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सिविल एंव राजनैतिक अधिकारों की अन्‍तराष्‍ट्रीय प्रसंविदा ,1966 | International Covenant on Civil and Political Rights in hindi

सिविल एवं राजनैतिक अधिकारों

प्रस्‍तावना:-

सिविल एंव राजनैतिक अधिकारों की अन्‍तराष्‍ट्रीय प्रसंविदा , 1966 – स्‍थूल रूप में मानव अधिकार वह भौतिक एवं अन्‍यसंक्रामय अधिकार है जो मनुष्‍यों के जीवन के लिए आवश्‍यक हैं। मानव अधिकार प्रत्‍येक मानव के है,  केवल इसलिए कि वह मानव है चाहे वह किसी भी राष्‍ट्रीयता, प्रजाति या नस्‍ल, धर्म, लिंग का हो। अत:  मानव अधिकार वह अधिकार है जो हमारी प्रकृति में  अंतर्निहित  है तथा जिनके बिना हम मानवों की भॉंति जीवित नहीं रह सकते हैं।

मानव अधिकार तथा मौलिक स्‍वतंत्रताएं हमं अपने गुणों, ज्ञान, प्रतिभा तथ  अंतर्विवेक का विकास करने में सहायक होते है जिससे हम अपनी भौतिक आध्‍यात्‍मिक तथा अन्‍य आवश्‍यकताओं की पूर्ति एवं संतुष्‍टि कर सकें। मानव अधिकार तथा मौलिक स्‍वतंत्रताएं मनुष्‍य की एक ऐसे जीवन की ओर बढ़ती हुई मॉंग पर आधारित है, जिसमें मानव की अंतर्निहित गरिमा एवं गुण का सम्‍मान हो तथा उसे संरक्षण प्रदान किया जाए। मानवाधिकारों को कभीभी मौलिक या मूल या नैसर्गिक अधिकार भी कहते हैं, क्‍योकि ये वह अधिकार है जिन्‍हें विधा‍यिनी या सरकार के किसी कृत्‍य द्वारा छीना नहीं जा सकता हैं।

 

सिविल एंव राजनैतिक अधिकारों की अन्‍तराष्‍ट्रीय प्रसंविदा , 1966 (International Covenant or Civil & Political Right’s)

 

सिविल एंव राजनैतिक अधिकारों की अन्‍तराष्‍ट्रीय प्रसंविदा , 1966 को महासभा ने 16 दिसम्बर ,1966 को अंगीकृत किया था। इसी तिथि को महासभा ने आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अ‍धिकारों की प्रसंविदा को भी अंगीकृत किया था। सिविल एंव राजनैतिक अधिकारों की अन्‍तराष्‍ट्रीय प्रसंविदा , 1966 (ICCPR) 23 मार्च 1976 को प्रभाव में आया, जबकि आर्थिक, सामाजिक एंव सांस्‍कृतिक आधिकारों की प्रसंविदा (ICESCR) 23 जनवरी, 1976 को प्रभाव में आया।

सिविल एंव राजनैतिक अधिकारों की अन्‍तराष्‍ट्रीय प्रसंविदा , 1966 (ICCPR) को  6 भागों में विभाजित है।

भाग- 1 में केवल (अनुच्छेद  1) है जो आत्‍मनिर्णय के अधिकार को मान्‍यता देता है।

भाग-2 में अनुच्छेद 2 से अनुच्छेद 5 तक सम्‍मिलित है। इस भाग में अनुच्छेद-2 के अन्‍तर्गत सभी सदस्‍य राज्‍यों का यह दायित्‍व है कि वे अपने क्षेत्र के अन्‍तर्गत सभी व्‍यक्‍तियों को इस प्रसंविदा के सभी अधिकार सुनिश्‍चित करें। सारवान उपबन्ध

भाग-3 (अनुच्छेद 6-27) में किए गए हैं।

भाग-4 अधिकारों के क्रियान्‍वयन की बात करता हैं। इस भाग में मानवाधिकार समिति के गठन (अनुच्छेद28) और उसके कार्यो से सम्‍बन्‍धित प्रावधान किया गया है। (अनुच्छेद 40-42)

