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हिन्दू विवाह अधिनियम में किन आधारों पर तालक लिया जा सकता है? | हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13| section 13 of hindu marriage act in hindi

तलाक के आधार

परिचय:- 

तलाक के आधार – प्राचीन काल में तलाक की अवधारणा किसी को नहीं पता थी। वे विवाह को एक पवित्र अवधारणा मानते थे। मनु के अनुसार पति-पत्नी को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता, उनका विवाह सम्बन्ध नहीं तोड़ा जा सकता। बाद में तलाक की अवधारणा तस्वीर में आयी और शादी को समाप्त करने के लिए एक प्रथा के रूप में स्थापित हुई।आमतौर पर आधुनिक भारत हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 में तलाक मुख्य रूप से दोष सिद्धांत पर आधारित था।

हालाँकि, तलाक न्यायिक अलगाव से अलग है, तलाक में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 25 (रखरखाव और गुजारा भत्ता) और धारा 26 (custody , बाल शिक्षा) को छोड़कर पति और पत्नी के सभी पारस्परिक दायित्व और अधिकार समाप्त हो जाते हैं। दूसरी ओर, न्यायिक अलगाव केवल डिक्री के निर्वाह की अवधि के दौरान वैवाहिक अधिकारों और दायित्व को निलंबित करता है

तलाक की अवधारणा :-

जैसा कि हम जानते हैं कि प्राचीन भारत में इस प्रकार की कोई अवधारणा मौजूद नहीं है। मनु ने घोषणा की वैवाहिक संबंध किसी भी मामले में नहीं काटा जा सकता है।

लेकिन आधुनिक भारत में तलाक की अवधारणा मौजूद है, यह पति और पत्नी के सभी पारस्परिक दायित्वों को समाप्त कर देता है| इससे धारा 25 (रखरखाव और गुजारा भत्ता) और धारा 26 (बच्चों की हिरासत, रखरखाव और शिक्षा) को छोड़कर उनके बीच सभी बंधन समाप्त हो जाते हैं। ऐसे बहुत से आधार उपलब्ध हैं जिन पर पति-पत्नी तलाक ले सकते हैं।

हिन्दू विवाह अधिनियम मे किन आधारों पर तालक लिया जा सकता है ?,[धारा (13)]

हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 में उन परिस्थितियों का वर्णन किया गया है जिनके आधार पर तलाक  हो सकता है।

इन आधारों को तीन भागों में बांट सकते हैं :-

1.  पति एवं पत्नी दोनों को समान रूप से प्राप्त  तलाक के आधार (grounds of divorce available to either husband or wife)

  • A. जारता (Adultery) 
  • B. क्रूरता (Cruelty) 
  • C. अभित्याग( Desertion) 
  • D. धर्म परिवर्तन (Conversion):- 
  • E. मस्तिष्क – विकृतता (Unsoundness of mind)
  • F. कोढ़( Leprosy)
  • G. रतिजन्य रोग (Venereal Disease) 
  • H. संसार परित्याग (Renunciation of the world)
  • I. प्रकल्पित मृत्यु (Presumed death)
  • J. न्यायिक पृथक्करण( Judicial separation)
  • K. दांपत्य अधिकार के पुनर्स्थापन की डिक्री का पालन न करना

2. केवल पत्नी को प्राप्त होने वाले तलाक के आधार(Divorce grounds available to wife  only)

  • A. बहु- विवाह (Bigamy)
  • B. पति द्वारा बलात्कार(Rape), गुदामैथुन(Sodomy) अथवा पशुगमन(Bestiality)
  • C. भरण पोषण की डिक्री (Decree of maintenance)
  • D. यौवन का विकल्प( Option of puberty)

3. पारस्परिक सहमति से तलाक के आधार (Divorce by mutual consent) 

 

1. वे आधार जो पति एवं पत्नी दोनों को समान रूप से प्राप्त है(grounds of divorce available to either husband or wife)

विवाह ,जो अधिनियम के लागू होने के पूर्व या पश्चात हुआ हो, में पति या पत्नी निम्नलिखित आधारों पर विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सकते हैं:-

