राज्य का दायित्व (Liability of the State)
राज्य कृत्य (Act of State) : जब राज्य के सेवक उन विदेशियों को क्षति पहुँचाते हैं जिन पर राष्ट्रीय विधि लागू नहीं होती ऐसे कृत्य “राज्य कृत्य” कहलाते हैं।
राज्य कृत्य के आवश्यक तत्व निम्नानुसार हैं :-
(क) राज्य के किसी प्रतिनिधि द्वारा कृत्य किया गया हो।
(ख) विदेशी राज्य या उसकी प्रथा के लिये कृत्य कारक हो
(ग) राज्य की पूर्व मंजूरी हो या बाद में राज्य ने उस कृत्य का अनुसमर्थन किया हो।
राज्य का प्रतिनिधिक दायित्व ( Vicarious Liability of State) :
इंग्लैण्ड की विधि में पहले यह सिद्धांत था “राजा कभी गलत कार्य नहीं करता” अर्थात सम्राट के विरुद्ध कोई वाद नहीं लाया जा सकता था। यदि सेवक द्वारा अनुचित कार्य किया जाता है तो उसके गलत कार्य के लिए राजा जिम्मेदार नहीं हो सकता है। सन् 1947 में क्राउन प्रोसिडिंग्स एक्ट के पारित होने के बाद इस स्थिति में पूर्ण परिवर्तन हो गया और यह व्यवस्था की गई कि सम्राट अपने सेवकों द्वारा किये गये अपकृत्य के लिए उसी तरह उत्तरदायी है जिस तरह कोई गैर सरकारी व्यक्ति उत्तरदायी होता है।
क्राउन प्रोसीडिंग्स ऐक्ट, 1947 की धारा 2 (1) में व्यवस्था की गई है कि-
“इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन, सम्राट उन समस्त अपकृत्यों के लिये उत्तरदायी होंगे, जिनके लिये पूर्ण आयु और क्षमता का कोई गैर सरकारी व्यक्ति, निम्र के प्रति उत्तरदायी हो सकता है-
(क) अपने सेवकों अथवा अभिकर्ताओं द्वारा किये गये अपकृत्य के लिये;
(ख) ऐसे कर्तव्यों के भंग के सन्दर्भ में जिसे कोई व्यक्ति, इंग्लिश कामन लॉ द्वारा नियोजक होने के नाते, अपने सेवकों अथवा अभिकर्ताओं के प्रति धारित करता है; और
(ग) ऐसे किसी भी कर्तव्य के भंग पर जिसे इंगलिश कॉमन लॉ के अन्तर्गत सम्पत्ति के स्वामित्व,दखल, अधिभोग, कब्जा अथवा नियन्त्रण के साथ सम्बद्ध किया गया है।
परन्तु इस उपधारा के पैरा (क) के कारण सम्राट के किसी सेवक अथवा अभिकर्ता के किसी कार्य अथवा लोप के सन्दर्भ में सम्राट के विपरीत तब तक कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती, जब तक कि, इस अधिनियम के प्रावधानों से परे, कार्य अथवा लोप उस सेवक या अभिकर्ता या उसको परिसम्पदा के विपरीत कार्यवाही का कोई आधार नहीं उत्पन्न कर देता। “
भारतीय स्थिति (Indian position)
इंग्लैण्ड के क्राउन प्रोसीडिंग्स ऐक्ट, 1947 की भाँति भारत में ऐसा कोई सांविधिक प्रावधान नहीं है। जिसमें राज्य का उत्तरदायित्व उल्लिखित किया गया हो।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 300 में यह उपबंधित किया गया है कि वाद और कार्यवाहियों के प्रयोजन के लिये “भारत संघ” और “राज्य” विधिक व्यक्ति होंगे। यद्यपि भारत संघ और राज्य सरकारें वाद ला सकेंगे एवं उनके विरुद्ध भी वाद लाया जा सकेगा।