भाग-5 (अनुच्छेद 46-47) उपबंधों के निर्वचन से सम्‍बन्‍धित है, और

भाग-6 (अनुच्छेद.48-53) प्रसंविदा के प्रभाव में आने, संशोधन आदि की औपचारिकताओं से सम्‍बन्‍धित उपबंध करते हैं।

प्रसंविदा में उल्लिखित एवं परिभाषित अधिकार :-

प्रसंविदा में उल्लिखित एवं परिभाषित अधिकार निम्‍न हैं

आत्‍म निर्धारण का अधिकार :-

प्रसंविदा के अनुच्छेद 1 के अनुसार, सभी लोगों को आत्‍म निर्धारण का अधिकार है। इस अधिकार के फलस्‍वरुप वह स्‍वतन्‍त्रता से अपनी राजनीतिक प्रास्थिति का निर्धारण करते हैं तथा स्‍वतन्‍त्रतापूर्वक अपना आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्‍कृतिक विकास करते हैं।

सारवान सिविल एवं राजनीतिक अधिकार :-

1.प्रसंविदा के अनुच्छेद 6 के अनुसार प्रत्‍येक मनुष्‍य को अन्‍तर्निहित जीवन को अधिकार है। यह अधिकार विधि के द्वारा संरक्षित होगा। किसी को भी उसके जीवन के अधिकार से मनमाने ढंग से वंचित नहीं किया जायेगा। अनुच्छेद 6 में यह भी बताया गया है कि जिन देशों में मृत्‍यु दण्‍ड समाप्‍त नहीं किया गया है उनमें मृत्‍यु दण्‍ड केवल अतिगम्‍भीर अपराधों के लिए ही दिया जाएगा।

2.यंत्रणा या निर्दयी, अमानवीय या परिभ्रष्‍ट करने वाले व्‍यवहार या दण्‍ड की निषिद्धि या बिना सम्‍मति के चिकित्‍सकीय या वैज्ञानिक प्रयोग की निषिद्धि। (अनुच्छेद 7) 

3.किसी को भी दास नहीं बनाया जाएगा, दासता एवं दास- व्‍यापार सभी रूपों में वर्जित है। किसी से भी बलात् श्रम नहीं कराया जाएगा। किसी को भी दासत्व में नहीं रखा जाएगा (अनुच्छेद8)।

4. प्रत्‍येक व्‍यक्ति को व्‍यक्ति की स्‍वतन्‍त्रता और सुरक्षा का अधिकार है। किसी को भी मनमाने तौर पर गिरफ्तार नहीं किया जाएगा और नहीं निरुद्ध किया जाएगा। किसी को भी उसकी स्‍वतन्‍त्रता से बिना विधि द्वारा स्‍थापित प्रक्रिया का अनुसरण किए वंचित नहीं किया जाएगा। (अनुच्छेद 9) इस अनु. में यह भी बताया गया है कि

(1) कोई भी व्‍यक्ति जो गिरफ्तार किया जाता है, उसे उसी समय गिरफ्तारी का कारण बताया जाएगा और शीघ्रातीशीघ्र आरोपों/आरोप के बारे में सूचित किया जाएगा।

(2)जो भी व्‍यक्ति गिरफ्तार किया जाता है उसे शीघ्रताशीघ्र एक न्‍यायाधीश या कोई अन्‍य अधिकारी जो इस सम्‍बन्‍ध में प्राधिकृत हो, के समक्ष प्रस्‍तुत किया जायेगा।

(3)गिरफ्तार या निरुद्ध किए गए व्‍यक्ति को युक्तियुक्‍त समय के भीतर परीक्षण (TRIAL) का अधिकार होगा।

(4)कोई भी व्‍यक्ति अविधिपूर्ण ढंग से गिरफ्तार या निरुद्ध किया जाता है तो उसे क्षतिपूर्ति का अधिकार होगा।