A. जारता के आधार पर तलाक (Adultery):- 

रेयडन ने व्यभिचार को “विवाह के निर्वाह के दौरान एक विवाहित व्यक्ति और विपरीत लिंग के व्यक्ति के बीच सहमति से यौन संभोग के रूप में परिभाषित किया है, न कि दूसरे पति या पत्नी के बीच”।

कई देशों में व्यभिचार की अवधारणा को अपराध नहीं माना जा सकता है। लेकिन हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार, वैवाहिक अपराध में, व्यभिचार को तलाक लेने के लिए सबसे महत्वपूर्ण आधार माना जाता है।

विवाह के पश्चात अपनी पत्नी या अपने पति से  भिन्न किसी व्यक्ति के संग स्वेच्छा से संभोग किया जाना जारता कहलाती है जो कि विवाह विच्छेद का पर्याप्त कारण है। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1)( i) के अनुसार इस आधार पर विवाह विच्छेद की डिक्री पारित की जा सकती है कि दूसरे पक्षकार ने विवाह के अनुष्ठान के पश्चात अपनी पत्नि या अपने पति से भिन्न किसी व्यक्ति के साथ स्वेच्छया मैथुन किया है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण संभव नहीं है अतः इसे परिस्थितिजन्य साक्ष्य से साबित किया जाना चाहिए।

व्यभिचार की अवधारणा को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत विवाह कानून संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा सम्मिलित किया गया था।

केस:-  स्वप्ना घोष बनाम सदानंद घोष

इस मामले में पत्नी ने अपने पति को दूसरी लड़की के साथ उसी बिस्तर पर पड़ा पाया और पड़ोसी ने भी पति के अपराध की पुष्टि की. यहां पत्नी का तलाक हो जाता है।

केस:- साचिन्द्रनाथ चटर्जी बनाम श्रीमती नीलिमा चटर्जी

इस मामले में याचिकाकर्ता और प्रतिवादी की शादी हो चुकी है। शादी के बाद पति पत्नी को उसके गृह नगर में छोड़ देता है ताकि वह अपनी पढ़ाई पूरी कर दूसरे शहर में काम के लिए जा सके। वह महीने में दो-तीन बार उससे मिलने आता था।

बाद में उसने पाया कि उसकी पत्नी व्यभिचार करती है यानी अपने ही भतीजे, चौकीदार आदि के साथ संभोग में शामिल होने के लिए। वादी व्यभिचार के आधार पर तलाक की मांग करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाता है और उसकी याचिका स्वीकार कर ली जाती है और विवाह भंग हो जाता है।

व्यभिचार की अनिवार्यता

  1. पति या पत्नी में से एक, विपरीत लिंग के विवाहित या अविवाहित किसी अन्य व्यक्ति के साथ संभोग में शामिल है।
  2. संभोग स्वैच्छिक और सहमति से होना चाहिए।
  3. व्यभिचार के वक्त शादी चल रही थी।
  4. दूसरे पति या पत्नी के दायित्व को साबित करने के लिए पर्याप्त परिस्थितिजन्य साक्ष्य होना चाहिए।

B. क्रूरता के आधार पर तलाक  (Cruelty) :- 

1976 से पहले, क्रूरता तलाक के लिए आधार नहीं थी। यह न्यायिक पृथक्करण का आधार था। संशोधन अधिनियम द्वारा क्रूरता को तलाक का आधार बनाया गया है।

ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी परिभाषित करती है कि “क्रूरता” शब्द को रेखांकित नहीं किया गया है और इसका उपयोग मानव आचरण या मानव व्यवहार के संबंध में किया गया है। यह वैवाहिक स्थिति कर्तव्यों और दायित्वों के संबंध में या उसके संबंध में आचरण है। यह आचरण का एक तरीका है और एक जो विपरीत दिशा में आगे बढ़ रहा है। क्रूरता मानसिक या शारीरिक, जानबूझकर या अनजाने में भी होती है ।

