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पुलिस की शक्ति दंड प्रक्रिया संहिता के अधीन | power of police under CrPC in hindi

प्रस्तावना (Introduction)

पुलिस को संविधान की सातवी अनुसूची के भाग  2  (राज्य सूची ) में शामिल किया गया है । जो राज्य का आन्तरिक विषय है । पुलिस का आधारभूत  काम  नागरिकों को  सुरक्षा प्रदान करना , अपराध रोकना ,अपराध को  नियंत्रित करना , अपराध हो जाए तो जांच – पड़ताल करना , अपराधी को गिरफ्तार करना । किसी भी मामले में निष्पक्ष होकर पूरी ईमानदारी के साथ वाद  तैयार करना और उसे अदालत में पेश करना आदि ।

पुलिस के  पास कई तरह की अलग-अलग शक्तियां होती है , जो कानून द्वारा  दी जाती है लेकिन कानून द्वारा  निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार ही पुलिस उन शक्तियों का उपयोग कर सकती है । वे शक्तियां या अधिकार है – जैसे तलाशी , बारमदगी ,  गिरफ्तारी , पूछताछ , अनियंत्रित भीड़ को नियंत्रित करने का अधिकार होता है ।  लेकिन यह सब काम करने के लिए पुलिस को कानून से शक्ति मिलती है उनमें हम की बात करेंगे कि के अंतर्गत पुलिस को किस प्रकार की  और कितनी शक्ति या अधिकार प्राप्त है ।

 

विभिन्न परिपेक्ष्य में पुलिस की शक्तियां : अवलोकन के वाद  विधियों के साथ-

1. बिना वारण्ट के गिरफ्तार करने की पुलिस की  शक्ति – धारा 41 : –

धारा 41 – पुलिस वारंट के बिना कब गिरफ्तार कर सकेगी ,

(क)   जब किसी पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में संज्ञेय अपराध कारित हुआ हो तो उस व्यक्ति को पुलिस बिना वारण्ट के गिरफ्तार कर सकेगी ।

 

(ख) जिसके विरुद्ध कोई युक्तियुक्त परिवाद किया गया है , या कोई विश्वसनीय सूचना प्राप्त हुई है ; या युक्तियुक्त संदेह विद्यमान है कि उसने ऐसी अवधि के कारावास से दण्डनीय  संज्ञेय  अपराध कारित किया है जो सात वर्ष से कम की हो सकती है या जो सात वर्ष तक की हो सकती है चाहे जुर्मा ने सहित हो या जुर्मा के बिना, यदि निम्नलिखित शर्ते का समाधान कर दिया जाता है –

 

(i) ऐसे परिवाद , सूचना या संदेह के आधार पर पुलिस अधिकारी का यह विश्वास करने का कारण है कि ऐसे व्यक्ति ने उक्त अपराध कारित करता  है ।

(ii) पुलिस अधिकारी का समाधान हो गया है कि ऐसी गिरफ्तारी आवश्यक है ।

(क) ऐसे व्यक्ति को ऐसे और किसी अपराध को कारित करने से निवारित करने के लिए ।

(ख) अपराध के उचित अन्वेषण के लिए।

(ग)  ऐसे व्यक्ति को अपराध के साक्ष्य मिटाने या  ऐसे साक्ष्य से किसी ढंग से छेड़छाड़ करने से निवारित करने के       लिए या

(घ)  ऐसी व्यक्ति को मामलों के तथ्यों  से परिचित किसी व्यक्ति को प्रलोभन देने , धमकी देने या वायदा करने से निवारित करने के लिए ताकि ऐसा व्यक्ति ऐसे तथ्यों  को न्यायालय या पुलिस अधिकारी को प्रकट ना करें या

(ङ) क्योंकि जब तक ऐसा व्यक्ति गिरफ्तार नहीं किया जाता , उसकी न्यायालय में  उपस्थिति जब कभी भी अपेक्षित हो , सुनिश्चित नहीं की जा सकती :

और पुलिस अधिकारी ऐसी गिरफ्तारी करते  समय अपने कारणों को लिखित में अभिलिखित करेगा ।

