उपताप क्या है? : –
विनफील्ड के अनुसार: -“एक अपकृत्य के रूप में ‘उपताप’ से तात्पर्य किसी व्यक्ति द्वारा भूमि के उपयोग और उपभोग या उस पर या उससे सम्बन्धित कुछ अधिकार के साथ विधि-विरुद्ध हस्तक्षेप है।”
पोलक के अनुसार: “किसी की भूमि या उससे संबंधित किसी अधिकार में बिना किसी विधिक औचित्य के हस्तक्षेप करना उपताप कहलाता है।”
ब्लेकस्टोन के अनुसार : “जिस कृत्य से किसी व्यक्ति को आघात, असुविधा या क्षति होती है वह उपताप है।”
उपताप के उदाहरण हैं:– शोर मचाना, ऊँचे स्वर में गाना, चिल्लाना, दुर्गन्ध फैलाना आदि। उपताप एक निरन्तर कायम रहने वाला अपकृत्य है। अस्थाई प्रकार के कार्य या कभी-कभी होने वाले कार्य उपताप की श्रेणी में नहीं आते।
उपताप के आवश्यक तत्व क्या है? |
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उपताप के आवश्यक तत्व निम्नानुसार हैं :- (1) अनुचित हस्तक्षेप (2) भूमि के उपभोग में ऐसा हस्तक्षेप । (3) क्षति | |
उपताप कितने प्रकार के होते है :
उपताप दो प्रकार के होते है-
1. लोक उपताप या सार्वजनिक बाधा (Public Nuisance )
2. वैयक्तिक उपताप या प्राइवेट न्यूसेंस (Private Nuisance)
(1) लोक उपताप या सार्वजनिक बाधा (Public Nuisance ) :
जैसा कि नाम से ही प्रकट है कि वह उपताप जो सामान्य जनता या लोगों के एक वर्ग को प्रभावित करता है लोक उपताप कहलाता है। लोक उपताप एक अपराध है। लोप उपताप के मामले में दीवानी तथा आपराधिक दोनों उपचार उपलब्ध होते हैं। लोक उपताप में सुखाधिकार के आधार पर कोई अधिकार प्राप्त नहीं होता।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 268 में लोक उपताप को परिभाषित किया गया है। उक्त धारा के अनुसार वह व्यक्ति लोक न्यूसेंस का दोषी है, जो कोई ऐसा कार्य करता है, या किसी ऐसे अवैध लोप का दोषी है, जिससे लोक को या जनसाधारण को जो आसपास में रहते हों या आसपास की संपत्ति पर अधिभोग रखते हों, कोई सामान्य क्षति, संकट या क्षोभ कारित हो या जिसमें उन व्यक्तियों का जिन्हें किसी लोक अधिकार को उपयोग में लाने का मौका पड़े, क्षति, बाधा, संकट या क्षोभ कारित होना अवश्यंभावी हो।
कोई सामान्य न्यूसेंस इस आधार पर माफी योग्य नहीं है, कि उससे कुछ सुविधा या भलाई कारित होती है।
केस:- रोज बनाम माइल्स, (1815) 4 एम. एण्ड एस. 101
इस मामले में प्रतिवादी ने दोषपूर्ण रीति से अपनी नाव को रस्सी से बाँधकर सार्वजनिक स्थान पर रखा जिसके कारण वादी की नाव का रास्ता बंद हो गया और उसे नाव पर लदे सामान के परिवहन के लिये अतिरिक्त व्यय करना पड़ा। न्यायालय ने प्रतिवादी को उपताप करने का दोषी ठहराया।
केस:- विण्टरबाटम बनाम लार्ड डर्बी (1867)