5. स्‍वतन्‍त्रता से वंचित किए गए सभी व्‍यक्तियों को मानवीय ढंग से व्‍यवहार किया जाएगा और उनमें अन्‍तर्निहित गौरव का सम्‍मान किया जाएगा (अनुच्छेद 10)।

6. किसी भी व्‍यक्ति को केवल इस कारण कारागार में नहीं डाला जाएगा कि वह अपने संविदात्‍मक दायित्‍वों को पूरा करने में असमर्थ है (अनुच्छेद11)

7. प्रत्‍येक व्‍यक्ति को किसी राज्‍य के क्षेत्र में आवागमन का एवं निवास करने का अधिकार होगा। प्रत्‍येक व्‍यक्ति को अपना या अन्‍य देश को छोड़ने का अधिकार होगा (अनुच्छेद12)।

8. किसी भी विदेशी को जो किसी पक्षकार राज्‍य के क्षेत्र में विधिपूर्वक रह रहा है, विधि के अनुसार लिए गए निर्णय के अनुशरण में ही निकाल दिया जा सकेगा, सिवाय राष्‍ट्रीय सुरक्षा के कारणों से ऐसा करना आवश्‍यक हो। निकाले जाने की दशा में व्‍यक्ति को कारण बताने का अवसर दिया जायेगा और उसे अपने मामलों को किसी सक्षम प्राधिकारी से पुनर्विचारित किए जाने का अधिकार होगा (अनुच्छेद13)।

9. सभी व्‍यक्ति न्यायालय या न्‍यायाधिकरणों के समक्ष समान होंगे। किसी आपराधिक आरोप का निर्धारण के सम्‍बन्‍ध में प्रत्‍येक व्‍यक्ति को सम्‍यक् एवं लोक-सुनवाई (Fair and Public hearing) का अधिकार होगा। ऐसी सुनवाई एक सक्षम, स्‍वतन्‍त्र एवं निष्‍पक्ष न्‍यायाधिकरण के द्वारा होगी।

प्रत्‍येक व्‍यक्ति जो आपराधिक आरोप से आरोपित किया जाता है, को दोषी सिद्ध होने तक निर्दोष माना जायेगा।

आरोप के निर्धारण के संम्बन्ध में एक अभियुक्‍त या आरोपी को निम्‍नलिखित अधिकार होंगे

  • इस शाखा में जिसे अभियुक्‍त समझता है, आरोप के बारे में शीघ्रताशीघ्र बताया जाएगा।
  • बचाव के लिए अभियुक्‍त को पर्याप्‍त अवसर दिया जाएगा।
  • बिना विलम्‍ब के उसका परीक्षण किया जाएगा।
  • अभियुक्‍त का परीक्षण उसकी उपस्थिति में और उसे बचाव के लिए स्‍वयं या उसके पसन्‍द के विधिक सहायता के द्वारा अवसर दिया जायेगा। जहॉं उसके पास विधिक सहायता नहीं है वहॉं उसे सूचित कर दिया जायेगा कि उसे विधिक परामर्श का अधिकार है।
  • अपने विरुद्ध साक्षियों की परीक्षा का अधिकार होगा और अपने पक्ष में साक्षियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने का अधिकार होगा।
  • यदि अभियुक्‍त न्‍यायालय की भाषा नहीं समझता है तो उसे अनुवादक की नि:शुल्‍क सेवा प्राप्‍त करने का अधिकार होगा।
  • अभियुक्‍त को स्‍वयं के विरुद्ध साक्ष्‍य देने के लिए या संस्‍वीकृति करने के लिए बाध्‍य नहीं किया जायेगा।

किशोरों की दशा में, ऐसी प्रक्रिया का पालन किया जाएगा जो उनकी आयु और पुनर्वास के लिए उपयुक्‍त हैं।

दोष सिद्धि या सजा की दशा में अभियुक्‍त को अपील करने का अधिकार होगा।

किसी को भी एक ही अपराध के सम्‍बन्‍ध में दो बार विचारण नहीं किया जाएगा। (अनुच्छेद.14)

