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प्रसारण संगठन के अधिकार | Rights of Broadcasting Organizations in hindi

प्रसारण संगठन के अधिकार

प्रस्‍तावना (Introduction) –

प्रसारण संगठन के अधिकार- प्रसारण संगठनों के अन्‍तर्राष्‍ट्रीय संरक्षण के अधतन  पर WIPO द्वारा कॉपीराइट और सम्‍बन्धित अधिकारों (SCCR) की स्‍थायी समिति के दायरे में चर्चा की गई है। दांव पर मुद्दा डिजिटल और नई प्रौधोगिकियों  और इंटरनेट के बढ़ते उपयोग के जवाब में प्रसारण संगठनों के संरक्षण को  अधतन करना है, जो सम्‍बन्धित अधिकारों के धारक हैं।

1961 में रोम कन्‍वेंशन को अपनाने के बाद से प्रौधोगिकी  और बाजार में महत्‍वपूर्ण विकास प्रसारण क्षेत्र में हुए है। यह प्रक्रिया WIPO वर्ल्डवाइड सिम्‍पोजियम ऑन ब्रॉडकास्‍टर्स राइट्स में शुरु की गई थी जो 1997 में मनीला में आयोजित किया गया था। WIPO के सदस्‍यों ने 1996 में तथाकथित WIPO इंटरनेट संधियों पर सहमति व्‍यक्‍त करने के बाद, कॉपीराइट और फोनोग्राम्‍स (साउंड रिकार्डिंग) के निर्माताओं और ब्रॉडकास्‍टर भी नई प्रसारण तकनीकों के लिए अधतन सुरक्षा के लिए दबाव बनाने लगे। प्रसारण संगठनों के संरक्षण से सम्‍बन्धित बैठकें कॉपीराइट और सम्‍बन्धित अधिकारों पर स्थायी समिति पर 2006 WIPO महासभा, सदस्‍य देशों ने फैसला किया कि SCCR के दो विशेष सत्र लम्बित मुद्दों, को स्‍पष्‍ट करने के लिए बुलाई जाए। उन सत्रों का उद्देश्‍य सिग्‍‍नल-आधारित दृष्टिकोण पर सहमत होना और अंतिम रुप देना है, राजनयिक सम्‍मेलन में एक संशोधित मूल प्रस्‍ताव प्रस्‍तुत करने की दृष्टि से उद्देश्‍यों, विशिष्‍ट दायरे और सुरक्षा की वस्‍तु दो विशेष सत्र 17 से 19 जनवरी और 18 से 22 जून, 2007 तक जिनेवा में हुआ। 2011 में कॉपीराइट और सम्‍बन्धित अधिकारों पर WIPO की स्‍थायी समिति, जो प्रसारण वार्ताओं के लिए जिम्‍मेदार है, ने एक नई मसौदा संधि के साथ आने के लिए एक कार्य योजना पर सहमति व्‍यक्‍त की, जो सभी या अधिकांश WIPO सदस्‍यों को स्‍वीकार्य होगी।

WIPO महासभा के 39वें सत्र के निर्णय के बाद, प्रसारण संगठन के अधिकार की सुरक्षा का मुद्दा अपने नियमित सत्र के लिए SCCR के एजेंडे पर बरकरार है।

प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम ,1957 की धारा 37:- 

  1. धारा 37(1) प्रत्‍येक प्रसारण संगठन को उसके प्रसारण के सम्‍बन्‍ध में एक विशेष अधिकार होगा जो उसके प्रसारणों के सम्‍बनध में, ‘प्रसारण पुनरुत्‍पादन अधिकारके रुप में जाना जायेगा।
  2. धारा 37(2) के अनुसार प्रसारण पुनरुत्‍पादन अधिकार उस वर्ष में जिसमें प्रसारण किया गया है, ठीक उससे आगामी कैलेण्‍डर वर्ष के आरम्‍भ में जब तक 25 वर्ष समाप्‍त न हो जायें, अस्तित्‍व में रहेगा।
  3. धारा 37(3) किसी प्रसारण के संबंध  में प्रसारण पुनरुत्‍पादन अधिकार के उल्‍लंघन के बारे में उपबंधित करती है – किसी प्रसारण के संबंध  में प्रसारण पुनरुत्‍पादन अधिकार के अस्तित्‍व के दौरान कोई व्‍यक्ति जो अधिकार के स्‍वामी की अनुज्ञप्ति के बिना, प्रसारण का या उसके किसी पर्याप्‍त हिस्‍से के सम्‍बनध में निम्‍न में से कोई कृत्‍य करता है
  1. प्रसारण का पुन: प्रसारण करता है, या 
  2. प्रसारण को सार्वजनिक रुप से किन्‍हीं प्रभारों का भुगतान करने पर सुनवाता है या दिखवाता है, या 
  3. प्रसारण का कोई ध्‍वन्‍यांकन या दृश्‍यांकन करता है, या 
  4. ऐसे ध्‍वन्‍यांकन या दृश्‍यांकन का पुनरुत्‍पादन करता है जहां ऐसे प्रारम्भिक ध्‍वन्‍यांकन बिना अनुज्ञप्ति के किया गया था या जहॉं वह अनुज्ञप्ति के अधीन किया गया था, वहां उस अनुज्ञप्ति द्वारा परिकलिप्‍त नहीं थी, या 
  5. खण्‍ड (ग) और खण्‍ड (घ) में निर्दिष्‍ट ऐसे किसी ध्‍वन्‍यांकन या दृश्‍यांकन का विक्रय करता है या वाणिज्यिक भाड़े पर देता है या विक्रय के लिए या ऐसे भाड़े पर देने के लिए प्रस्‍थापना करता है।