 

[परंतु यह कि कोई पुलिस अधिकारी , उन समाप्त मामलों में जहाँ इस उपधारा के उपबंधों के अधीन किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी अपेक्षित नहीं है, तो गिरफ्तार न करने के लिए लिखित में कारण अभिलिखित करेगा।]

केस – जोगिन्दर कुमार बनाम स्टेट ऑफ़ यू .पी .  (1994) 4 SSC 1349

इस केस में गिरफ्तारी से संबंधित कुछ गाईडलाईन जारी की गई| इस केस में एक एडवोकेट थे और पुलिस ने उन्हें  गिरफ्तार कर लिया एडवोकेट के रिलेटिव ने SC मे रिट पिटीसन दायर की इस केस में SC ने कहा कि पुलिस के पास गिरफ्तार करने की पावर होना और उसको इक्सर्साइज करना दोनों अलग-अलग बातें हैं और इसमें जब भी इस पॉवर को इक्सर्साइज किया जाता है तो पुलिस अधिकारी को यह बताना पड़ेगा रीजनेविल जसटीफिकेशन के साथ  ऐसा क्यों किया गया है । और जब तक कोई जघन्य अपराध न हो तो गिरफ्तारी को टाला  जाना चाहिए । इसी केस में  गिरफ्तारी के संबंध में कुछ गाईडलाईन भी जारी की गई है हर व्यक्ति का जिसे गिरफ्तार किया जाता है उसके यह अधिकार है कि artical 21 और artical 22 (i) के अनुसार कि उसे जब गिरफ्तार किया जाए तो वह  अपने जानकार रिश्तेदार को सूचित कर सके इस अधिकार के बारे में पुलिस अधिकारी उस व्यक्ति को बताएगा  जिसे गिरफ्तार किया गया है । और पुलिस अधिकारी अपनी डायरी में भी नोट करेगा कि उस व्यक्ति को अरेस्ट की जानकारी दी ।

 

जिस के विरुद्ध विश्वसनीय सूचना प्राप्त हुई है कि उसने ऐसा संज्ञेय अपराध कारित किया गया है जो ऐसी अवधि के कारावास से दंडनीय है जो जुर्माने सहित या जुर्माने के बिना सात वर्ष से अधिक तक या मृत्यु दंड  का हो सकेगा  तथा पुलिस अधिकारी का ऐसी सूचना के आधार पर यह  विश्वास करने का कारण है कि ऐसे व्यक्ति ने उक्त अपराध कारित किया है ।

केस – अर्नेश कुमार बनाम  बिहार राज्य , 2014 

यह केस 498 A के दुरूपयोग से संबंधित है ।

इस केस के सार के रूप में कहा जाना चाहिए कि जब 498 A के   अन्तर्गत गिरफ्तारी होती है तो पुलिस के सामने कुछ प्रश्न होने चाहिए

  • जैसे गिरफ्तार करने की आवश्यकता क्या है ?
  • किस उद्देश्य की पूर्ति करने के लिए गिरफ्तारी की जा रही है?
  • धारा 41 A में गिरफ्तारी के पहले धारा 41 A का नोटिस दिया जायेगा SC ने अरनेश कुमार के केस में कहा है ।

पहले 498 A के केस में बिना वारण्ट के गिरफ्तारी हो जाती थी परन्तु अरनेश कुमार के केस में अब जज के द्वारा पुलिस रिमांड पर तभी भेजी जाएगी जब जज की पूर्ण पुष्टी हो ।

केस – राजेश शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य ,(2017) 

इस केस में कहा कि हर जिले धारा 498A (ipc)में जो परिवाद किया जाता है। उसे फेमली वेलफेयर कमेटी में भेजा  जायेगा और  दोनो पक्षकारों की काउंसलिंग की जाएगी उसके बाद ही  गिरफ़्तारी की जाएगी |

केस -सोशल एक्सर फोरम फोर मानव अधिकार  बनाम  भारत संघ ,(2018) SCC 443 

इस केस में राजेश शर्मा के केश को उलट दिया |

 