लेकिन राज्य का दायित्व क्या होगा? क्या राज्य सेवकों के अपकृत्य के प्रति उत्तरदायी होगा या नहीं, इस सम्बन्ध में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। ऐसी परिस्थिति में यही माना जा सकता है कि राज्य का दायित्व वही होगा जो भारत सरकार के पूर्व अधिनियमों में था। पूर्व अधिनियमों में भारत सरकार का दायित्व ईस्ट इंडिया कम्पनी के बराबर माना गया था।
अतः यह जानने के लिये कि क्या राज्य किसी विशेष कार्य के लिये उत्तरदायी है अथवा नहीं, हमें सन् 1858 ई० से पूर्व ईस्ट इण्डिया कम्पनी के समय की स्थिति जाननी होगी।
केस – पेनिनशुलर एण्ड ओरियन्टल स्टीम नेवीगेशन कम्पनी बनाम सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फॉर इण्डिया (1861)
इस मामले में कम्पनी के सेवक एक लोहे का बड़ा टुकड़ा सड़क के पार ले जा रहे थे। सड़क पर घोड़ा गाड़ी को आते हुये देखकर कंपनी के नौकरों ने लोहे का टुकड़ा वहीं सड़क पर पटक दिया एवं स्वयं दूर भाग गये। नौकरों की इस लापरवाही से वादी के घोड़ों को चोट लग गई। वादी ने इस बात पर ईस्ट इंडिया कंपनी पर क्षतिपूर्ति का दावा किया। न्यायालय ने प्रतिवादी को क्षतिपूर्ति के लिये उत्तरदायी माना।
न्यायाधीश महोदय ने यह स्पष्ट किया कि सम्प्रभु कार्य (Sovereign junction) के लिये कंपनी की जिम्मेदारी नहीं होती है। सम्प्रभु कार्य से कार्य होते हैं जो सम्प्रभु के प्राधिकार से किये जाते हैं और उनके अलावा अन्य व्यक्ति नहीं कर सकता है। चूँकि लोहे का टुकड़ा ले जाने का कार्य कोई भी व्यक्ति कर सकता है इसलिये यह सम्प्रभु कार्य नहीं है एवं कम्पनी जिम्मेदार है। किन्तु इस वाद में प्रभुता सम्पन्न शक्ति को स्पष्ट नहीं किया गया
केस – विद्यावती बनाम लोकूमल, ए. आई. आर. 1957 राज. 305
इस मामले में वादिनी के पति की मृत्यु राजस्थान राज्य के कर्मचारी द्वारा चलाई जा रही सरकारी जीप से कुचलने के कारण हुई। राजस्थान उच्च न्यायालय ने राज्य को साधारण नियोजक की तरह इसके लिये उत्तरदायी ठहराया। इस निर्णय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में की गई अपील में उच्चतम न्यायालय ने राजस्थान उच्च न्यायालय के उपर्युक्त निर्णय को संपुष्टि प्रदान की। इसे राजस्थान राज्य बनाम विद्यावती, ए.आई. आर. 1962 एस.सी. 933 में रिपोर्टित किया गया।
केस – सेक्रेटरी ऑफ स्टेट बनाम हरी भांजी, (1961) 5 बॉम्बे एच. सी. आर. एप्प. 1
इस मामले में निर्णय “दिया गया कि जब राज्य के सेवकों का कृत्य राज्य कृत्य न हो तब उनके द्वारा किये गये अपकृत्यों के लिये राज्य उत्तरदायी होता है।
केस – कस्तूरी लाल बनाम उत्तरप्रदेश राज्य, ए.आई. आर. 1965 एस.सी. 1039
