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प्रतिनिधिक दायित्व – अपकृत्य विधि | Vicarious Liability In Hindi

प्रतिनिधिक दायित्व - अपकृत्य विधि | Vicarious Liability In Hindi

प्रतिनिधिक दायित्व (Vicarious Liability) क्या है ? –

आमतौर पर प्रत्येक व्यक्ति केवल अपने स्वयं के द्वारा किये गए दोषपूर्ण कार्यों के लिए ही जिम्मेदार होता है परन्तु कुछ मामले ऐसे होते हैं जिनमें एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा किये गए कार्य के लिए दायित्वाधीन होता है। ऐसे दायित्व को प्रतिनिधिक दायित्व कहा जाता है।

सामण्ड के अनुसार प्रतिनिधिक दायित्व की परिभाषा – “सामान्यतया कोई व्यक्ति अपने कृत्यों के लिये दायी होता है लेकिन कुछ ऐसे अपवाद हैं जब कोई व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के कृत्यों के लिये भी विधि द्वारा दायी ठहराया जाता है चाहे वह निर्दोष ही क्यों न हो” । 

प्रतिनिधिक दायित्व का सिद्धान्त दो सूत्रों पर आधारित है :-

(1) क्वी फासिट पर एलियम फेसिट पर सी(Qui facit per alium facit per se)

इस कथन के अनुसार जो व्यक्ति किसी दूसरे के माध्यम से कार्य करता है। विधि की दृष्टि में स्वयं ही उसे करने वाला समझा जाएगा।

केस – इम्पीरियल केमिकल इण्डस्ट्रीज लि० बनाम शेटवेल, (1965) AC 656 

वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि प्रतिनिधिक दायित्व के सिद्धान्त का विकास “सामाजिक सुविधा तथा रूखे न्याय” से हुआ। चूँकि स्वामी सेवक को नौकरी पर रखता है, अतः स्वामी विश्व में अपने सेवक के उसके नियोजन की परिधि में किये गये अपकृत्यों के लिए उत्तरदायी होता है।

2. रेस्पोन्डेन्ट सुपीरियर (Respondent superior )

इस कथन का अभिप्राय यह है कि यदि अपकृत्य कर्त्ता को कृत्य करने का अधिकार किसी सुपीरियर अथवा प्रधान से मिला था तो प्रधान को ही उत्तरदायी माना जाना चाहिये। इस प्रकार कार्य-व्यापार में नौकर द्वारा किये गये कार्य मालिक द्वारा किये गये समझे जाने चाहिये। एजेण्ट के द्वारा किये गये कार्यों के लिये प्रधान (Principal) तथा एजेन्ट दोनों ही सम्मिलित रूप से एवं अलग-अलग उत्तरदायी माने जाते हैं।

केस -बख्शी सिंह बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया, (1973) 75 पी० एल० आर० 1 

इस वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि अपने सेवक के कार्यों के लिए स्वामी का उत्तरदायित्व होना इस सूत्र पर आधारित है कि प्रधान व्यक्ति ही दायी होता है।

प्रतिनिधिक दायित्व का आधुनिक दृष्टिकोण (Modern view) –

वर्तमान में प्रतिनिधिक दायित्व का सिद्धान उपर्युक्त कथनों के साथ ही एक नवीन दृष्टिकोण पर आधारित है, जिसे लार्ड पियर्स ने इम्पीरियल केमिकल इन्डस्ट्रीज लि० बनाम स्टेट बेल [(1965) ए० सी० 656] के वाद में इस प्रकार व्यक्त किया है कि-

प्रतिनिधिक दायित्व का सिद्धान्त किसी बहुत स्पष्ट एवं तर्कयुक्त विधिक सिद्धान्त से नहीं निकला है बल्कि सामाजिक सुविधा एवं सामान्य न्याय पर आधारित है। मालिक नौकर को अपने लाभ के लिये रखता है और इस स्थिति में रहता है कि क्षतिपूर्ति कर सके, इसलिए नौकर द्वारा सेवाकाल में की गई सभी क्षतियों के लिये उसे (मालिक को) उत्तरदायी ठहराना उचित ही होगा।

प्रतिनिधिक दायित्व के प्रकार (Modes of Vicarious Liability)

प्रतिनिधिक दायित्व (Modes of vicarious liability) निम्नलिखित तीन प्रकार से उत्पन्न होता है-