इस वाद में प्रतिवादी के अभिकर्ता ने एक सार्वजनिक मार्ग पर -अवरोध उत्पन्न कर दिया था। वादी ने इस अभिकथन के साथ कार्यवाही की, कि इस अवरोध के कारण उसे कभी-कभी दूसरे रास्ते से जाना पड़ता है और कभी-कभी इस अवरोध को हटाने के लिये कुछ खर्च भी करना पड़ता है। यह धारित किया गया है कि उसे क्षतिपूर्ति नहीं मिल सकती, क्योंकि उसे उस क्षति की उपेक्षा जो कि जनता के अन्य सदस्यों को सहन करनी पड़ी थी, अधिक क्षति नहीं सहन करनी पड़ी थी।
(2) वैयक्तिक उपताप या प्राइवेट न्यूसेंस (Private Nuisance) :
विनफील्ड के शब्दों में : “ प्राइवेट न्यूसेंस किसी व्यक्ति के भूमि के या भूमि के ऊपर या उससे संबंधित किसी अधिकार के प्रयोग या उपयोग में अवैध हस्तक्षेप है।”
अतः हम कह सकते हैं कि किसी व्यक्ति की भूमि या उससे संबंधित किसी उपयोग अथवा उपभोग में अवैध हस्तक्षेप करना वैयक्तिक उपताप कहलाता है। वैयक्तिक उपताप एक सिविल अपकार अर्थात् अपकृत्य है। वैयक्तिक उपताप से कोई व्यक्ति विशेष या बहुत थोड़े व्यक्ति प्रभावित होते हैं। वैयक्तिक उपताप यदि लम्बे समय तक चलता रहे तो सुखाधिकार के आधार पर अधिकार प्राप्त हो जाता है ।
वैयक्तिक उपताप दो प्रकार से किया जा सकता है :-
(1) दोषपूर्ण हस्तक्षेप जो भूमि से जुड़े किसी सुखाधिकार या सुविधा से संबंधित हो।
(2) कोई हानिकारक पदार्थ किसी की भूमि पर जाने देकर जैसे पानी, वायु, दुर्गन्ध, धुआँ आदि।
ऐसा व्यापार करना जिससे घृणोत्पादक गंध फैलती हो व्यक्तिगत उपताप है क्योंकि इससे कोई व्यक्ति विशेष या बहुत थोड़े व्यक्ति प्रभावित होते हैं।
आवश्यक संघटक (तत्व) –
1. अयुक्तियुक्त व्यवधान, बाधा अथवा हस्तक्षेप;
2. व्यवधान, बाधा अथवा हस्तक्षेप भूमि के प्रयोग अथवा उपयोग के साथ किया गया है;
3. क्षति।
केस:- उषा बेन बनाम भाग्यलक्ष्मी चित्र मन्दिर, ए.आई. आर. 1978 गुजरात 13
इस मामले में अपीलार्थी ने “जय संतोषी माँ” फिल्म के प्रदर्शन को रोकने के लिये स्थायी व्यादेश के लिये वाद संस्थित किया। इसके लिये अपीलार्थी ने यह आधार दिया कि फिल्म में सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती देवियों को ईर्ष्यालु बताया गया है जिससे उसकी धार्मिक भावनाओं को चोट पहुँची है। न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि धार्मिक भावना को चोट पहुँचाना कार्यवाही योग्य अपकार नहीं है। वादी इस बात के लिये स्वतंत्र है कि दुबारा उस फिल्म को न देखे।
केस:- अब्दुल हकीम बनाम अहमद खाँ, ए.आई. आर. 1985 म.प्र. 88
इस मामले में निर्णय दिया गया कि समीप के मकान के रसोई घर से तीन फुट की दूरी पर देशी खुले शौचालय का निर्माण करना उपताप है जिसको रोकने के लिये आदेशात्मक व्यादेश दिया जा सकता है।
केस :- क्रस्टी बनाम डेवी (1893)
इस वाद में वादी का संगीत अध्यापक था। प्रतिवादी जो उसके बगल में रहता था, वादी के संगीत पाठों के कारण चिड़ सा गया था। प्रतिवादी ने विद्वेषपूर्ण रीति से मकान का विभाजन दीवार ठोंककर, थालियों से पीटकर और सीटियाँ बजाकर तथा अनेक प्रकार के शोरगुल करके वादी को असुविधा पहुँचाना प्रारम्भ कर दिया। न्यायालय ने प्रतिवादी के प्रतिकूल एक व्यादेश जारी किया। न्यायाधिपति नार्थ ने कहा कि मेरे मत से वादी के मकान में जो शोरगुल उत्पन्न किया गया था वह प्रकृति से विधिमान्य नहीं था।
