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समन और वारंट मामला क्या होते है | Summons Case and Warrant Case in Hindi

समन  और वारंट मामला में अंतर

समन और वारंट मामला क्या होते है (Summons Case and Warrant Case in Hindi)

विचारण के लिए प्रक्रिया की दृष्टि से मामलों को दो भागों में विभाजित किया गया है:-

  1. समन मामला |
  2. वारंट मामला |

समन – मामला क्या है ?(Summons-Case):- 

दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 2 (ब) के अनुसार,” समन- मामला” से ऐसा मामला अभिप्रेत है जो किसी अपराध से संबंधित है और जो वारंट – मामला नहीं है।

सरल भाषा में कहा जा सकता है कि ऐसा मामला –

  1. जो किसी अपराध से संबंधित है,
  2. जो वारंट मामला नहीं है,
  3. जिसमें 2 वर्ष से कम कारावास का प्रावधान है,

 समन – मामलों में सामान्यता अभियुक्त को प्रथम बार समन जारी किया जाता है। लेकिन यदि मजिस्ट्रेट द्वारा वारंट जारी कर दिया जाता है तो वारंट जारी कर दिए जाने मात्र से मामलों की प्रकृति में परिवर्तन नहीं हो जाएगा।

“धारा 87 के अनुसार समन मामलों में आवश्यक प्रतीत हुआ तो न्यायालय समन के बदले वारंट जारी कर सकता है।”

(2)  वारंट मामला क्या है ? (Warrant-Case) :-

दंड प्रक्रिया संहिता 1973, की धारा 2 (भ) के अनुसार, “वारंट -मामला” में ऐसा मामला अभिप्रेत है जो मृत्यु ,आजीवन कारावास या 2 वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय किसी अपराध से संबंधित है।

 सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि ऐसे अपराधों से संबंधित समस्त मामले, जो 2 वर्ष से अधिक के कारावास से दंडनीय है ,वारंट मामले होते हैं।

समन  और वारंट मामला में अंतर:-

 समन मामला (Summons-Case)

      वारंट मामला (Warrant-Case)

  1. 1. समन मामलों में अभियुक्त को दोष सिद्ध या दोषमुक्त किए जाने के लिए संक्षिप्त विचारण प्रक्रिया को अपनाया जाता है।
  1.  वारंट मामलों में संक्षिप्त प्रक्रिया का अनुसरण नहीं किया जाता है। किसी अभियुक्त के विरुद्ध प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं, इस बात का अबधारण करने के लिए साक्षियों को बुलाया जाना आवश्यक होता है।
  1. समन मामलो में 2 वर्ष तक के कारावास का दंड दिया जा सकता है।
  1. वारंट मामलों में मृत्युदंड, आजीवन कारावास एवं 2 वर्ष से अधिक तक के कारावास का दंड दिया जा सकता है।
  1. ऐसे मामलों में औपचारिक आरोप विचारित करने की आवश्यकता नहीं होती है।
  1. वारंट मामलों में औपचारिक आरोप का विरचित किया जाना आवश्यक है।
  1. समन मामले का विचारण अभियुक्त को सारांश अभियोग सुनाने एवं उसके कथन लेखबद्ध किए जाने से प्रारंभ होता है।
  1. वारंट मामलों का प्रारंभ अभियोजन के साक्ष्य से होता है एवं इसके पश्चात अभियुक्त के कथनों को लेखबद्ध किया जाता है।
  1. समन मामलों में अभियुक्त को अभियोजन पक्ष के  साक्षियों की प्रतिपरीक्षा करने का एक ही अवसर मिलता है।
  1. वारंट मामलों में अभियोजन पक्ष के साक्षियों से प्रति परीक्षा के दो अवसर मिलते हैं- एक आरोप से पूर्व एवं दूसरा आरोप के बाद।
  1. समन मामलों में परिवादी न्यायालय की अनुमति से परिवादी को वापस ले सकता है और ऐसी अवस्था में अभियुक्त को दोषमुक्त कर दिया जाता है।
  1. वारंट मामलों में सामान्यतया परिवाद को वापस लेने की अनुमति नहीं दी जाती है किन्ही विशेष मामलों में जो राज्य से संबंधित हो, बापसी केवल विधि परामर्शदाता द्वारा ही हो सकती है।
  1. समन मामलों में अभियुक्त को दोष सिद्ध या दोषमुक्त ही किया जा सकता है।
  1. वारंट मामलों में अभियुक्त को दोषसिद्ध या दोषमुक्ति के अलावा उन्मोचन का एक और आदेश दिया जा सकता है।
  1. समन मामला एक बार समाप्त हो जाने पर पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता।
  1. वारंट मामलों में अभियुक्त को उन्मोचित किए जाने पर ऐसे मामलों को पुनर्जीवित किया जा सकता है।
  1. समन मामलों में अभियुक्त को ऐसे किसी अपराध के लिए परीक्षित किया जा सकता है जिसका परिवाद में उल्लेख नहीं किया गया है लेकिन जो सिद्ध किए गए या स्वीकार किए गए तथ्यों से स्थापित हो जाता है।
  1. वारंट मामलों में ऐसी अवस्था में एक पृथक आरोप विरचित किया जाता है एवं उसके बारे में अभियुक्त का कथन करने के लिए पूछा जाता है।
समन और वारंट मामला

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भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –

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