in Hindi

न्यायिक पृथक्करण तथा तलाक (विवाह विच्छेद) में अंतर

न्यायिक पृथक्करण तथा तलाक (विवाह विच्छेद) में अंतर

न्यायिक पृथक्करण क्या है?-

न्यायिक पृथक्करण का अर्थ है सक्षम क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय द्वारा पति पत्नी के साथ-साथ रहने के अधिकार को समाप्त करना परंतु ऐसी डिक्री या आदेश न पक्षकारों की हैसियत को प्रभावित करती है और न ही विवाह बंधन को तोड़ती है। यह ऐसा संबंध विच्छेद है जो पति-पत्नी को एक-दूसरे से अलग रहने के लिए प्राधिकृत करता है।

तलाक (विवाह विच्छेद) क्या है?-

यह पति और पत्नी के सभी पारस्परिक दायित्वों को समाप्त कर देता है| इससे धारा 25 (रखरखाव और गुजारा भत्ता) और धारा 26 (बच्चों की हिरासत, रखरखाव और शिक्षा) को छोड़कर उनके बीच सभी बंधन समाप्त हो जाते हैं। ऐसे बहुत से आधार उपलब्ध हैं जिन पर पति-पत्नी तलाक ले सकते हैं।

न्यायिक पृथक्करण तथा तलाक (विवाह विच्छेद)में अंतर:- 

न्यायिक पृथक्करणविवाह विच्छेद
1. न्यायिक पृथक्करण में संबंध स्थगित हो जाते हैं समाप्त नहीं होते।विवाह विच्छेद में पति पत्नी के संबंध समाप्त हो जाते हैं।
2. इसमें पति पत्नी के वैवाहिक अधिकार एवं कर्तव्यों को कुछ समय के लिए निलंबित किया जाता है।विवाह विच्छेद में विवाह को हमेशा के लिए विघटित कर दिया जाता है।
3. न्यायिक पृथक्करण के दौरान दूसरा विवाह नहीं किया जा सकता।विवाह विच्छेद के बाद पक्षकारों को दूसरा विवाह करने का अधिकार उत्पन्न हो जाता है अर्थात पक्षकार दूसरा विवाह करने के लिए स्वतंत्र होते हैं।
4. न्यायिक पृथक्करण के दौरान पक्षकारों की हैसियत पति-पत्नी की ही रहती है।विवाह विच्छेद के बाद पक्षकार पति-पत्नी नहीं रहते।

5. न्यायिक पृथक्करण को पक्षकार स्वयं समाप्त कर सकते हैं।
विवाह विच्छेद को पक्षकार स्वयं समाप्त नहीं कर सकते हैं।
6. न्यायिक पृथक्करण के दौरान यदि किसी एकपक्ष कार की मृत्यु हो जाती है तो दूसरा पक्षकार उसकी संपत्ति को उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त कर सकता है।विवाह विच्छेद के बाद पक्षकारों का एक दूसरे की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता है।

7. व्यभिचार एक बहुत बड़ा आधार है, जिसके द्वारा कोई भी याचिका दायर करता है।
पति और पत्नी को एक व्यभिचारी संबंध में रहना चाहिए, तभी कोई पक्ष तलाक के लिए फाइल कर सकता है।
8. न्यायिक पृथक्करण के लिए याचिका विवाह के बाद किसी भी समय दायर की जा सकती है।विवाह के एक या अधिक वर्षों के बाद ही विवाह विच्छेद के लिए याचिका दायर की जा सकती है।
9. न्यायिक पृथक्करण का प्रावधान हिंदू विवाह अधिनियम,1955 की धारा 10 के अंतर्गत किया गया है।विवाह विच्छेद का प्रावधान हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 के अंतर्गत किया गया है।

संदर्भ:- 

  • हिंदू विधि – डॉक्टर यू. पी. डी. केसरी
  • हिन्दू विधि -पारस दिवान
  • हिंदू विधियां – Bare Act
  • न्यायिक पृथक्करण तथा तलाक (विवाह विच्छेद) में अंतर-