सामान्यतः आर्म्स एक्ट (आयुध अधिनियम), 1959 के प्रकरण न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय द्वारा विचारणीय होते हैं, जिसमें दिन-प्रतिदिन सहायक जिला लोक अभियोजन अधिकारियों द्वारा कार्य किया जाता है। उक्त अधिनियम के कुछ विशेष प्रावधान जिसमें –
अधिनियम की धारा 2 की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषायें जैसे-
धारा-2 बी -गोला बारूद
धारा-2 सी- आयुध
धारा-2 डी -जिला मजिस्ट्रेट
धारा-2 ई- अग्न्यायुध
धारा-2 एच- प्रतिद्ध गोला बारूद
धारा-2 आई- प्रतिशिद्ध आयुध
धारा 3 – अग्न्यायुध एवं गोला बारूद के अर्जन और कब्जे के लिये अनुज्ञप्ति के बारे में प्रावधान
धारा 4- अग्न्यायुध से भिन्न आयुधों का अर्जन कब्जे में रखना या वहन विनयमित किया जाना, जिसके संबंध में शासन राजपत्र में अधिसूचना द्वारा ऐसे वर्ग या वर्णन के आयुध को विनिर्दिष्ट क्षेत्र में प्रतिषिद्ध कर सकेगी।
धारा 25 – दण्ड का प्रावधान करती है, जिसमें धारा 3 और 4 का उल्लंघन दण्डनीय अपराध है
धारा 38- इस अधिनियम के तहत प्रत्येक अपराध संज्ञेय है
धारा 39 -धारा 3 के अधीन किसी अपराध के बारे में कोई भी अभियोजन जिलामजिस्ट्रेट की पूर्व मंजूरी के बिना संस्थित नहीं किया जायेगा ।
आर्म्स एक्ट में हथियार प्रस्तुत कराना आवश्यक –
प्रत्येक मामले में जब्तसुदा हथियार ( आर्टीकल ) प्रस्तुत कराना आवश्यक होता है। यदि जब्तसुदा आर्टीकल न्यायालय के समक्ष अभियोजन द्वारा प्रस्तुत नहीं। (काले बाबू विरुद्ध स्टेट ऑफ एम. पी. 2008 (4) एम.पी.एच.टी. 397 )
आर्म्स एक्ट में अभियोजन चलाने की लेनी पड़ती हैं मंजूरी –
जिला मजिस्ट्रेट के स्थान पर अति. जिला मजिस्ट्रेट(ADM) द्वारा दी गई मंजूरी वैध मंजूरी है इस संबंध में आर्म्स रूल 1962 नियम 2 (एफ) 2 अवलोकनीय है, जिसके अनुसार जिला मजिस्ट्रेट में उस जिले का अति. जिला मजिस्ट्रेट या अन्य अधिकारी जिसे राज्य सरकार ने विशेष रूप से सशक्त किया हो शामिल होते है। (विजय बहादुर उर्फ बहादुर विरुद्ध स्टेट ऑफ एम. पी. 2002 (4) एम.पी.एच.टी. 167)
अभियोजन चलाने की अनुमति को जिला मजिस्ट्रेट से ही प्रमाणित कराया जाना आवश्यक नहीं है। अनुमति का आदेश जिला मजिस्ट्रेट द्वारा अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन के दौरान जारी किया है। इसलिये यह अवधारणा की जायेगी कि कार्य सद्भाविक तरीके से किया गया है। अतः ज़िला मजिस्ट्रेट को गवाह के रूप में परिचित कराया जाना अभियोजन के लिये आवश्यक नहीं है। किसी अन्य से भी अभियोजन स्वीकृति प्रमाणित करवाई जा सकती है। (स्टेट ऑफ एम. पी. विरुद्ध जीयालाल आई. एल. आर. 2009 एम.पी. 2487 अवलोकनीय। )
अभियोजन चलाने का आदेश एक लोक दस्तावेज है जिसे साक्ष्य अधिनियम धारा 76-78 में बतलाये तरीकों से प्रमाणित किया जा सकता है।( शिवराज सिंह यादव विरुद्ध स्टेट ऑफ एम. पी. 2010 (4) एम. पी. जे. आर. 49 डी. बी.)