तो यह समझा जायेगा कि उसने धारा 39 के उपबन्‍धों के अधीन रहते हुए उस प्रसारण पुनरुत्‍पादन अधिकार का अतिलंघन किया होगा।

प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम ,1957 की धारा 39-कृत्‍य जो प्रसारण पुनरुत्‍पादन अधिकार या प्रस्‍तुतकर्ता के अधिकार का अतिलंघन नहीं करते:-

किसी भी प्रसारण पुनरुत्‍पादन या प्रस्‍तुतकर्ता के अधिकारों को निम्‍न द्वारा अतिलंघन किया हुआ नहीं समझा जायेगा

  1. किसी ध्‍वन्‍यांकन या दृश्‍यांकन करने वाले व्‍यक्ति के नि‍जी उपयोग के लिये या एकमात्र सद्भावी रुप से शिक्षण या अनुसंधान के प्रयोजनों के लिये किया गया कोई ध्‍वन्‍यांकन या दृश्‍यांकन तैयार करना, या
  2. साम‍यिक घटनाओं के प्रतिवेदन तैयार करने में या सद्भावतापूर्वक समीक्षा शिक्षण या अनुसंधान की रिपोर्टिंग में कोई प्रस्‍तुति के या किसी प्रसारण की झलकियों का, उचित सम्‍व्‍यवहार के अनुरुप उपयोग करना या
  3. किन्‍हीं अन्‍य ऐसे आवश्‍यक अनुकूलनों एवं उपान्‍तरणों के साथ, जो धारा.52 के अधीन प्रतिलिप्‍याधिकार का अतिलंघन नहीं करते, अन्‍य कृत्‍यों को करना।

केस :- कमिश्‍नर ऑफ कस्‍टम्‍स V. एस्‍सार स्‍टील लि. AIR 2015 (S.C.W.) (2538)

इस मामले में S.C. ने अभिनिर्धारित किया कि अगर कोई कम्‍पनी या संस्‍था अपने व्‍यापार को स्‍थापित करने के लिए किसी तकनीकी विशेषज्ञ को नियुक्‍त करती है जिसके लिए वह विशेषज्ञ उस प्‍लान्‍ट को सफलतापूर्वक स्‍थापित करता है और कार्य कर रहा है लेकिन इसके लिए जो भी तकनीकी ज्ञान काम में लिया गया है उसका प्रतिलिप्‍याधिकार, पेटेन्‍ट और व्‍यापार चिन्‍ह पर उसका ही अधिकार होगा कम्‍पनी का नहीं।

केस:- फोनोग्राफिक परफोरमेन्‍स लि. आदि V. एन्‍टरटेन्‍मेन्‍ट नेटवर्क (इण्डिया) लि. आदि 2011 (4) स्‍केल 591

इस  वाद में S.C. ने निर्धारित किया कि ध्‍वनि रिकॉर्डिंग के मामले में, उस ध्‍वनि रिकार्डिंग में ध्‍वन्‍या‍न्कित कृति को ऐसे निबन्‍धनों पर जिन्‍हें परिवादी युक्तियक्‍त समझता है, प्रसारण के द्वारा सार्वजनिक रुप से संसूचित करने की अनुज्ञा प्रतिलिप्‍याधिकार बोर्ड, प्रतिलिप्‍याधिकारी के स्‍वामी को सुनवाई का युक्तियुक्‍त अवसर देने के पश्‍चात् और ऐसी जांच जो आवश्‍यक समझे, करने के बाद, प्रतिलिप्‍याधिकार पंजीयक को निर्देश दे सकता है कि वह परिवादी को यथास्थिति उस कृति को पुन: प्रकाशित करने, सार्वजनिक रूप से प्रस्‍तुत करने या उस कृति के प्रसारण द्वारा सार्वजनिक रूप से संसूचित करने की अनुज्ञा दे सकता है।

केस:- गरवारे प्‍लास्टिक एण्‍ड पॉलिस्‍टर लि. V टेलीलिन्‍क AIR 1989 बाम्‍बे 331.