1. अनुसमर्थन द्वारा उत्पन्न दायित्व (Liability by ratification) —

जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के लिये बिना किसी प्राप्त अधिकार के कोई कार्य करता है तो यदि उस कार्य को बाद में दूसरे व्यक्ति, जिसके लिए कार्य किया गया था, के द्वारा अनुसमर्थित (Ratified) कर दिया जाता है तो इस प्रकार अनुसमर्थन करने वाला व्यक्ति उस कार्य के लिए उत्तरदायी हो जाता है, भले ही वह कार्य उसके लाभ के लिये हो या हानि के लिये। 

अनुसमर्थन के द्वारा उत्तरदायित्व तभी उत्पन्न होता है जबकि निम्नलिखित तीन शर्तें पूरी होती हों- 

  1. अनुसमर्थित कृत्य जब किया गया था तब अनुसमर्थन करने वाले व्यक्ति के लिये किया गया है।
  2. अनुसमर्थन करने वाले व्यक्ति को कृत्य की अपकृत्य सम्बन्धी प्रकृति की पूर्ण जानकारी हो।
  3. अवैधानिक एवं अवैध कार्यों का अनुसमर्थन नहीं किया जा सकता है।

2. विशिष्ट सम्बन्धों के द्वारा (By special Relationship)—

जब अपकृत्य करने वाले व्यक्ति एवं अपकृत्य के लिए उत्तरदायी ठहराये जाने वाले व्यक्ति के मध्य इस प्रकार का विशिष्ट सम्बन्ध हो कि कृत्य करने वाले व्यक्ति के स्थान पर न्याय की दृष्टि से उससे संबंधित व्यक्तियों को उत्तरदायी ठहरना उचित प्रतीत हो कि वास्तव में कार्य का संबंध उसी व्यक्ति से था। 

केस – धरानिधर पंडा बनाम उड़ीसा राज्य (ए० आई० आर० 2005 उड़ीसा 36 ) 

इस वाद में स्कूल के रखरखाव की जिम्मेदारी ग्रामीण शिक्षा समिति की थी जो राज्य के अभिकर्त्ता के रूप में कार्यरत है। स्कूल की चहारदीवारी व खम्भे के ढह जाने से राज्य सरकार बच्चों की मृत्यु के लिए प्रतिनिहित रूप से जिम्मेदार मानी गई।

3. दुष्प्रेरण द्वारा उत्पन्न दायित्व (By Abetment) –

जब कभी कोई अपकृत्य किया जाता है तो कार्य करने वाले के साथ-साथ कृत्य करने में मदद करने वाला भी उत्तरदायी माना जाता है। उसे भी अपकृत्य के लिए उत्तरदायी ठहराया जाता है।  इसके लिए आवश्यक है-

  1. वह जानबूझकर अपने लक्ष्य की पूर्ति हेतु अपकृत्य को करने के लिए किसी को उकसाये; या
  2. कृत्य कर्त्ता को उद्देश्य की पूर्ति के लिए कृत्य को अवैधानिक ढंग से करने की प्रेरणा एवं प्रोत्साहन दे।

प्रतिनिधिक दायित्व का सिद्धान्त निम्नलिखित संबंध होने की दशा में लागू होता है :-

(1) अभिकर्ता के अपकृत्य के लिये प्रधान का दायित्व (Liability of Principal for Torts of Agent)

जब कोई प्रधान अपना कार्य किसी अभिकर्त्ता से करवाता है और उस कार्य को करने से यदि किसी व्यक्ति को कोई क्षति पहुँचे तो अभिकर्ता द्वारा किये गए कार्यों के लिए प्रधान उत्तरदायी होगा।

प्राधिकृत अभिकर्ता द्वारा किये गये दोषपूर्ण कृत्य के लिये प्रमुख उत्तरदायी होता है। यदि अभिकर्ता अभिव्यक्त या विवक्षित प्राधिकार के बिना कोई कार्य करता है और प्रमुख बाद में उसे अनुसमर्थन प्रदान कर देता है तो प्रमुख भी उत्तरदायी होगा।

केस – आर्मरॉड बनाम क्रासविले मोटर सर्विस लिमिटेड, (1953) 2 ऑल ई. आर. 753

कार के स्वामी ने अपने मित्र को कार चलाने के लिये दी। मित्र द्वारा कार चलाते समय कार एक बस से टकरा गई। कार के स्वामी को उत्तरदायी ठहराया गया।

