हमारा कानून

पुनर्विलोकन तथा पुनरीक्षण में अंतर | Difference between Review and Revision

पुनर्विलोकन तथा पुनरीक्षण में अंतर

पुनर्विलोकन तथा पुनरीक्षण में अंतर

पुनर्विलोकन से क्या अभिप्राय है?

पुनरावलोकन का शाब्दिक अर्थ है जांच करना या फिर से अध्ययन करना | मामले के तथ्यों और निर्णय की फिर से जांच या अध्ययन करना पुनर्विलोकन कहलाता है । निर्णय की समीक्षा सीपीसी की धारा 114 में उल्लिखित न्यायालय द्वारा समीक्षा की मूल शक्ति है।

यह खंड समीक्षा के लिए कोई सीमा और शर्तें प्रदान नहीं करता है। सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 47 में सीमाएं और शर्तें प्रदान की गई हैं। आदेश XLVII में नौ नियम शामिल हैं जो समीक्षा के लिए कुछ शर्तें लगाते हैं। समीक्षा करने की शक्ति कानून द्वारा प्रदान की जाती है और समीक्षा करने की अंतर्निहित शक्ति केवल अदालत में निहित होती है। एक सरकारी अधिकारी के पास अपने आदेशों की समीक्षा करने की कोई अंतर्निहित शक्ति नहीं होती है। सभी फरमानों या आदेशों की समीक्षा नहीं की जा सकती। समीक्षा का अधिकार सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 114 और आदेश 47, नियम 1 द्वारा प्रदान किया गया है।

पुनरीक्षण से आप क्या समझते हैं?

सी.पी.सी. की धारा 115 के अंतर्गत पुनरीक्षण के प्रावधानों का उल्लेख किया गया है। उच्च न्यायालय के पास किसी भी मामले की पुन: परीक्षा के लिए बुलाने की शक्ति है जो अधीनस्थ न्यायालय द्वारा उचित अधिकार क्षेत्र के बिना तय किया गया है। उच्च न्यायालय की इस शक्ति को केवल उच्च न्यायालय का पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार कहा जाता है जिसका उल्लेख संहिता की धारा 115 के तहत किया गया है। पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार एक मौलिक अधिकार नहीं है बल्कि आवेदक को दिया गया एक विशेषाधिकार है।

चूंकि उच्च न्यायालय के पास केवल पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार है, इस तरह की शक्ति के प्रयोग से किया गया आदेश अपील योग्य नहीं है।

पुनर्विलोकन तथा पुनरीक्षण में अंतर बताइए:-

पुनर्विलोकन (Review)पुनरीक्षण (Revision)
1. सीपीसी की धारा 114 के तहत समीक्षा (पुनर्विलोकन) को परिभाषित किया गया है।
सीपीसी की धारा 115 के तहत संशोधन(पुनरीक्षण) को परिभाषित किया गया है।
2. पुनर्विलोकन उसी न्यायालय द्वारा किया जाता है जिसके द्वारा निर्णय या आदेश दिया जाता है।
2. पुनरीक्षण उच्च न्यायालय द्वारा किया जाता है।
3. समीक्षा देने वाली डिक्री अपीलीय है।
3. पुनरीक्षण देने वाली डिक्री अपीलीय नहीं है।
4. समीक्षा(पुनर्विलोकन) के लिए आधार नए साक्ष्य की खोज, रिकॉर्ड के चेहरे पर त्रुटि और कोई अन्य पर्याप्त कारण है।
4. संशोधन के लिए आधार निचली अदालतों द्वारा एक क्षेत्राधिकार त्रुटि है।
5. पुनर्विलोकन कोई भी न्यायालय कर सकता है।
5. पुनरीक्षण केवल उच्च न्यायालय द्वारा किया जा सकता है है।
6. पुनर्विलोकन सिर्फ आवेदन पर ही हो सकता है।
6. पुनरीक्षण आवेदन पर तथा न्यायालय के स्वविवेक पर भी हो सकता है।
7. पुनर्विलोकन ऐसे आदेशों का भी हो सकता है जिनकी अपील हो सकती है।
7. ऐसे आदेशों का पुनर्विलोकन नहीं हो सकता जिनकी अपील हो सकती है।
8. पुनर्विलोकन के आदेश के विरुद्ध अपील की जा सकती है।8.पुनरीक्षण में पारित किए गए आदेश के विरुद्ध अपील नहीं की जा सकती है।