हिंदू विवाह अधिनियम,1955 की धारा,13(1)(ia) के अनुसार इस आधार पर विवाह -विच्छेद की डिक्री पारित की जा सकती है कि विवाह के अनुष्ठान के पश्चात अर्जीदार के साथ दूसरे पक्षकार ने क्रूरता का बर्ताव किया है। धारा 13 में मानसिक एवं शारीरिक दोनों प्रकार की क्रूरताओ के आधार पर विवाह विच्छेद किया जा सकता है। विधिक क्रूरता होने के लिए शरीर के किसी अंग को, जीवन को, स्वास्थ्य को शारीरिक या मानसिक खतरा हो या होने की युक्तियुक्त आशंका को आवश्यक माना गया है।

केस:- सावित्री पांडे बनाम प्रेम चंद्र पांडे 

इस मामले में अदालत ने माना कि अधिनियम के तहत क्रूरता को रेखांकित नहीं किया गया है, लेकिन वैवाहिक मामलों के संबंध में इसे इस तरह के आचरण के रूप में माना जाता है जो प्रतिवादी के साथ याचिकाकर्ता के जीवन को खतरे में डालता है।

क्रूरता एक ऐसा कार्य है जो जीवन, अंग या स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। अधिनियम के उद्देश्य के लिए क्रूरता से पता चलता है कि जहां कहीं भी एक पति या पत्नी के समकक्ष ने विपरीत व्यवहार किया है और उसके प्रति ऐसी भावनाओं को प्रकट किया है, जिसने शारीरिक चोट पहुंचाई है, या शारीरिक चोट, पीड़ा, या खुद के खराब स्वास्थ्य की  आशंका पैदा की है।

क्रूरता शारीरिक या मानसिक भी हो सकती है। मानसिक क्रूरता वह है जो पति या पत्नी के समकक्षों का आचरण है जो मानसिक पीड़ा का कारण बनता है ।

केस :- के.श्रीनिवास बनाम डी.ए.दीपा (ए आई आर 2013 एस.सी.2176)

उच्चतम न्यायालय ने इस बाद में क्रूरता के दायरे को बढ़ाते हुए हैं सम्प्रेक्षित किया कि जहां पत्नी के दुराचरण के कारण पति अपनी नौकरी से निकाल दिया जाता है वहां पत्नी का यह कृत्य मानसिक क्रूरता के अंतर्गत आएगा, जिसके आधार पर पति विवाह विच्छेद की आज्ञप्ति न्यायालय से प्राप्त कर सकता है।

केस:- भावना एन. शाह बनाम नितिन चिमनलाल शाह, (ए.आई.आर.2012 बम्बई 148)

इस मामले में पत्नी द्वारा पति पर यह आरोप लगाए गए कि उसके अपनी सगी बहनों के साथ अवैध संबंध है, लेकिन वह इस आरोप को साबित नहीं कर सकी। न्यायालय ने इसे पति के प्रति क्रूरता माना और उसे विवाह -विच्छेद की डिक्री पाने का हकदार ठहराया।

पत्नी द्वारा पति के प्रति मानसिक क्रूरता के रूप में क्या माना जाता है:

  1. अपने परिवार और दोस्तों के सामने पति को अपमानित करना।
  2. पति की सहमति के बिना गर्भ को समाप्त करने का वचन देना।
  3. उस पर झूठा आरोप लगा रहे हैं।
  4. बिना किसी वैध कारण के शारीरिक संबंध के लिए इनकार।
  5. पत्नी का अफेयर है।
  6. पत्नी अनैतिक जीवन व्यतीत कर रही है।
  7. पैसे की लगातार मांग।
  8. पत्नी का आक्रामक और बेकाबू व्यवहार।
  9. पति ,माता-पिता और परिवार के साथ दुर्व्यवहार।

केस:- बलराम प्रजापति बनाम सुशीला बाई

इस मामले में याचिकाकर्ता ने मानसिक क्रूरता के आधार पर अपनी पत्नी के खिलाफ तलाक की याचिका दायर की थी। उसने साबित कर दिया कि उसकी पत्नी का उसके और उसके माता-पिता के साथ व्यवहार आक्रामक और बेकाबू था और कई बार उसने अपने पति के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज कराई। अदालत याचिका को स्वीकार कर लेती है और क्रूरता के आधार पर तलाक दे देती है।