केस – लॉयड बनाम ग्रेस स्मिथ एण्ड कम्पनी (1912) ए.सी.716

इस वाद में उसने ग्रेस स्मिथ एण्ड कम्पनी के कार्यालय से, जो सालीसीटरों की एक फर्म थी, सम्पर्क स्थापित किया और अपनी सम्पत्ति के निमित्त आवश्यक सलाह माँगी। कम्पनी के प्रबन्धकीय क्लर्क ने उसकी बातों को सुना और उसे यह सलाह दी कि वह दोनों कुटीरों को बेच दे, और उससे प्राप्त धन का उपयोग किसी अन्य रीति से करे। श्रीमती लायड से कहा गया है कि वह दो दस्तावेजों पर अपने हस्ताक्षर कर दे, वे दस्तावेज उसके समक्ष प्रस्तावित विक्रय-प्रपत्र के रूप में प्रस्तुत किये गये। वास्तव में जिन दस्तावेजों पर महिला से हस्ताक्षर कराये गये वे स्वयं उसी क्लर्क के पक्ष में लिखे गये दान प्रपत्र थे।

उसके बाद उस क्लर्क ने सम्पत्ति को बेच दिया और उससे प्राप्त धनराशि का दुर्विनियोग कर दिया। क्लर्क ने केवल अपने लाभ के लिये यह सब किया था और उसके प्रमुख को उसके इन कार्यों का कुछ भी ज्ञान न था। यह धारित किया गया कि चूंकि अभिकर्ता ने अपने प्रमुख के प्रकट अथवा दृश्यमान प्राधिकार के अन्तर्गत कार्य किया था, अतः प्रमुख (Principal) अपने अभिकर्ता द्वारा किये गये कपट के लिये उत्तरदायी था।

केस – स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया बनाम श्याम देवी (ए.आई.आर.1978) एस.सी.1263

वादी के पति ने कुछ धनराशि और चेक अपने मित्र को दिये। उसका मित्र प्रतिवादी बैंक का एक कर्मचारी था। धनराशि और चेक वादी के खाते में जमा करने के लिये दिये गये थे। इन्हें जमा करने की कोई उचित रसीद बैंक के कर्मचारी द्वारा नहीं दी गई। वास्तव में बैंक के कर्मचारी ने धनराशि का दुर्विनियोग कर लिया।

उच्चतम न्यायालय द्वारा यह धारित किया गया कि बैंक के कर्मचारी द्वारा जब कपट किया गया था, तब तक बैंक के नियोजन के अनुक्रम में कार्य नहीं कर रहा था, बल्कि जमाकर्ता के मित्र के रूप में अपनी निजी क्षमता के अन्तर्गत कार्य कर रहा था। अतः प्रतिवादी बैंक को उसके लिये उत्तरदायी नहीं बनाया जा सकता।

(2) किसी फर्म के भागीदारों के अपकृत्य के लिये दायित्व (Liability for Torts of Partners of a firm ) :

यदि किसी फर्म का कोई भागीदार फर्म के कारबार के अनुक्रम में कोई अपकृत्य करता है तो उस फर्म के अन्य भागीदार भी उसी सीमा तक उत्तरदायी होंगे जितना कि वास्तव में अपकृत्य करने वाला भागीदार उत्तरदायी है। प्रत्येक भागीदार का उत्तरदायित्व संयुक्त और पृथक् दोनों होता है।

केस – हैमलिन बनाम होस्टन एण्ड कम्पनी (1903) 

इस वाद में प्रतिवादी की फर्म में दो भागीदार थे जिनमें से एक ने अपने प्राधिकार में कार्य करते हुए वादी के क्लर्क को रिश्वत दी ताकि वह वादी के व्यापार की गोपनीय बातें उसे बता दे। इस कार्य के लिये दोनों भागीदारों को उत्तरदायी ठहराया गया जबकि दोषपूर्ण कार्य केवल एक भागीदार ने किया था।

(3) सेवक के अपकृत्य के लिये स्वामी (मालिक) का दायित्व (Liability of Master for Torts of Servant ) :

यदि अपने नियोजन के अनुक्रम में कोई सेवक अपकृत्य करता है तो उसके लिए उसका स्वामी उत्तरदायी होगा। स्वामी का उत्तरदायित्व “प्रतिवादी उत्कृष्ट” (Respondent Superior) एवं “qui facit per alium facit per se” अर्थात् यदि कोई व्यक्ति दूसरे के माध्यम से कार्य करता है तो विधि के अधीन यह माना जाएगा कि उक्त कार्य उसने स्वयं किया है, के सिद्धांतों पर आधारित है।