10.अनुच्छेद15 में Ex Post facto laws के विरुद्ध संरक्षण दिया गया है। इसके अनुसार किसी व्‍यक्ति को ऐसे कार्य या लोप के लिए दोषसिद्ध नहीं किया जाएगा या दण्डित नहीं किया जाएगा जो कार्य करते समय अपराध नहीं था (अनुच्छेद15)।

11.प्रत्‍येक व्‍यक्ति को विधि के समक्ष मान्‍यता प्राप्‍त करने का अधिकार है। (अनुच्छेद16)

12.किसी की भी निजता में मनमाने अथवा अविधिपूर्ण ढंग से हस्‍तक्षेप नहीं किया जाएगा। इसी के साथ किसी के भी घर, परिवार अथवा पत्राचार में मनमाने या अविधिपूर्ण ढंग से हस्‍तक्षेप नहीं किया जाएगा। और न ही उसके सम्‍मान एवं प्रतिष्‍ठा से अविधिपूर्ण ढंग इस से आक्रमण किया जाएगा। (अनुच्छेद 17)

13.हर किसी को विचार, विवेक, धर्म की स्‍वतन्‍त्रता है। इस अधिकार के अन्‍तर्गत शामिल हैं- अपनी पसन्‍द के धर्म अथवा आस्‍था के चुनाव का अधिकार और अपने धर्म के अनुसार व्‍यवहार करने, प्रचार करने, पूजा-अर्चना करने, पालन करने और शिक्षा देने का अधिकार। अपने धर्म को प्रकट करने की स्‍वतन्‍त्रता को उन्‍हीं सीमाओं के अधीन किया जाता है जो विधि के द्वारा निर्धारित हैं और लोकरक्षा, व्‍यवस्‍था, स्‍वास्‍थ्‍य अथवा नैतिकता अथवा दूसरों के मूल अधिकार और स्‍वतन्‍त्रता की रक्षा के लिए आवश्‍यक हैं। (अनुच्छेद 18)

14.प्रत्‍येक को बिना किसी हस्‍तक्षेप के मत धारण करने का अधिकार होगा।

प्रत्‍येक को अभिव्‍यक्ति की स्‍वतन्‍त्रता होगी। 

इस अधिकार में शामिल हैं – सभी प्रकार के विचार और सूचना को मॉंगने और प्राप्‍त करने का अधिकार।

अभिव्‍यक्ति की स्‍वतन्‍त्रता कुछ/कतिपय निर्बधनों के अधीन हैं जो (i) दूसरे के अधिकार एवं उनके सम्‍मान के लिए, और (ii) राष्‍ट्रीय सुरक्षा और लोक-व्‍यवस्‍था, लोक स्‍वास्‍थ्‍य अथवा नैतिकता के संरक्षण के लिए आवश्‍यक हैं। (अनु.19)

15.युद्ध का प्रचार विधि के द्वारा वर्जित है। राष्‍ट्रीय, वंशीय अथवा धार्मिक आधार पर नफरत की वकालत करना जिससे कि भेदभाव व हिंसा पनपी हैं, विधि के द्वारा वर्जित होगा (अनु. 20)।

16.शांतिपूर्ण सभा के अधिकार को मान्‍यता दी जाएगी उस अधिकार के निर्बन्‍धन वे हो सकते है जो विधि के अनुशरण में हों। और एक लोकतान्त्रिक समाज में राष्‍ट्रीय सुरक्षा अथवा लोक सुरक्षा, लोक व्‍यवस्‍था, लोक स्‍वास्‍थ्‍य अथवा नैतिकता अथवा दूसरों के अधिकार एवं स्‍वतन्‍त्रता के हित में आवश्‍यक हों। (अनु. 21)

17.प्रत्‍येक को संस्‍था की स्‍वतन्‍त्रता का अधिकार है। इस अधिकार में व्‍यापार संघ बनाने का अधिकार भी शामिल हैं।

 

इस अधिकार के प्रयोग पर वही निर्बन्‍धन लगाए जा सकते हैं जो विधि के अनुशरण में हों और एक लोकतांत्रिक समाज में राष्‍ट्रीय सुरक्षा अथवा लोक सुरक्षा, लोक व्‍यवस्‍था, लोक स्‍वास्‍थ्‍य अथवा नैतिकता अथवा दूसरों के अधिकार एवं स्‍वतन्‍त्रता के हित में आवश्‍यक हों। (अनु.22)