पति द्वारा पत्नी के खिलाफ मानसिक क्रूरता के रूप में क्या माना जाता है:- 

  1. दुराचार का झूठा आरोप।
  2. दहेज की मांग।
  3. पति की नपुंसकता।
  4. बलपूर्वक बच्चे का गर्भपात कराना।
  5. पति के नशे की समस्या।
  6. पति के अफेयर्स।
  7. पति अनैतिक जीवन व्यतीत करता है।
  8. पति का आक्रामक और बेकाबू व्यवहार।
  9. परिवार और दोस्तों के सामने पत्नी को प्रताड़ित करना

C. अभित्याग के आधार पर तलाक ( Desertion) :- 

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 (1) (ib) के अनुसार, इस आधार पर विवाह- विच्छेद की डिक्री पारित की जा सकती है कि दूसरे पक्षकार ने  याचिका दायर किए जाने से ठीक पूर्व कम से कम 2 वर्षों तक लगातार याचिकाकर्ता का अभित्याग किया गया हो, उस स्थिति में अभित्याग तलाक का आधार बन जाता है। अभित्यजन का अर्थ है विवाह के एक पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार को बिना उसकी सहमति के और बिना उचित कारण के स्थाई रूप से छोड़ देना या त्याग देना।

केस :- बिपिन चंद्र बनाम प्रभावती,( एआईआर 1957   एस. सी.176)

इस मामले में अभित्याग के लिए निम्नलिखित बातों का होना आवश्यक बताया गया है:

  1. बिना युक्तियुक्त कारण के अभित्याग,
  2. बिना सहमति,
  3. याची की इच्छा के विरुद्ध,
  4. याची की स्वेच्छापूर्वक उपेक्षा के बिना,
  5. यह त्यजन 2 वर्ष तक लगातार रहा हो।

केस:- मंगतानी बनाम मंगतानी,( ए आई आर 2005 सुप्रीम कोर्ट 3508)

इस वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह अवधारित किया कि पति का आर्थिक रूप से निर्बल होना पत्नी के अभित्याग का युक्तिसंगत कारण नहीं हो सकता।

D. धर्म परिवर्तन के आधार पर तलाक (Conversion):-

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 ( 1) ( ii ) के अंतर्गत विवाह के एक पक्षकार द्वारा हिंदू धर्म के प्रथक धर्म स्वीकार कर लेना विवाह विच्छेद का एक आधार है परंतु इस कारण के स्वयमेव विवाह समाप्त नहीं होता है।

उदाहरण:-  A, एक हिंदू की पत्नी B और दो बच्चे हैं। एक दिन A चर्च गया और बी की सहमति के बिना ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गया, यहां B अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है और धर्मांतरण के आधार पर तलाक की मांग कर सकता है।

केस:- मदानम सीता रामलू बनाम मदानम विमला (ए आई आर 2014 (एन. ओ .सी.)412 आंध्र प्रदेश।

इस मामले में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने यह संप्रेक्षित किया कि यदि विवाह का कोई पक्षकार अपने विवाह के पश्चात धर्म परिवर्तन कर लेता है तो उक्त परिस्थिति मैं दूसरे पक्षकार को इस बात का अधिकार होगा कि वह धर्म परिवर्तन के आधार पर विवाह विच्छेद की आज्ञप्ति प्राप्त कर सकता है।

E. मस्तिष्क – विकृतता के आधार पर तलाक  (Unsoundness of mind):- 

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1) ( iii) के अनुसार यदि विवाह का कोई पक्षकार मस्तिष्क विकृतता के आधार पर विवाह विच्छेद की  आज्ञप्ति प्राप्त कर सकता है यदि विकृति लगातार अथवा बीच-बीच में होती रही है।