2. नाम और निवास बताने  से इंकार करने पर गिरफ्तार करने की पुलिस की  शक्ति – धारा 42 

की धारा 42 में नाम और निवास बताने से इंकार करने पर गिरफ्तारी –

  1. जब कोई व्यक्ति जिसमे पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में असंज्ञेय  अपराध किया है या जिस पर पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में असंज्ञेय अपराध करने का अभियोग लगाया गया है , उस अधिकारी की मांग पर अपना नाम और निवास बताने  में इन्कार करता है या ऐसा नाम या निवास बताता है , जिसके बारे में उस अधिकारी को यह विश्वास करने का कारण है कि वह मिथ्या है तब वह ऐसे अधिकारी द्वारा इसलिए गिरफ्तार किया जा सकता है कि उसका नाम और निवास अनिश्चित किया जा सकें।

 

  1. जब ऐसे व्यक्ति का सही नाम और निवास अनिश्चित कर लिया जाता है तब वह प्रतिभुओ सहित या रहित यह बंध पत्र निष्पादन पर छोड़ दिया जाएगा कि यदि उस से मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होने की अपेक्षा की गई तो वह उस के समक्ष हाजिर होगा :

परंतु यदि ऐसा व्यक्ति भारत में निवासी नहीं है तो वह बंध पत्र  भारत में निवासी प्रतिभू या प्रतिभुओ                        द्वारा प्रतिभूत किया जाएगा ।

  1. यदि गिरफ्तारी के समय से 24 घंटों के अंदर ऐसी व्यक्ति का सही नाम और निवास अभिनिश्चित नहीं किया जा सकता है या वह बंध पत्र निष्पादित करने में या अपेक्षित किए जाने पर पर्याप्त प्रतिभू देने में असफल रहता है तो वह अधिकारिता रखने वाले निकटतम मजिस्ट्रेट के पास तत्काल भेज दिया जायेगा ।

 

3. गिरफ्तार किए गये व्यक्तियों की तलाशी करने की पुलिस की  शक्ति

  1. जब कभी पुलिस अधिकारी द्वारा ऐसे वारण्ट के अधीन ,  जो जमानत लिए जाने का उपबंध नहीं करता है या ऐसे वारंट के अधीन , जो जमानत के लिए जाने का उपबंध करता है किंतु गिरफ्तार किया गया व्यक्ति जमानत नहीं दे सकता है , कोई व्यक्ति गिरफ्तार किया जाता है और वैध रुप से उसकी जमानत नही ली जा सकती है या वह जमानत देने में असमर्थ है ,

तब गिरफ्तारी करने वाला अधिकारी, या उस व्यक्ति की तलाशी ले सकता है और पहनने के आवश्यक वस्त्रों को छोड़कर , उसके पास पाई गई सब वस्तुओं को सुरक्षित अभिरक्षा में रख सकता है और जहाँ गिरफ्तार किये गये व्यक्ति से कोई वस्तु अभिग्रहीत की जाती है  वहाँ ऐसे व्यक्ति को एक रसीद दी जायेगी जिसमे पुलिस अधिकारी द्वारा कब्जे में की गई वस्तुऐ लिखी होगी ।

केस –  महादेव बनाम  यू.पी .राज्य ,(1990 )क्रि. लॉ. ज. 858 (इलाहाबाद)

इस  वाद  में अभिनिर्धारित किया गया था कि बरामदगी मेंमो पर तलाशी लिये गये व्यक्ति का हस्ताक्षर लिया जाना इस धारा द्वारा अपेक्षित है और यदि बरामदगी मेंमो अभियुक्त द्वारा हस्ताक्षरित नही है तो तलाशी अवैधानिक है।

इसे भी पढ़ें -संज्ञेय और असंज्ञेय अपराध मे अंतर

4. लोक व्यवस्था और प्रशांति बनाए रखना में विधिविरुद्ध जमाव हटाने मे पुलिस की शक्ति (CrPC की धारा 129 )-

