मिताक्षरा ( Mitakshara):-
- डॉक्टर यू .सी .सरकार ने अपनी पुस्तक”हिंदू लॉ” मैं यह लिखा है कि मिताक्षरा ना केवल एक भाष्य है वरन वह स्मृतियों पर प्रकार का निबंध है जो 11वीं शताब्दी के अंत में अथवा 12 वीं शताब्दी के प्रारंभ में लिखा गया था |
- यह सर्वश्रेष्ठ विधि शास्त्री ,आंध्र प्रदेश का निवासी विज्ञानेश्वर द्वारा लिखित याज्ञवल्क्य स्मृति पर आधारित एक उच्च कोटि का भाष्य है, जो हिंदू विधि की एक शाखा का संस्थापक है।
- यह शाखा बंगाल और असम को छोड़कर लगभग सारे देश के हिंदुओं पर लागू होती है।आज की स्थिति यह है कि यह शाखा बंगाल में भी उन विषयों पर जिनकी दायभाग में विवेचना नहीं की गई है वहां मिताक्षरा को ही मान्यता प्रदान किया जाता है।
- यह जीमूतवाहन से लगभग 300 वर्ष पूर्व की रचना है। जीमूतवाहन ने दायभाग भाष्य की रचना मिताक्षरा मैं प्रतिपादित उत्तराधिकार की निकटस्थता के नियम के विरोध में किया था और उन्होंने इस नियम की परिमितता के संज्ञान में पारलौकिक प्रलाभ के आधार पर उत्तराधिकार का नियम प्रतिपादित किया।
मिताक्षरा विधि की उपशाखाएं:-
मिताक्षरा विधि की शाखा पांच उपशाखाओ में विभाजित हुई हैं। इन उपशाखाओ का जन्म दत्तक ग्रहण तथा दाय के संबंध में परस्पर मतभेद होने के कारण हुआ।
- बनारस शाखा।
- मिथिला शाखा।
- द्रविड़ अथवा मद्रास शाखा।
- महाराष्ट्र अथवा मुंबई शाखा।
- पंजाब शाखा।
(1) बनारस शाखा:-
पंजाब तथा मिथिला को छोड़कर यह शाखा समस्त उत्तरी भारत में व्याप्त हैं जिसमें उड़ीसा और मध्य प्रदेश भी सम्मिलित है।इस शाखा में निम्नलिखित भष्यो को मान्यता प्रदान की जाती है:-
( 1) मिताक्षरा,(2) मित्रमिश्र द्वारा लिखित वीर मित्रोंदय,(3) दस्तक मीमांसा, (4) निर्णय सिंधु, (5) विवाद तांडव, (6) सुबोधिनी, (7) बाल भट्टी।
(2) मिथिला शाखा :-
केस :- सुरेंद्र बनाम हरिप्रसाद (221 आइ .ए.418)।
प्रिवी काउंसिल ने इस बात का समर्थन किया कि यह शाखा तिरहुत तथा उत्तरी बिहार में प्रचलित है। कुछ विषयों को छोड़कर इस शाखा की विधि मिताक्षरा की विधि है।
(3) द्रविड़ अथवा मद्रास शाखा :-
समस्त मद्रास में हिंदू विधि की मद्रास शाखा प्रचलित है। पहले यह शाखा तमिल ,कर्नाटक तथा आंध्र उप शाखाओं में विभाजित थी।इस शाखा में निम्नलिखित कृतियों को मान्यता दी जाती है:- मिताक्षरा, माधवाचार्य द्वारा लिखित पराशरमाधवीय, वीरमित्रोदय, व्यवहार- निर्णय, दत्तक चंद्रिका, दाय-विभाग, माधवी, निर्णय- सिंधु, नारद- राज्य, विवाद -तांडव आदि।
(4) महाराष्ट्र अथवा मुंबई शाखा-
यह शाखा समस्त मुंबई प्रदेश मैं प्रचलित है जिसमें गुजरात, कनारा तथा वे प्रदेश प्रचलित है जहां मराठी बोली जाती है।इस शाखा में निम्नलिखित ग्रंथ है- मिताक्षरा, नीलकंठ -लिखित व्यवहारमयूख, वीरमित्रोंदय, निर्णय सिंधु, पराशरमाधव्य ,विवाद तांडव।
(5) पंजाब शाखा :-
यह शाखा पूर्वी पंजाब वाले प्रदेश में प्रचलित है। इस शाखा में प्रथाओं को प्रमुख स्थान प्रदान किया जाता है। इस शाखा में निम्नलिखित प्रमाण मान्य है :- मिताक्षरा, वीरमित्रोंदय, पंजाबी प्रथाएं।
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