 केस:- विनीता सक्सेना बनाम पंकज पंडित

इस मामले में, याचिकाकर्ता ने इस आधार पर प्रतिवादी से तलाक लेने का मामला दायर किया कि प्रतिवादी पैरानॉयड सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित था जिसका अर्थ है मानसिक विकार। ये बात उन्हें शादी के बाद पता चली। यहां कोर्ट पति के पागलपन के आधार पर तलाक दे देती है।

F. कोढ़ के आधार पर तलाक ( Leprosy):- 

जब विवाह का एक पक्षकार याचिका प्रस्तुत किए जाने के समय कोढ़ से पीड़ित रहा हो तो यह आधार इस अधिनियम की धारा 13 (1)(iv ) विवाह विच्छेद का अधिकार प्रदान करता है।

केस:- स्वराज्य लक्ष्मी बनाम ग.जी. पद्माराव (एआईआर 1974  एस.सी.606)

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि  लेप्रीपेटस कोढ़ घातक एवं संक्रामक होता है। यह कोढ़ चिकित्सा से अच्छा नहीं हो सकता तो विवाह के दूसरे पक्षकार को विवाह विच्छेद का हक प्रदान करता है। इस वाद में अपीलार्थी उपर्युक्त प्रकार के कोढ़ से पीड़ित था, अतः उसकी अपील खारिज कर दी गई।

G. रतिजन्य रोग  के आधार पर तलाक (Venereal Disease) :-

विवाह का कोई पक्षकार दूसरे पक्षकार के संक्रामक रतिजन्य  रोग से पीड़ित होने के आधार पर इस अधिनियम की धारा 13 ( 1) (v) के अंतर्गत विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सकता है।

उदाहरण:- A और B ने 9 सितंबर 2011 को शादी की। वाद में A एक यौन रोग से पीड़ित था और यह लाइलाज है। इस बात की भी संभावना है कि यदि B, A के साथ रहती है तो वह भी उस बीमारी से संक्रमित हो सकती है। यहाँ, B विवाह के विघटन के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकती है।

H. संसार परित्याग  के आधार पर तलाक (Renunciation of the world):-

संसार से परित्याग करना सिविल मृत्यु मानी जाती है, अतः विवाह का कोई पक्षकार जब संसार का परित्याग करके सन्यास धारण कर लेता है तो दूसरा पक्षकार इस आधार पर तलाक की डिक्री न्यायालय द्वारा प्राप्त कर सकता हैं [(धारा 13 (1)(vi)]। इस खंड में दो बातों का होना आवश्यक है:-

  1. प्रत्युत्तरदाता ने संसार को छोड़ दिया है,
  2. उसने किसी धार्मिक व्यवस्था को अपना लिया है।

उदाहरण:- A और B ने विवाह कर लिया और एक सुखी जीवन व्यतीत करते हैं। एक दिन A ने दुनिया को त्यागने का फैसला किया। यहां, B को अदालत का दरवाजा खटखटाने और तलाक के उपाय की तलाश करने का अधिकार है।

I. प्रकल्पित मृत्यु के आधार पर तलाक (Presumed death):-

यदि विवाह के किसी पक्षकार के बारे में 7 वर्ष या इससे अधिक कालावधि में उन लोगों के द्वारा इसका जीवित होना नहीं सुना गया है जो उसके संबंधी हैं और जिन्हें, यदि वह व्यक्ति जीवित होता तो उसके जीवित होने का ज्ञान होता तो विवाह के दूसरे पक्षकार को अधिनियम की धारा 13(1)(vii) के अंतर्गत तलाक की डिक्री प्राप्त करने का आधार प्राप्त हो जाता है।

उदाहरण:- ए पिछले सात वर्षों से लापता था और उसकी पत्नी बी को उसके जीवित या मृत होने की कोई खबर नहीं मिलती है। यहां बी अदालत का दरवाजा खटखटा सकती है और तलाक के लिए कह सकती है।

J. न्यायिक पृथक्करणके आधार पर तलाक  ( Judicial separation):- 

विवाह के दूसरे पक्षका ने जब कम से कम 1 वर्ष या इससे अधिक समय तक न्यायिक पृथक्करण की आज्ञप्ति के बाद उस व्यक्ति के साथ सहवास का पुनरारम्भ न किया हो जिसके विरुद्ध डिक्री प्राप्त की गई है तो उस अवस्था में तलाक याचिका प्रस्तुत की जा सकती है [हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1A)(i)]।