यदि सेवक ने कार्य करने में असावधानी बरती हो या उसने अपने स्वामी के आदेशों का जानबूझकर उल्लंघन किया हो या यदि सेवक ने स्वामी के आदेशों का पालन करने में भूल या चूक की हो या कपट किया हो या किसी अन्य को सेवाएँ सुपुर्द की हों तो इन सभी परिस्थितियों में मालिक उत्तरदायी होगा।

सेवक उस व्यक्ति को कहा जाता है – जो स्वामी के निर्देश और नियंत्रण के अनुसार कार्य करने हेतु नियोजित किया जाता है। किसी स्वतंत्र ठेकेदार को सेवक नहीं माना जा सकता क्योंकि वह एक निश्चित कार्य एक निश्चित प्रतिफल के लिये करता है जिसमें वह अपना विवेक इस्तेमाल करता है और उस पर स्वामी का नियंत्रण नहीं होता। अतः स्वतंत्र ठेकेदार द्वारा किये गये कृत्य के लिये स्वामी उत्तरदायी नहीं होता। 

उदाहणार्थ : ‘क’ का ड्रायवर उपेक्षापूर्वक गाड़ी चलाकर ‘ख’ को टक्कर मार देता है ऐसे में ‘क’ उत्तरदायी है लेकिन यदि ‘क’ कहीं जाने के लिये भाड़े पर टैक्सी लेकर यात्रा करे और उस टैक्सी से कोई दुर्घटनाग्रस्त हो जाए तो फिर ‘क’ को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।

इस सामान्य नियम के भी कुछ अपवाद हैं जब स्वतंत्र ठेकेदार के कार्यों के लिये भी नियोजक उत्तरदायी होता है। जिसमें कठोर दायित्व के मामले प्रमुख हैं।

(4) बालकों के अपकृत्य के लिए माता-पिता या संरक्षक का दायित्व (Liability of Parents or Guardian for Torts of Child) :

अपकृत्य विधि के अन्तर्गत व्यथित पक्षकार को अपकृत्य करने वाले से क्षति दिलाई जाती है परन्तु यदि अपकृत्य किसी बालक द्वारा किया गया हो तो उन पर क्षतिपूर्ति का दायित्व अधिरोपित करना संभव नहीं है क्योंकि उनकी स्वयं की कोई आय नहीं होती। ऐसी स्थिति में व्यथित पक्षकार क्षतिपूर्ति से वंचित न हो इसलिए क्षतिपूर्ति का दायित्व बालक के माता-पिता या संरक्षक, यथास्थिति, पर अधिरोपित किया गया है।

प्रतिनिधिक दायित्व (Vicarious Liability) FAQ

  1. प्रतिनिधिक दायित्व (Vicarious Liability) क्या है ?

    सामान्यतया कोई व्यक्ति अपने कृत्यों के लिये दायी होता है लेकिन कुछ ऐसे अपवाद हैं जब कोई व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के कृत्यों के लिये भी विधि द्वारा दायी ठहराया जाता है चाहे वह निर्दोष ही क्यों न हो|

  2. प्रतिनिधिक दायित्व का सिद्धान्त किन सूत्रों पर आधारित है ?

    प्रतिनिधिक दायित्व का सिद्धान्त दो सूत्रों पर आधारित है-
    (1) क्वी फासिट पर एलियम फेसिट पर सी(Qui facit per alium facit per se)
    2. रेस्पोन्डेन्ट सुपीरियर (Respondent superior )

  3. प्रतिनिधिक दायित्व कितने प्रकार से उत्पन्न होता है ?

    प्रतिनिधिक दायित्व निम्नलिखित तीन प्रकार से उत्पन्न होता है-
    1. अनुसमर्थन द्वारा उत्पन्न दायित्व (Liability by ratification)
    2. विशिष्ट सम्बन्धों के द्वारा (By special Relationship)
    3. दुष्प्रेरण द्वारा उत्पन्न दायित्व (By Abetment)

संदर्भ- 

1. अपकृत्य विधि-आर.के. बंगिया

2. अपकृत्य विधि- जयनारायण पाण्डेय

3. अपकृत्य विधि- एम एन शुक्ला