इस मामले में Bombay H.C. ने निर्धारित किया कि प्रसारण तात्‍पर्य से ध्‍वन्‍यांकन या दृश्‍यांकन दोनों ही माध्‍यमों से जो चाहे रेडियों के द्वारा हो या टेलीवजन के द्वारा किया गया हो, प्रसारण कहलायेगा।

केस:- काल केबल्‍स प्रा. लि. V दी सेक्रेटरी टू गवर्नमेन्‍ट ऑफ तमिलनाडु (2012) 1 M.L.J. 406

इस मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने निर्धारित किया कि प्रस्‍तुत मामले में प्रसारण संस्‍थाओं एवं प्रस्‍तुतकर्ताओं के प्रतिलिप्‍याधिकार के बारे में कई तथ्‍यों पर विवाद या जिन्‍हें संविधान के अनु. 226 में पेश की गई याचिका के तहत तय नहीं किया जा सकता है इस तरह के अधिकारों के निर्धारण के लिए मामलों को सिविल एवं दाण्डिक न्‍यायालयों के समक्ष पेश किया जाना चाहिए।

केस – एस्‍पन स्‍टार स्‍पोर्टस V ग्‍लोबल ब्रॉडकास्‍ट न्‍यूज़ लि. SORS 26 सितम्‍बर 2008

एक खेल कार्यक्रम में कॉपीराई प्रसारण अधिकारों पर लागू नहीं होता है और यह कि ऐसे अधिकार विशेष हैं।

केस:- M.S. जेक कम्‍युनिकेशंस प्रा. लि. V M.S. सन टीवी नेटवर्क लि. 27 अप्रैल 2010 

इस मामले में किसी भी तरह के प्रसारण प्रजनन अधिकारों के उल्‍लंघन और उल्‍लंघन के साथ- साथ कार्यक्रमों में कॉपीराइट का प्रसारण किया जाता है।

प्रसारकों को और क्‍या अधिकार दिए जाने चाहिए ? –

रोम कन्‍वेंशन के तहत, ब्रॉडकास्‍टरों को अपने प्रसारण के जनता के लिए विद्रोह, ‘’निर्धारण’’ (रिकॉर्डिंग) प्रजनन और संचार को अधिकृत करने के लिए 20 वर्षों के लिए विशेष अधिकार है। अधिकांश प्रसारणकर्ता चाहते हैं कि नई संधि नई प्रौद्योगिकियों के लिए उन अधिकारों का विस्‍तार और अधतन करें, विशेष रूप से इंटरनेट पर अपने कार्यक्रमों के अनधिकृत पुन: प्रसारण को रोकने के लिये। हालांकि कुछ देशों (27 सदस्‍यीय यूरोपीय संघ सहित) के पास प्रासंगिक घरेलू कानून हैं, लेकिन यह विदेशी चोरी से कोई सुरक्षा प्रदान नहीं करता है। दुनिया के अधिकांश हिस्‍सों में बिना अनुमति के इंटरनेट पर प्रसारण को फिर से शुरु करना पूरी तरह से कानूनी है।

निष्‍कर्ष –

ब्रॉडकास्टिंग मीडिया टेलीविज़न ब्रॉडकास्टिंग मीडिया में उभरता हुआ बाजार है क्‍योंकि इसके लिये प्रतिस्‍पर्धा दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है जो कि बिना सेंसर किए गए दृश्‍य और अनाधिकृत प्रसारण द्वारा राज्‍य की सार्वजनिक नैतिकता और सुरक्षा को बहुत प्रभावित करती है जो इसके लिए राज्‍य की सुरक्षा को नुकसान पहुँचाता है और इसे नियमित करना चाहिए।

अत: रोम कन्‍वेंशन 1961 के बाद इसमें प्रावधान बनने लगे। भारत में भी प्रतिलिप्‍याधिकार अधिनियम 1957 की धारा 37, 39 में दिये गये। जहॉं पर प्रस्‍तुतकर्ताओं, प्रसारणकर्ताओं, प्रसारण के संगठन आदि को निम्‍न अधिकार दिये गये है।

प्रसारणकर्ताओं को अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर भी अधिकार देने पर समर्थकों का कहना है कि अंतर्निहीत सामग्री के बारे में स्थिति नहीं बदलेगी, क्‍योंकि यह हमेशा दूसरों के लिए उसी सामग्री के अपने स्‍वयं के संस्‍करणों को प्रसारित या प्रसारित करने के लिए खुला रहेगा।

सन्‍दर्भ सूची

  1. धाकड़ज्ञानवती –बौद्धिक सम्‍पदा विधियॉं‘सेन्‍ट्रल लॉ पब्लिकेशन्‍स’ 3rd संस्‍करण 2018
  2. कक्ष व्‍याख्‍यान – डॉ. प्रभात कुमार साहा
  3. ऑनलाइन वेबसाइट इत्‍यादि।

 

“यह आर्टिकल Aryesha Anand के द्वारा लिखा गया है जो की LL.B.(hons.) Vth सेमेस्टर BANARAS HINDU UNIVERSITY (BHU) की छात्रा है |”

 

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