अभियोजन के लिये यह प्रमाणित करना आवश्यक नहीं है कि सारी सामग्री अनुमति देने वाले अधिकारी के सामने रखी थी। (सी.एस. कृष्णामूर्ति विरुद्ध स्टेट ऑफ कर्नाटका 2005 (4) एस. सी. सी. 81)
अभियोजन चलाने की मंजूरी लेते समय आयुध को प्रस्तुत करना आवश्यक होता है और प्राधिकारी द्वारा उसका परीक्षण भी आवश्यक नहीं होता है। (गुरू गोगा विरुद्ध स्टेट ऑफ एम. पी. आई. एल. आर. 2011 एम. पी. 208)
जब आर्म्स एक्ट में साक्षी द्वारा जब्ती का समर्थन न करना –
यदि एक मात्र जब्तीकर्ता (पुलिस) के साक्ष्य विश्वास किये जाने योग्य हो तब जब्ती के अन्य गवाहों की पुष्टी के अभाव में भी उस पर विश्वास किया जा सकता है। नाथू सिंह विरुद्ध स्टेट ऑफ एम. पी. ए.आई. आर. 1973 एस.सी. 2783 अन्य साक्षीगण अभियोजन का समर्थन नहीं करते मात्र इस कारण पुलिस अधिकारी की साक्ष्य अविश्वसनीय नहीं हो जाती ।
पुलिस अधिकारी के साक्ष्य को भी अन्य साक्षीगण के साक्ष्य की तरह ही लेना चाहिये, ऐसा कोई नियम नहीं है कि अन्य साक्षीगण की पुष्टि के आभाव में पुलिस अधिकारी के साक्ष्य पर भरोसा नहीं किया जा सकता। एक व्यक्ति ईमानदारी से कार्य करता है यह उपधारण पुलिस अधिकारी के पक्ष में भी लेना चाहिये। यह प्रत्येक मामले के तथ्यों एवं परिस्थितिओं पर निर्भर करता है।
प्रथम सूचना लेखक और अनुसंधान अधिकारी एक होने के बारे में आर्म्स एक्ट में विधिक स्थिति-
ऐसी स्थिति में जब जब्तीकर्ता, प्रथम सूचना लेखक तथा अनुसंधान अधिकारी एक ही व्यक्ति होता है, उस समय कुछ विपरीत तर्क दिये जाते हैं, इस संबंध में विधिक स्थिति संज्ञेय अपराध का अनुसंधान वह पुलिस अधिकारी करने में सक्षम है जो किसी सूचना के आधार पर प्रथम सूचना प्रतिवेदन लिखता है और अपराध पंजीबद्ध करता है वह अधिकारी अंतिम प्रतिवेदन भी प्रस्तुत कर सकता है। अभियुक्त के हितों पर इससे प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है यह स्वतः ही अनुमान नहीं लगाया जा सकता है यह प्रत्येक मामले के तथ्य एवं परिस्थितियों पर निर्भर करता है। (स्टेट विरुद्ध जयपाल 2004 ए.आई. आर. एस. सी. डब्ल्यू, 1762 एस. जीवन नाथम विरुद्ध स्टेट 2004 ए.आई. आर. एस. सी. डब्ल्यू. 4001)
आर्म्स एक्ट में तलाशी पुलिस अधिकारी किस तरह करेगा –
यदि जब्तीकर्ता पुलिस अधिकारी ने उस क्षेत्र के गवाह तलाशी में ना लिये हों, यदि द.प्र.सं. के सामान्य प्रावधानों का जो मार्गदर्शक होते हैं, थोड़ा उल्लंघन हुआ है तब भी न्यायालय को यह विवेकाधिकार है कि वह तय करे कि साक्ष्य स्वीकार योग्य है या नहीं। (स्टेट ऑफ एम. पी. विरुद्ध पलटन मल्लाह 2005 वाल्यूम 3 ए.सी.सी. 169)
आर्म्स एक्ट में जब्ती पंचनामा तैयार करना –
जब्ती पंचनामा स्वयं तात्विक साक्ष्य नहीं होता, आर्म्स एक्ट की कार्यवाही में उसके तथ्यों को संबंधित गवाह प्रमाणित करवाया जाना आवश्यक होता है।( श्रवण विरुद्ध स्टेट ऑफ एम. पी. 2006 (2) ए.एन.जे. (एम.पी. 235) दशरथ विरुद्ध स्टेट ऑफ एम. पी. आई.एल. आर. 2008 एम.पी. 360)
आर्म्स एक्ट में आर्टिकल का सीलबंद ना करने के संबंध में –
रिवाल्वर व दो कारतूस का मामला, जब्त सामानों का विवरण और विशेषज्ञ की रिपोर्ट का विवरण सामान्यतः पश्चातवर्ती प्रकरण पर जब्त सामग्री को टेम्पर करने का बचाव लिया गया, जो अमान्य किया गया। आर्म्स एक्ट की कार्यवाही में सामग्री को सीलबंद ना करना महत्वपूर्ण गया है। यह केस के तथ्य एवं परिस्थितियों पर निर्भर करता है। (बिलाल अहमत विरुद्ध स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश ए.आई. आर. 1997)