K. दांपत्य अधिकार के पुनर्स्थापन की डिक्री का पालन न करना:-

जब विवाह का दूसरा पक्ष दांपत्य अधिकार की पुनर्स्थापना की डिक्री की पूर्ति करने में डिक्री प्राप्त होने के पश्चात एक वर्ष या इससे अधिक समय  पालन ना करे  उस दशा में भी विवाह का पक्षकार तलाक डिक्री प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है। एक वर्ष की अवधि उस दिन से प्रारंभ होती है जिस दिन पुनर्स्थापन की डिक्री पास की गई थी।[हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1A)( ii)]।

केस:- सरोज रानी बनाम सुदर्शन कुमार (ए आई आर 1984 एस.सी. 1562)।

इस मामले में दांपत्य अधिकारों की पुनः स्थापना की समझौता डिक्री होने के 1 वर्ष तक पति एवं पत्नी में सहवास नहीं हुआ। पत्नी ने आरोप लगाया कि पति की बदमाशी के कारण ऐसा नहीं हो सका। न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि पति विवाह विच्छेद का अधिकारी हैं।

2. केवल पत्नी को प्राप्त होने वाले तलाक के आधार(Divorce grounds available to wife  only):- 

हिन्दू विवाह विधि (संशोधन )अधिनियम, 1976 के पास हो जाने के बाद तलाक देने के लिए पत्नी को 4 अतिरिक्त आधार प्रदान कर दिए गए हैं। अधिनियम की धारा 13 (2 )के द्वारा पत्नी को अतिरिक्त विवाह विच्छेद के निम्नलिखित अधिकार प्रथक से दिए गए हैं:-

A.बहु- विवाह के आधार पर तलाक  (Bigamy):- 

पत्नी विवाह.विच्छेद के लिए तलाक याचिका इस आधार पर प्रस्तुत कर सकती है कि  पति ने अधिनियम के प्रारंभ होने के पूर्व पुनः विवाह कर लिया था, अथवा विवाह के पूर्व पति द्वारा विवाह की गई कोई पत्नी विवाह के समय जीवित थी। यह आधार तभी लागू होगा जबकि दूसरी पत्नी याचिका प्रस्तुत करने के समय जीवित हो ।

केस:- श्रीमती निरमू बनाम निक्कर राम,( ए आई आर 1968 दिल्ली 260)।

इस मामले में कोर्ट ने कहा कि अधिनियम से पूर्व पति के द्वारा दूसरा विवाह कर लेने पर यदि प्रथम पत्नी पति के साथ समझौता करके रहने लगती है तो यह तथ्य उस पत्नी के तलाक याचिका प्रस्तुत करने के अधिकार को समाप्त नहीं कर देता।

B. पति द्वारा बलात्कार(Rape), गुदामैथुन(Sodomy) अथवा पशुगमन(Bestiality)के आधार पर तलाक  :- 

यदि पति बलात्कार, गुदामैथुन अथवा पशुगमन के अपराध का दोषी हो तो इन आधारों पर पत्नी तलाक की डिक्री प्राप्त कर सकती है। बलात्कार की परिभाषा भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में तथा गुदामैथुन एवं पशुगमन की परिभाषा भारतीय दंड संहिता की धारा 377 में दी गई है।

यदि पति अपनी पत्नी के साथ उसकी सहमति के बिना गुदामैथुन करता है तो उस आधार पर भी पत्नी पति के विरुद्ध तलाक ले सकती है। कोई व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ भी बलात्कार का दोषी हो सकता है यदि पत्नी की आयु 15 वर्ष से कम की हो।

C. भरण पोषण की डिक्री  के आधार पर तलाक (Decree of maintenance):-

हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण- पोषण अधिनियम ,1956 की धारा 18 के अधीन या दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत पति विवाह विच्छेद के विरुद्ध आदेश पारित किया गया है तथा ऐसे आदेश या डिक्री के 1 वर्ष या उससे अधिक समय तक दोनों ने सहवास प्रारंभ नहीं किया है तो पत्नी ऐसी स्थिति में विवाह विच्छेद करा सकती है।