धारा –129 

  1. कोई कार्यपालक , मजिस्ट्रेट या पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी या ऐसे भारसाधक अधिकारी की अनुपस्थिति में उपनिरीक्षक की पंक्ति से अनिम्न कोई पुलिस अधिकारी किसी विधिविरुद्ध जमाव को या पाँच या पाँच व्यक्तियों के किसी ऐसे जमाव को , जिसमे लोकशांति भंग होने की संभावना हो , तो अधिकारी या पुलिस तितर वितर होने का समादेश दे सकता है और तब ऐसे जमाव के सदस्यों का यह कर्तव्य होगा कि वे तदनुसार तितर वितर हो जाये ।
  2. यदि  ऐसा समादेश दिये जाने के बाद ऐसा कोई जमाव तितर वितर नही होता है तो कार्यपालक या मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी उस जमाव को बल द्वारा तितर वितर करने की कार्यवाही कर सकता है ।

 

5. पुलिस का निवारक कार्य  (Preventive action of the police) – धारा 151

धारा 151 संज्ञेय अपराधों का किया जाना  रोकने के लिए गिरफ्तार |

 

  1. कोई पुलिस अधिकारी जिसे किसी संज्ञेय अपराध करने की परिकल्पना का पता है , ऐसी परिकल्पना करने वाले व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के आदेशों के बिना और वारण्ट के बिना उस दशा में गिरफ्तार कर सकता है जिसमे ऐसे अधिकारी को प्रतीत होता है कि उस अपराध का  किया जाना अन्यथा नही रोक जा सकता ।
  2. उपधारा (1) के अधीन गिरफ्तार किये गए किसी व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के समय से चौबीस घंटे की अवधि से अधिक के लिये अभिरक्षा में उस दशा के सिवाय निरूद्ध नही रखा जाएगा , जिसमे उसका और आगे निरुद्ध रखा जाना इस संहिता के या तत्समय प्रवृत किसी अन्य विधि के किसी अन्य उपबंधो के अधीन अपेक्षित या प्राधिकृत है ।

दंड प्रक्रिया संहिता , 1973 की धारा 151 , यह स्पष्ट करती है आखिर वो क्या शर्ते है जिनके तहत एक पुलिस अधिकारी , किसी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना और बिना वारण्ट के गिरफ्तार कर सकता है गौरतलब है कि इस धारा के अंतर्गत गिरफ्तारी केवल तभी कर सकता है जब उसे किसी संज्ञेय अपराध करने की परिकल्पना का पता चलता है । ऐसी शक्ति के प्रयोग के लिए एक और शर्त यह है कि गिरफ्तारी केवल तभी की जानी चाहिए जब संबंधित पुलिस अधिकारी को यह प्रतीत होता है कि अपराध का किया जाना  अन्यथा रोका नही जा सकता है अर्थात बिना व्यक्ति को गिरफ्तार किये , अपराध का कारित होना रोका नही जा सकेगा ।

इसलिए, यह धारा मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना और बिना वारण्ट के गिरफ्तारी करने की शक्ति के उपयोग करने की आवश्यकताओं को स्पष्ट रूप से बताती हैं । यदि इन शर्तो को पूरा नही किया जाता है और एक व्यक्ति को दंड प्रक्रिया संहिता  की धारा 151 के तहत गिरफ्तार किया जाता है , तो गिरफ्तारी करने वाले अधिकारी को संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 में निहित मौलिक अधिकारों के उल्लंघन में लिए कानून के तहत कार्यवाही का सामना करना पड़  सकता है ।

केस – राजेंदर सिंह पठानिया बनाम  स्टेट ऑफ NCT Delhi एवं अन्य ,(2011) 13 SSC 329

दंड प्रक्रिया संहिता , 1973 की 151 (2) संविधान के अनुच्छेद 22(1) के अनुसार प्रावधान कायम करती है , यह धारा कहती है कि धारा 151(1) के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक समय तक हिरासत में नही रखा जाना चाहिए ।

केस   जोगिंदर कुमार के मामले में और डी. के . बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1997) SSC 416

