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न्यायिक संस्वीकृति और न्यायिकेतर संस्वीकृति में अंतर | Difference between Judicial and Extra-Judicial Confession in Hindi

न्यायिक संस्वीकृति और न्यायिकेतर संस्वीकृति में अंतर

न्यायिक संस्वीकृति और न्यायिकेतर संस्वीकृति में अंतर

संस्वीकृति दो प्रकार की होती हैं- 

1. न्यायिक संस्वीकृति।

2.न्यायिकेतर संस्वीकृति।

न्यायिक संस्वीकृति किसे कहते हैं?

न्यायिक संस्वीकृतियां वे हैं जो एक मजिस्ट्रेट या न्यायालय के सामने विधिक कार्यवाहियों के दौरान की जाती हैं।

क,ख की हत्या करने का अभियुक्त है। वह विचारण प्रारंभ होने के पूर्व अपराध को किसी मजिस्ट्रेट के सामने संस्वीकृति करता है, जिसे मजिस्ट्रेट दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के उपबंधों के अनुसार अभिलिखित करता है।

न्यायिकेतर संस्वीकृति किसे कहते हैं?

मजिस्ट्रेट के अतिरिक्त अन्य किसी के समक्ष की जाने वाली संस्वीकृति न्यायिकेतर संस्वीकृति कहलाती है। यह किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के सामने की जाती है।

न्यायिकेतर संस्वीकृति किसी भी रुप में की जा सकती हैं जैसे किसी रिश्तेदार को पत्र लिखना या अन्य किसी को प्रार्थना पत्र देना। इस प्रकार की संस्वीकृति लिखित या मौखिक हो सकती है।

केस:- पक्किरी सामी तमिलनाडू  राज्य (ए आई आर 1998) एस. सी. 107.

इस वाद में अभिनिर्धारित किया गया है कि जहां न्यायिकेतर संस्वीकृति की वैधता असंदिग्ध हो वहां उसे साक्ष्य मानकर स्वीकार किया ही जाना चाहिए।

न्यायिक संस्वीकृति और न्यायिकेतर संस्वीकृति में अंतर

न्यायिक संस्वीकृति (Judicial confession)न्यायिकेतर संस्वीकृति (Extra judicial confession)
1. न्यायिक संस्वीकृतियां वे है जो धारा 164 दंड प्रक्रिया के अधीन मजिस्ट्रेट या न्यायालय के सामने विधिक कार्यवाहियों के दौरान की जाती है।
न्यायिकेतर संस्वीकृति वह है जो न्यायालय में के अतिरिक्त अन्य कहीं किसी व्यक्ति से या पुलिस के अन्वेषण के दौरान की जाती हैं।
2. न्यायिक संस्वीकृति अभियुक्त स्वेच्छा से करता है तथा अभियुक्त ऐसी संस्वीकृति की प्रकृति एवं परिणाम से परिचित रहता है।
न्यायिकेतर संस्वीकृति तभी ग्राह्य होती है जब वह स्वैच्छिक हो।
3. न्यायिक संस्वीकृति को साबित करने के लिए जिस व्यक्ति से न्यायिक संस्वीकृति की गई है उसे साक्षी के रूप में बुलाना जरूरी नहीं है।
न्यायिकेतर संस्वीकृति उस व्यक्ति को गवाह के रूप में बुला कर के साबित कराया जाता है जिसके समक्ष न्यायिकेतर संस्वीकृति की गई है।
4. अभियुक्त को सजा देने के लिए न्यायिक संस्वीकृति को अन्य साक्ष्यों से संपुष्ट होना आवश्यक नहीं है।
न्यायिकेतर संस्वीकृति पर किसी अभियुक्त को तब तक सजा नहीं दिया जाना चाहिए जब तक कि अन्य साक्ष्यों से इसकी संपुष्टि न हो जाए।
5. न्यायिक संस्वीकृति पर दोषसिद्धि आधारित की जा सकती है।
न्यायिकेतर संस्वीकृति पर दोषसिद्धि आधारित करना असुरक्षित है।
6. न्यायिक संस्वीकृति पर अभियुक्त के विरुद्ध दोष के सबूत के रूप में निर्भर किया जा सकता है, यदि न्यायालय को वह स्वैच्छिक और सत्य प्रतीत हो।केवल न्यायिकेतर संस्वीकृति पर निर्भर नहीं किया जा सकता है, उसे अन्य समर्थक साक्ष्य की जरूरत होती है।