मुसलमान कौन है?
मुसलमान कौन है?:-
‘मुसलमान’ शब्द “मुसल्लम-ईमान” शब्द से निर्मित हुआ है। ‘मुसल्लम-ईमान’ शब्द का तात्पर्य है- पूर्ण आस्था।
इस्लाम धर्म को मानने वाला प्रत्येक व्यक्ति मुसलमान कहलाता है ।
इस्लाम में निम्नलिखित सिद्धांतों पर विश्वास रखना अनिवार्य है –
- तौहीद – अल्लाह केवल एक और केवल एक है।
- रसूल – मोहम्मद पैगंबर अल्लाह के अंतिम दूत है ।
व्यक्ति जोकि उपयुक्त दो सिद्धांतों में पूर्ण विश्वास रखता है मुसलमान है |
इस्लाम के आधारभूत स्तंभ (सिद्धांत)
मुसलमान कौन है?- प्रत्येक मुसलमान का कर्तव्य है कि वह निम्नलिखित 5 सिद्धांतों का पालन करें।
1- तौहीद में पूर्ण विश्वास – प्रत्येक मुसलमान का यह कर्तव्य होता है कि वह कलमा “ला इलाहा इलल्लाहु मुहम्मदुर्रसूलुल्लाहि” विश्वास रखें अर्थात उसका अल्लाह की एकात्मा में पूर्ण विश्वास हो एवं मोहम्मद पैगंबर को अल्लाह का अंतिम दूत माने।
2-नमाज-यह मुस्लिम धर्म का दूसरा कर्तव्य है कि प्रत्येक मुसलमान के द्वारा पांच बार (प्रातः, मध्यान्ह, मध्यान्ह के पश्चात्,सूर्यास्त और रात्रि में) मक्का की तरफ अपना मुंह करके नमाज अदा करें।
3-दान(zakat) — मुसलमानों का यह तीसरा धार्मिक कर्तव्य है कि वह अपनी आय का कुछ भाग गरीबों और फकीरोंं में दान करें एवं पुण्यात संस्थाएं चलाएं।
4-रोजा(fast)-प्रत्येक मुसलमान का यह कर्तव्य है कि वह रमजान के महीने में रोजा रखे और सूर्योदय से सूर्यास्त तक भोजन व पानी ग्रहण ना करें।
5-हज (तीर्थ यात्रा)–इसलाम धर्म का यह अंतिम कर्तव्य है की ऐसे मुसलमान जो आर्थिक एवं शारीरिक रूप से सक्षम है जीवन में एक बार मक्का का पवित्र दर्शन अवश्य करें।
किन्तु न्यायालयों के प्रयोजनार्थ, उपर्युक्त पाँचों सिद्धान्तों का पालन करना मुस्लिम होने के लिये आवश्यक नहीं है। ऐसा निर्णीत किया गया है कि मुस्लिम विधि के प्रयोजनों के लिये, वह व्यक्ति मुस्लिम माना जायेगा जो तौहीद और रसूल में विश्वास करता है अर्थात् जो यह विश्वास करता है कि प्रथमतः खुदा एक है और एक के अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं, द्वितीयत: यह कि मोहम्मद साहब खुदा के दूत या रसूल थे।
अमीर अली का कथन है कि जो कोई इस्लाम धर्मावलम्बी है, अर्थात् जो अल्लाह के एकत्व और मोहम्मद की पैगम्बरी में विश्वास करता है, वह मुसलमान है।
केस – नरौतकर्थ बनाम पाराखल ,ए० आई० आर० 1923 मद्रास 171.
इस वाद में यह धारित किया गया था कि इस्लाम का सारभूत सिद्धान्त यह है कि अल्लाह एक है और मोहम्मद उसके रसूल (या दूत) हैं और इसके अतिरिक्त और कोई विश्वास कम से कम विधि के न्यायालयों के लिये निष्प्रयोज्य है।
न्यायालयों के द्वारा किसी व्यक्ति के मुसलमान होने का निर्धारण निम्नलिखित दो आधारों पर किया जाता है:-
1- जन्मता से मुसलमान कौन है?-
किसी व्यक्ति के जन्म के समय यदि उसके माता या पिता दोनों ही मुस्लिम रहे हो तो वह व्यक्ति मुस्लिम माना जाएगा ।
हेदाया के अनुसार–यदि माता-पिता में से किसी एक का भी धर्म इस्लाम रहा हो तब भी वह व्यक्ति मुस्लिम ही माना जाएगा।
परंतु भारतीय अदालतों के द्वारा यह निर्णय दिया गया कि यदि किसी व्यक्ति के जन्म के समय माता या पिता में से केवल एक ही मुस्लिम रहे हो तो उसको मुस्लिम तब ही माना जाएगा जब यह सिद्ध हो जाएगा उसका लालन-पालन एक मुस्लिम की भांति हुआ है।
जैसा कि
केस-भैया शेर बहादुर बनाम भैया गंगाबक्स सिंह,
के वाद में निर्धारित किया गया कि इस मामले में बच्चे की मां एक मुस्लिम थी एवं उसका पिता एक हिंदू था एवं उस बच्चे का लालन-पालन हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार किया गया न्यायालय के द्वारा उस बच्चे को हिंदू ही माना गया ।
2-समपरिवर्तित मुसलमान कौन है? –
किसी भी धर्म को मानने वाला व्यक्ति जो वयस्क तथा स्वस्थ मस्तिष्क का है अपने मूल धर्म का त्याग करके मुस्लिम धर्म स्वीकार कर सकता हैं ।इस्लाम धर्म में समपरिवर्तन दो प्रकार से हो सकता है।
- कोई भी गैर मुस्लिम जो मुस्लिम बनना चाहता है वह अपने इस आशय की घोषणा कर दे कि उसने अपने मूल धर्म का त्याग करके इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया है तथा अल्लाह की एकाग्रता (तौहीद )एवं पैगंबर मोहम्मद रसूल(massenger of god) होने में विश्वास करने लगा है।
- 2. दूसरी विधि यह है कि वह व्यक्ति किसी मस्जिद में जाए एवं इमाम के द्वारा कलमा पढ़ाया जाए एवं उसका नाम परिवर्तन करके कोई मुस्लिम नाम दे दिया जाए ।
यह समपरिवर्तन दुराशय पूर्ण नहीं होना चाहिए जैसा कि
केस – सरला मुद्गल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, 1995
इस वाद में निर्धारित किया गया कि यदि समपरिवर्तन का उद्देश्य केवल मुस्लिम रीति रिवाजों के अनुसार लाभ प्राप्त करना है तब बह समपरिवर्तन वैध नहीं होगा ।
इस मामले में एक हिंदू पति इस्लाम में समपरिवर्तित हो जाता है किंतु उसने अपनी पहली पत्नी से विवाह विच्छेद किए बिना ही दूसरा विवाह एक मुस्लिम महिला से कर लिया सुप्रीम कोर्ट ने समपरिवर्तित दुराशय के कारण द्विविवाह नहीं माना तथा दूसरा विवाह शून्य घोषित कर दिया एवं पति को आईपीसी की धारा 494 के अंतर्गत दंडित किया गया ।
संदर्भ:-
- मुस्लिम विधि – पारस दीवान|
- मुस्लिम विधि – अकील अहमद |
- indiankanoon.com
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