के वाद  में भी यह भी कहा गया है कि धारा 151 के अंतर्गत शक्ति का दुरूपयोग नही किया जा सकता है और दुरुपयोग के मामले में , संबंधित प्राधिकारी को  पर्याप्त रूप से दंडित किया जाएगा ।

धारा 151 और जरूरी सावधानी

दंड प्रक्रिया संहिता , 1973 की धारा , 151 , पुलिस की निवारक शक्ति ( prevantive power ) है , जिसके अंतर्गत संज्ञेय अपराधों के कमीशन को रोकने के लिए गिरफ्तारी , संज्ञेय अपराध के होने से रोकती है और पक्षो को मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रावधान करती है इस धारा के तहत प्रदत्त शक्ति , पुलिस व्यवस्था के लिए एक निवारणात्मक उपाय है। , जिसे समाज में विधि व्यवस्था को बनाए रखने के लिए प्रदान किया गया है ।

किसी भी मामले में कोई गिरफ्तारी तब तक नही की जा सकती , जब तक पुलिस अधिकारी के लिए ऐसा करना कानूनन उचित नही है । गिरफ्तारी करने की शक्ति का मौजूद होना एक बात है और इसके अभ्यास का औचित्य अलग बात है पुलिस अधिकारी को ऐसा करने के लिए अपनी शक्ति का इस्तेमाल करने के अलावा , गिरफ्तारी का औचित्य साबित करने में समक्ष होना चाहिए ।

 

6. पुलिस को इत्तिला और उनकी अन्वेषण करने की शक्तियां  ( Information to the police and their powers do   Investigation )- धारा 154

धारा 154  संज्ञेय मामलो में इत्तिला – (F.I.R.) ( Information in cognizable cases ) –

  1.  संज्ञेय अपराध के किये जाने से सम्बंधित प्रत्येक इत्तिला , यदि पुलिस थाने के आरसाधक अधिकारी को मौखिक दी गई है तो उसके द्वारा या निर्देशाधीन लेखबन्द कर ली जायेगी और इत्तिला देने वाले को पढ़कर सुनाई जाएगी और प्रत्येक ऐसी इत्तिला पर चाहे वह लिखित रूप में दी गई हो या पूर्वोक्त रूप में लेखबद्ध की गई हो , उस व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर  व किये जायेंगे , जो उसे दे और उसका सार ऐसी पुस्तक में , जो उस अधिकारी द्वारा ऐसे रूप में रखी जाएगी, जिसे राज्य सरकार इस निमित्त निहित करे , प्रविष्ट किया जाएगा  :
  2. उपधारा  (1) के अधीन अभिनिश्चित इत्तिला की प्रतिलिपि, इत्तिला देने वाले को तत्काल नि:शुल्क दी जायेगी ।
  3. कोई व्यक्ति जो किसी पुलिस थाने के आरसाधक अधिकारी के उपधारा (1) में निर्दिष्ट इत्तिला को अभिलिखित करने से इंकार करने से व्यथित है , ऐसी इत्तिला ( Information ) का सार लिखित रूप में और डाक द्वारा संबद्ध पुलिस अधीक्षक को भेज सकता है  जो , यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि ऐसी इत्तिला ( informartion ) में किसी संज्ञेय अपराध का किया जाना प्रकट होता  है तो , या तो स्वयं मामले का अन्वेषण करेगा या अपने अधीनस्थ किसी पुलिस अधिकारी द्वारा इस संहिता द्वारा उपबंधित रीति में अन्वेषण किये जाने का निर्देश देगा और उस अधिकारी को उस अपराध के संबंध में  पुलिस थाने के आरसाधक अधिकारी की सभी शक्तियां होगी ।

 

केस  हरियाणा राज्य  बनाम चौधरी भजनलाल AIR ,(1993) SC 604 

इस केस में कहा गया है कि जब किसी व्यक्ति द्वारा पुलिस अधिकारी को कोई संज्ञेय अपराध घटित होने की प्रथम सूचना दी जाती है तो पुलिस अधिकारी को ऐसी सूचना को अभिलिखित करना ही होगा ।