18.विवाह योग्‍य पुरुष एवं स्त्रियों को विवाह करने एवं परिवार बनाने के अधिकार को मान्‍यता दी जाएगी। कोई भी ऐसा विवाह नहीं किया जाएगा जो होने वाले पति या पत्‍नी के बिना सहमति के हों।

प्रसंविदा के पक्षकार राज्‍य पतिपत्‍नी के समान अधिकार एवं कर्त्‍तव्‍य को, विवाह के बारे में विवाह के दौरान अथवा इसके विघटन के बारे में सुनिश्ति करेंगे। विवाह के विघटन की दशा में बच्‍चों के संरक्षण के बारे में आवश्‍यक प्रावधान किए जाऍंगे। (अनु.23)

19.प्रत्‍येक बालक-बालिका को बिना किसी भेदभाव के संरक्षण के ऐसे उपायों का अधिकार होगा जो उसके अवयस्‍क होने की प्रास्थिति को देखते हुए आवश्‍यक हों। यह अधिकार, परिवार समाज और राज्‍य के विरुद्ध प्राप्‍त होगा। प्रत्‍येक बच्‍चे को राष्‍ट्रीयता का अधिकार होगा। (अनु.27)

20.प्रत्‍येक नागरिक को बिना किसी भेदभाव और आयुक्तियुक्‍त निबर्न्‍धन के अधिकार और अवसर होगा-

(a)लोक मामलों में प्रत्‍यक्ष रुप से अथवा चुने गए प्रतिनिधियों के माध्‍यम से भाग लेने का;

(b)मतदान करने का और चुने जाने का।

निर्वाचन एक निश्चित समयावधि पर होंगे तथा सार्वभौमिक एवं समान अधिकार के द्वारा और गुप्‍त मतदान के द्वारा होंगे।

(c)समानता के समान अवसर के आधार पर देश की लोक सेवा में प्रवेश करने का अधिकार। (अनु.25)

21.सभी व्‍यक्ति विधि के समक्ष समान होंगे और बिना किसी भेदभाव के विधि के समान संरक्षण के हकदार होंगे। विधि के द्वारा कोई भी भेदभाव इस तरह के किसी भी आधार पर जैसे वंश, रंग, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक एवं अन्‍य मत, राष्‍ट्रीय एवं सामाजिक उत्‍पत्त‍ि, सम्‍पत्त‍ि, जन्‍म अथवा अन्‍य प्रास्थिति पर वर्जित होगा। (अनु. 26)

22.उन सभी राज्‍यों में जहॉं संजातीय, धार्मिक और भाषायी अल्‍पसंख्‍यक रहते हैं ऐसे अल्‍पसंख्‍यकों को समूह के अन्‍य सदस्‍यों की संगति में अपनी संस्‍कृति को उपयोग करने का अधिकार, अपने धर्म का व्‍यवहार एवं समर्थन करने, अथवा अपनी भाषा का प्रयोग करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जाएगा। (अनु.27)।

सन्‍दर्भ – सूची

  • अग्रवाल, डॉ. एच.ओ. – मानव अधिकार   – सेन्‍ट्रल लॉ पब्लिकेशन्‍स 6वॉं संस्‍करण 2016
  • कपूर, डॉ. एस. के.  – मानव अधिकार  – सेन्‍ट्रल लॉ एजेन्‍सी, 6वॉ संस्‍करण 2019
  • कक्ष व्‍याख्‍यान :-   प्रो. अजेन्‍द्र कुमार श्रीवास्‍तव सर
  • https://en.wikipedia.org/wiki/International_Covenant_on_Civil_and_Political_Rights

 

“यह आर्टिकल Aryesha Anand के द्वारा लिखा गया है जो की LL.B. VIth सेमेस्टर BANARAS HINDU UNIVERSITY (BHU) की छात्रा है |”

 

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