इस मामले में कस्तूरी लाल नामक व्यक्ति को पुलिस ने इस सन्देह में कि उसके पास चोरी का सोना है, सोना समेत गिरफ्तार किया और सोना पुलिस के मालखाने में जमा कर दिया गया। मालखाने का हेड मुहर्रिर उस सोने को लेकर पाकिस्तान भाग गया। वाद के विचारण में कस्तूरी लाल को निर्दोष पाया गया, अतः कस्तूरी लाल ने सोने को सरकारी मालेखाने से वापस पाने की प्रार्थना की परन्तु सरकार ने यह कहकर कि सोना खो गया है वापस देने में असमर्थता जाहिर की जिस पर कस्तूरी लाल ने राज्य सरकार के प्रति क्षतिपूर्ति का वाद चलाया।
सुप्रीम कोर्ट ने इस वाद में यह निर्णय दिया कि यद्यपि पुलिस अधिकारी ने लापरवाही से कार्य किया था परन्तु उस अधिकारी को गिरफ्तारी एवं सोना मालखाने में जमा करने का कानूनी अधिकार प्राप्त था, अतः राज्य उस कृत्य से हुई क्षति के लिये उत्तरदायी नहीं है।
केस -नगेन्द्र राव बनाम स्टेट ऑफ आन्धप्रदेश, ए.आई. आर. 1994 एस.सी. 2663
इस वाद में उच्चतम न्यायालय ने अपने सेवकों की उपेक्षा के लिये राज्य के प्रतिनिधिक दायित्व के विषय में विचार किया तथा अपने द्वारा दिये गये विद्यावती तथा कस्तूरी लाल के पहले दिये गये निर्णयों को तथा विधि आयोग (Law Commission) की प्रथम रिपोर्ट में दी गई सिफारिश की ओर ध्यान दिया जिसमें यह कहा गया है कि राज्य का अपने सेवकों की अपेक्षा के लिये दायित्व संविधि द्वारा उसी प्रकार मान्य होना चाहिये जैसा कि इंग्लैण्ड में क्राउन प्रोसीडिंग्स एक्ट, 1947 (Crown Proceedings Act, 1947) तथा अमरीका में फेडरल टार्ट्स क्लेम्स ऐक्ट, 1946 (Federal Torts Claims Act, 1946) द्वारा मान्य है।
अतः यह धारित किया गया कि राज्य का सम्प्रभु शक्ति के आधार पर उत्तरदायित्व से मुक्ति का सिद्धान्त अब सुसंगत (relevant) नहीं है।
इस वाद के तथ्यों के अनुसार यह भी धारित किया गया कि यदि राज्य द्वारा कब्जा की गई वस्तु की राज्य के सेवकों की उपेक्षा के स्वरूप तथा मात्रा में कोई कमी अथवा क्षति होती है तो उस वस्तु के मूल्य वसूली के वाद को राज्य की सम्प्रभु शक्ति के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता।
केस -मध्यप्रदेश राज्य बनाम रत्ना देवी, 1991 ए. सी. जे. 166
इस मामले में एक सरकारी जीप के ड्राइवर द्वारा दो यात्रियों को अनधिकृत तौर से लिफ्ट दी परंतु दुर्घटना के कारण उनकी मृत्यु हो गई। मृतकों के आश्रितों द्वारा प्रतिकर के लिये लाये गये वाद में निर्णय दिया गया कि राज्य सरकार स्वामी होने के नाते प्रतिकर देने के लिये उत्तरदायी है अतः उस पर प्रतिनिधिक दायित्व अधिरोपित किया गया।
केस – सी० रामकोण्डा रेड्डी बनाम स्टेट ऑफ आन्ध्र प्रदेश ,ए.आई.आर. 1989
इस वाद में पुलिस द्वारा उचित चौकसी न होने के कारण कुछ दुराचारी रात के समय सीढ़ी लगाकर जेल में घुस गये और वहाँ के वासियों पर हथगोले फेंके जिससे उनमें से एक की मृत्यु हो गई तथा एक अन्य घायल हो गया। इसे संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदान जीवन के अधिकार (Right to life) का अतिक्रमण माना गया तथा क्षतिपूर्ति प्रदान की गई। इस वाद में यह भी अभिनिर्धारित किया गया कि जब संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन के अधिकार का अतिक्रमण होता है तो अनुच्छेद 300 में निहित सम्प्रभु की शक्ति (Sovereign power) का अधिकार लागू नहीं होता तथा राज्य को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