F.I R. से जुड़ी मुख्य बाते एवं वाद-

केस – जिंदर अली शेख बनाम पश्चिम बंगाल राज्य ,( 2009) SC 761

इस  वाद  में बलात्संग की पीड़िता द्वारा पुलिस थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट हेतु निवेदन किये जाने पर पुलिस थाने के भाररसाधक अधिकारी ने मामला दर्ज करने से इंकार कर दिया और पीड़िता को परामर्श दिया कि वह अभियुक्त के साथ आपसी तरीके से मामला निपटा लें

इस पर पीड़ित ने धारा 156 (3) के अंतर्गत मजिस्ट्रेट के पास गुहार लगाई और जब मजिस्ट्रेट द्वारा निर्देश दिए जाने पर पीड़िता की  FIR  रजिस्टर की गई । इस कारण पीड़िता के प्रकरण में चिकित्सीय साक्ष्य जुटाने में 6 माह का विलंब हुआ । न्यायालय ने अभिकथन किया कि पुलिस लापरवाही के कारण इस प्रकरण में मूल्यवान समय नष्ट हो गया जिसके लिए दोषी पुलिस अधिकारी की जितनी निंदा की जाए वह कम है ।

प्रथम सूचना रिपोर्ट में देरी होने के कारण उत्पन्न हुए हुये वाद

केस- रमेश चन्द्र नन्दलाल पारीक बनाम गुजरात राज्य

SC ने इस  वाद विनिश्चय किया कि यदि अभियुक्त के विरुद्ध FIR के आधार पर कोई आपराधिक कार्यवाही चल रही हो तथा अपराधी द्वारा उसी प्रकार का अपराध पूर्ववर्त किया जाता है जिसकी FIR लिखाई गई हो तो ऐसी स्थिति में पश्चातवर्ती रिपोर्ट इस आधार पर अभिखण्डित नही हो जाती क्योंकि वैसा ही अपराध पूर्व में दायर किया गया और FIR दर्ज होने के कारण दोबारा रिपोर्ट नही लिखी जा सकती ।

केस – पंजाब राज्य बनाम  गुरमीत सिंह

इस वाद में SC ने अभिकथन किया है कि बलात्कार जैसे लैंगिक अपराध के मामले में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के अधीन FIR फाइल करने में देरी की जाना आम बात है  । यदि परिवादिनी के पास इसके लिए पर्याप्त कारण हो तो इस पर विशेष महत्व नहीं दिया जाना चाहिए इसका कारण यह है कि ऐसे मामले में पीड़ित महिला तथा उसके परिवारजन संकोच , लज्जा या परिवार के सम्मान को ध्यान में रखते हुए यह सोचने में काफी समय गवां देते है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट दायर की जाए अथवा  नही ।

जीरो FIR :-

जीरो FIR का साधारण यह अर्थ होता है कि वह किसी भी थाने पर दर्ज कराई जा सकती है जिसका अभिलेखन किसी भी थाने के अधिकारी द्वारा किया जा सकता है । इस प्रकार की FIR को पूर्ण रूप से मान्यता नही दी गई है परंतु बलात्कार से पीड़िता किसी भी थाना क्षेत्र में जो निकट हो वहाँ FIR करा सकती है ।

 

7. संज्ञेय मामले का अन्वेषण करने की पुलिस अधिकारी की शक्ति  (Police officers power to investigate cognizable case )- धारा 156

धारा 156 – संज्ञेय मामले को  अन्वेषण करने की पुलिस अधिकारी की शक्ति —

(1)  कोई पुलिस थाने का आरसाधक अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना किसी ऐसे संज्ञेय मामले का अन्वेषण कर सकता है , जिसकी जाँच या विचारण करने की शक्ति उस थाने की सीमाओं के अंदर के स्थानीय क्षेत्र पर अधिकारिता रखने वाले न्यायालय को अध्याय 13 के उपबंधों के अधीन है ।

(2)  ऐसे किसी मामले में पुलिस अधिकारी की किसी कार्यवाही को किसी भी प्रारूप में इस आधार पर प्रश्नगत न किया जाएगा कि वह मामला ऐसा था  जिसमें ऐसा अधिकारी इस  धारा के अधीन अन्वेषण करने के लिए सशक्त न था।

