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विबंध और पूर्वन्याय (प्राड्न्याय) में अंतर | Difference Between Res Judicata and Estoppel in hindi

विबंध और पूर्वन्याय (प्राड्न्याय) में अंतर

विबंध और पूर्वन्याय (प्राड्न्याय) में अंतर:-

विबंध की परिभाषा क्या है?

 भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 115 में विबंध के नियम के बारे में कहा गया है “जबकि एक व्यक्ति ने अपनी घोषणा कार्य या लोप द्वारा अन्य व्यक्तियों को विश्वास कराया है या कर लेने दिया है की कोई बात सत्य है और ऐसे विश्वास पर कार्य कराया या करने दिया है, तब न तो उसे और न उसके प्रतिनिधि को अपने और ऐसे व्यक्ति के, या उसके प्रतिनिधि के बीच किसी वाद या कार्यवाही में उस बात की सत्यता का प्रत्याख्यान करने दिया जाएगा।”

विबंध के उदाहरण-

  • यदि थानोस, कंपनी XYZ का कर्मचारी है, लेकिन अदालत में, वह उस कंपनी का कर्मचारी होने से इनकार करता है, तो बाद में वह उस कंपनी से वेतन और परिलब्धियों का दावा नहीं कर सकता है। 
  • एम, एन के घर में एक किरायेदार, क्यू , को झूठा प्रतिनिधित्व करता है कि उसके पास संपत्ति पर हस्तांतरणीय अधिकार था और उसके बाद संपत्ति को एन को स्थानांतरित कर दिया गया था, बाद में, यह दावा नहीं कर सकता कि संपत्ति में उसका कोई हस्तांतरणीय हित नहीं था। उसे एस्टोपेल के सिद्धांत के तहत ऐसा करने से रोका जाएगा।

केस:- पिकार्ड बनाम सीपर्स(1837) 6 एड. ई.आई.569

धारा 115 इस मामले पर आधारित है, जिसमें यह कहा गया था कि “जहां पर कोई व्यक्ति अपने शब्द या आचरण द्वारा जानबूझकर दूसरे व्यक्ति को यह विश्वास दिलाता है कि किसी तथ्य का अस्तित्व है और उस विश्वास के आधार पर कार्य करने के लिए उस दूसरे व्यक्ति को प्रेरित करता है, ताकि उसकी पूर्व स्थिति बदल जाए तो इसमें प्रथम व्यक्ति को उस तथ्य के विषय में अन्य रूप में कहने से रोक दिया जाएगा।”

रेस जुडिकेटा (प्राड्न्याय)का सिद्धांत क्या है ?

सिविल प्रक्रिया संहिता 1908, की धारा 11 में रेस जुडिकेटा (प्राड्न्याय)का सिद्धांत तीन रोमन सूक्तियों पर आधारित है।

  • एक ही वाद कारण को पुनः विवादित नहीं किया जा सकता। (Nemo debet lis vaxari pro eadem causa )
  • राज्य का हित मुकदमेबाजी को समाप्त करने में है। (Interest republicae ut sit finis litium)
  • एक न्यायिक निर्णय को सही माना जाना चाहिए। (Re judicata pro veritate occipitur)

रेस जुडिकेटा का प्रथम उद्देश्य यह है कि व्यर्थ के मुकदमेबाजी को बढ़ावा न देना, यह रोमन सूत्र “INTEREST REPUBLIC UT SIT FIT LITIUM” पर आधारित है। जिसके तहत राज्य का यह कर्त्वय है कि  मुकदमेबाजी को बढ़ाया नहीं जाना चाहिए बल्कि मुकदमेबाजी को समाप्त करना चाहिए।

विबंध और पूर्वन्याय (प्राड्न्याय) में अंतर:- 

विबंध(Estoppel) पूर्वन्याय(Res judicata)
1. विबंध किसी व्यक्ति को एक समय पर एक बात और दूसरे समय पर उसी के विपरीत दूसरी बात कहने से रोकता है। 1. पूर्वन्याय एक ही विषय को दो बार सुनने की न्यायालय की अधिकारिता को समाप्त कर दिया है अर्थात एक बार निर्णीत विषय पर पुनर्विचार नहीं हो सकेगा।
2. विबंध साक्ष्य का नियम है तथा साम्य पर आधारित है। 2. यह प्रक्रियात्मक विधि का अंग है तथा एक ही विषय को दुबारा वाद का विषय न बनाए जाने के सिद्धांत पर आधारित है।
3. यह पक्षकार के मुंह को बंद करता है। 3. यह न्यायालय के क्षेत्राधिकार को समाप्त करता है।
4. विबंध साम्या, न्याय और शुद्ध अंतःकरण के सिद्धांत पर आधारित है। 4. पूर्वन्याय लोकनीति पर आधारित है।
5. विबंध पक्षकार के कार्य ,लोप या आचरण से पैदा होता है। 5. पूर्वन्याय न्यायालय के निर्णय से पैदा होता है।
6. विबंध की उत्पत्ति किसी व्यक्ति के व्यपदेशन तथा आचरण से होती है। 6. पूर्वन्याय की उत्पत्ति न्यायालय के निर्णय से होती है।
7. विबंध किसी व्यक्ति को सिविल मामलों में अपने पूर्व कथन को सत्यता का खंडन करने से रोकता है। 7. पूर्वन्याय न्यायालय को ऐसे मामलों की पुनः सुनवाई करने से रोकता है जो पहले किसी सक्षम न्यायालय द्वारा निर्णीत किया जा चुका है।
8. विबंध पक्षकारों के आचरण से अनुमानित किया जा सकता है। 8. पूर्वन्याय दावा सक्षम न्यायालय के पूर्व निर्णय के आधार पर किया जाता है जिसमें उन्हीं पक्षकारों के बीच उन्हीं वाद बिंदुओं को निर्णीत किया गया था।
9. विबंध का सिद्धांत साक्ष्य अधिनियम की धारा 115 में वर्णित है। 9. पूर्वन्याय के सिद्धांत का उल्लेख सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 11 में किया गया है।

 

सन्दर्भ: –

  • भारतीय साक्ष्य अधिनयम – राजाराम यादव
  •  भारतीय साक्ष्य अधिनियम ,1872
  • https://en.wikipedia.org/wiki/Estoppel

 

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