केस – अनन्त नेगी बनाम हिमाचल प्रदेश (ए० आई० आर० 2004 हिमाचल प्रदेश, 1)
इस वाद में वन अधिकारियों के द्वारा जब्त टिम्बर को सुरक्षित स्थान पर न रखे जाने के कारण वर्षा धूप से टिम्बर की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ा। न्यायालय ने वन विभाग को असावधानी के लिए प्रतिनिहित रूप से जिम्मेदार माना।
केस – मध्य प्रदेश राज्य बनाम शान्ती बाई (ए० आई० आर० 2005 म० प्र० 6)
इस वाद में कुछ विद्यार्थियों एवं उपद्रवी तत्वों द्वारा उत्पात मचाये जाने के कारण पुलिस को हवा में गोलियाँ चलानी पड़ीं जिसके फलस्वरूप वादिनी का पति जो अपने मकान की छत पर खड़ा था गोली लगने से आहत हो गया और बाद में उसकी मृत्यु हो गई। न्यायालय ने राज्य को निर्देशित किया कि वह वादिनी को 75000 रुपये भुगतान करे जिसमें 25,000 रुपये मृतक के इलाज में हुआ खर्च तथा 50,000 रुपये उसकी मृत्यु के लिए मुआवजा राशि सम्मिलित थी।
केस – मुख्य सचिव, कर्नाटक राज्य बनाम रमेश (ए० आई० आर० 2005 कर्नाटक 41 )
इस वाद में पुलिस निरीक्षक द्वारा हवा में चलाई गई गोली से एक व्यक्ति घायल हो गया। न्यायालय ने अवधारित किया कि निःसंदेह कानून-व्यवस्था को बनाये रखने का कार्य राज्य को सम्प्रभु शक्ति के अन्तर्गत आता है, परन्तु परिस्थिति को देखते हुये क्या गोली चलाना अत्यावश्यक है—यह साक्ष्य का विषय है और यदि बिना औचित्य के गोली चलाकर किसी को घायल किया जाता है तो राज्य इसके लिए दायित्वाधीन होगा।
केस – पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबटीज बनाम भारत संघ (AIR 1997 S.C. 1203)
इस वाद में पुलिस द्वारा नकली मुठभेड़ (Fake-encounter) में दो व्यक्तियों को मार दिये जाने पर उनके परिवारों को प्रतिकर प्रदान कराया। न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि ऐसे मामलों में राज्य संप्रभु की विमुक्ति सिद्धान्त का प्रतिवाद नहीं लिया जा सकता है।
राज्य कृत्य (Act of State) FAQ
राज्य कृत्य (Act of State) क्या है ?
जब राज्य के सेवक उन विदेशियों को क्षति पहुँचाते हैं जिन पर राष्ट्रीय विधि लागू नहीं होती ऐसे कृत्य “राज्य कृत्य” कहलाते हैं।
राज्य कृत्य के आवश्यक तत्व क्या हैं?
राज्य कृत्य के आवश्यक तत्व निम्नानुसार हैं :-
(क) राज्य के किसी प्रतिनिधि द्वारा कृत्य किया गया हो।
(ख) विदेशी राज्य या उसकी प्रथा के लिये कृत्य कारक हो
(ग) राज्य की पूर्व मंजूरी हो या बाद में राज्य ने उस कृत्य का अनुसमर्थन किया हो।
संदर्भ-
- अपकृत्य विधि-आर.के. बंगिया
- अपकृत्य विधि- जयनारायण पाण्डेय
- अपकृत्य विधि- एम एन शुक्ला
- अपकृत्य विधि -भीमसेन खेत्रपाल