केस – प. बंगाल राज्य बनाम  सपन कुमार गोहा , 1982 एससी 561

इस केस में कहा गया कि न्यायपालिका को  अन्वेषण करने मे हस्तक्षेप  करने का अधिकार नहीं है ।

परन्तु संबिधान का अनुच्छेद 226 और की धारा 482 मे कोर्ट को यह अधिकार है की वह अन्वेषण के बंद करने के सम्बंध मे आदेश पारित कर सकता है |

8. आत्महत्या , आदि पर पुलिस की जाँच करना और रिपोर्ट देंने की शक्ति  – धारा 174

धारा 174 – आत्महत्या , आदि पर पुलिस की जाँच करना और रिपोर्ट देंना

(1) जब पुलिस थाने के आरसाधक अधिकारी, या राज्य सरकार द्वारा उस निमित्त विशेषता  सशक्त किये गए किसी अन्य पुलिस अधिकारी को यह इत्तिला मिलती है कि किसी व्यक्ति आत्महत्या कर ली है  अथवा कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति द्वारा या जीवजंतु द्वारा या किसी यन्त्र द्वारा दुर्घटना द्वारा मारा गया है , अथवा कोई ऐसी परिस्थितियों में मरा है जिन से उचित रूप से यह सन्देह होता है कि किसी अन्य व्यक्ति ने कोई अपराध किया है तो वह मृत्यु समीक्षाएँ करने के लिए सशक्त निकटतम कार्यपालक मजिस्ट्रेट को तुरंत उसकी सूचना देगा और जब तक राज्य सरकार द्वारा निहित किसी नियम द्वारा या जिला या उपखंड मजिस्ट्रेट के किसी साधारण या विशेष आदेश द्वारा अन्यथा निर्दिष्ट न हो वह उस स्थान को जाएगा जहाँ ऐसे मृत व्यक्ति का शरीर है और वहाँ पड़ोस के दो या अधिक प्रतिष्ठित निवासियों की उपस्थिति के अन्वेषण करेगा और मृत्यु के दृश्यमान कारण की रिपोर्ट तैयार करेगा  , जिसमे ऐसे घावों , अस्थिभंगो , नीलो और किस क्षति के अन्य चिन्हों का जो शरीर पर पाए जाए वर्णन होगा ।

 

केस  – रवि बनाम राज्य इंसपेक्टर ऑफ पुलिस 2007 क्रि. लॉ. ज. 2740 (SC)

इस केस में कहा कि की धारा 174  के अधीन अन्वेषण रिपोर्ट का उद्देश्य मात्र यह देखना की क्या कारित हत्या मानव प्रकृति की थी या नही ।

निष्कर्ष ( Conclusion)

दण्ड प्रक्रिया संहिता में पुलिस की शक्तियों की जो अध्ययन किया गया  है उसमें पुलिस के अधिकारों को संक्षेप में बताया गया है । पुलिस को के अंतर्गत शक्तियां और अधिकार दिए गए है जिन शक्तियो के आधार पर पुलिस अपना काम करती है ।

पुलिस का रोल उस समय बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है जब संज्ञेय अपराध हुआ हो पुलिस को संज्ञेय अपराध रोकने के साथ – साथ तलाशी जो की धारा 165 में बतायी गई है पुलिस अधिकारी अन्वेषण  के समय ऐसी शक्ति  का प्रयोग करता है । बरामदगी , गिरफ्तारी , पूछताछ, विधिविरुद्ध जमाव हटाना आदि कार्य करती है ।

संदर्भ ( Reference) – 

  1. Code of criminal procedure , 1973
  2. Book  -प्रो. सूर्य नारायण मिश्र- Code of criminal procedure , 1973
  3. https://hindi.livelaw.in
  4. https://indiankanoon.org.

“यह आर्टिकल राजेश कुमार पटेल के द्वारा लिखा गया है जो की LL.B. ivth सेमेस्टर Dr. Harisingh Gour central University,sagar  के छात्र है |”