 

D. यौवन का विकल्प के आधार पर तलाक ( Option of puberty):- 

जहां किसी स्त्री का विवाह 15 वर्ष की आयु के पूर्व हो गया है और उस आयु को पूरा करने के बाद किन्तु 18 वर्ष की आयु के पूर्व विवाह को निराकृत कर दिया है तो पत्नी को विवाह विच्छेद करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।

केस:- पवन कुमार कश्यप बनाम श्रीमती रुकमणी कश्यप, (ए आई आर 2012 छत्तीसगढ़ 162)।

इस मामले में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के  द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि विवाह विच्छेद केवल धारा 13 में वर्णित आधारों पर ही हो सकता है। समुदाय अथवा जाति पंचायत का विवाह विच्छेद के संबंध में विनिश्चय विधिक दृष्टि से कोई महत्व नहीं रखता है।

3. पारस्परिक सहमति से तलाक के आधार  (Divorce by mutual consent) 

हिंदू विवाह अधिनियम,1955 की धारा 13B के अंतर्गत विवाह विच्छेद अथवा तलाक के लिए एक और आधार प्रदान कर दिया गया है |

इस धारा के अनुसार विवाह के दोनों पक्षकारों के द्वारा जिला अदालत में विवाह- विच्छेद के लिए इस आधार पर याचिका दायर की जा सकती है कि वह दोनों पक्षकार 1 वर्ष से या अधिक समय से अलग-अलग रह रहे हैं।

वे एक साथ नहीं रह सकते तथा आपस में तय कर चुके हैं कि विवाह विघटित कर दिया जाए, ऐसी याचिका प्रस्तुत किए जाने के 6 महीने बाद तथा 18 माह पूर्व दोनों पक्षकारों द्वारा किए गए प्रस्ताव पर यदि याचिका वापस नहीं ली गई है तो न्यायालय पक्षकारों की सुनवाई करने तथा इस प्रकार की जांच करके, जैसा वह उचित समझता है, यदि इस बात से संतुष्ट हैं कि विवाह का विघटन करना आवश्यक है तो वह उसे विवाह की डिक्री की तिथि से  विघटित कर सकता है।

केस:-सन्नी बनाम सुजाता,(ए आई आर 2012 दिल्ली 146)

इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा यह अभि निर्धारित किया गया है कि पारस्परिक सहमति से विवाह विच्छेद के लिए पति पत्नी का न्यूनतम 1 वर्ष तक अलग रहना पूर्ववर्ती शर्त  है।

निष्कर्ष:-

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 तलाक के संबंध में विभिन्न प्रावधान प्रदान करता है। हिंदू विवाह अधिनियम “तलाक को विवाह के विघटन के रूप में परिभाषित करता है”।  भारत में तलाक के मामले में फॉल्ट थ्योरी काम करती है। इस सिद्धांत के तहत, विवाह को तब समाप्त किया जा सकता है जब पति-पत्नी में से एक वैवाहिक अपराधों के तहत अपराध के लिए जिम्मेदार या उत्तरदायी हो। निर्दोष जीवनसाथी तलाक का उपाय ढूंढ सकता है।

हिंदू विवाह अधिनियम के तहत, जिन बुनियादी आधारों पर हिंदू महिलाएं तलाक के उपाय की मांग कर सकती हैं, वे हैं व्यभिचार, परित्याग, धर्मांतरण, कुष्ठ रोग, क्रूरता आदि। लेकिन कई दार्शनिक तलाक की अवधारणा की आलोचना करते हैं। हिंदू विवाहित महिलाएं भी आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के लिए आवेदन कर सकती हैं।

संदर्भ:- 

यह आर्टिकल Nandini Singh के द्वारा लिखा गया है जो की LL.M. Istसेमेस्टर Dr. Harisingh Gour central University,sagar की  छात्रा है |