केस :- सेण्ट हेलेनस स्मेल्टिंग कम्पनी बनाम टिप्पिंग(1865)
इस वाद में प्रतिवादी की कम्पनी से निकली भाप (fumes) के कारण वादी के वृक्षों और झाड़ियों को क्षति पहुँची थी। यह क्षति चूंकि सम्पत्ति की क्षति थी, अतः यह धारित किया गया कि प्रतिवादीगण उसके लिये उत्तरदायी थे। यह तर्क कि उस स्थान के निवासी प्रतिवादी कम्पनी के कार्य से लाभान्वित होते थे प्रतिरक्षा के निमित्त अस्वीकार कर दिया गया।
केस:- बारबर बनाम पेन्ले (1893)
वाद में प्रतिवादी थियेटर में एकत्र व्यक्तियों की पंक्तिबद्ध भीड़ के कारण वादी के परिसर में, जो एक छात्रावास था, किसी किसी समय प्रवेश करना अत्यन्त कठिन हो जाता था। यह धारित किया गया कि अवरोध एक प्रकार का न्यूसेन्स था और थियेटर का प्रबन्धक वर्ग उसके लिये उत्तरदायी ठहराया गया।
केस:- डवायर बनाम मैन्सफील्ड (1946)
वाद में आलू की अत्यधिक कमी हो जानने के कारण प्रतिवादी की दुकान के बाहर आलू के लिये लम्बी पंक्तिबद्ध भीड़ रहती थी प्रतिवादी फल और सब्जियाँ बेचने का एक अनुज्ञाधारी दुकानदार था और हर राशन कार्ड पर केवल एक पौण्ड आलू बेच सकता था। व्यक्तियों की पंक्तिवद्ध भीड़ फैलकर राजमार्ग तक ली जाती थी और पड़ोस की कुछ दुकानों को उसके कारण अवरोध भी होता था। पड़ोस के इन दुकानदारों ने न्यूसेन्स के लिये प्रतिवादी के विपरीत जब वाद लाया तो यह धारित किया गया कि प्रतिवादी उत्तरदायी नहीं था क्योंकि उसका कार्य अयुक्तियुक्तक नहीं था, वह तो आलुओं की कमी की अवधि में सामान्य ढंग से अपना कारवार चला रहा था।
प्रतिरक्षाएँ (Defences) :
लोक उपताप में दीवानी एवं आपराधिक दोनों उपचार उपलब्ध होते हैं। किसी विशेष वादी के लिये उपताप सामान्य जनता के लिये लाभकारी हो तो उसे प्रतिरक्षा के रूप में नहीं लिया जा सकता। उपताप के विरुद्ध विधिक प्रतिरक्षाएँ निम्नानुसार हैं:-
(1) ‘चिरभोगाधिकार अथवा सुखाधिकार :-
वैयक्तिक उपताप के मामले में प्रतिवादी भोगाधिकार अथवा सुखाधिकार का बचाव ले सकता है। यदि प्रतिवादी ने शान्तिपूर्वक बिना किसी विघ्न, बाधा, व्यवधान अथवा हस्तक्षेप के विगत( लगातार) 20 वर्षों से उसका उपभोग किया हो तो भारतीय सुखाधिकार अधिनियम के उपबंधों के अनुसार उसे सुखाधिकार प्राप्त हो जाता है किन्तु लोक उपताप के संदर्भ में ऐसा कोई रिभोगाधिकार प्राप्त नहीं है।
(2) सांविधिक प्राधिकार:-
यदि कोई कार्य किसी संविधि के प्राधिकार से किया जाता है तो यह एक अच्छी प्रतिरक्षा है। जैसे रेल के कारण धुआँ, शोरगुल या चिंगारी निकलने से लोक उपताप का अपराध नहीं बनता।
संदर्भ-
- अपकृत्य विधि-आर.के. बंगिया
- अपकृत्य विधि- जयनारायण पाण्डेय
- अपकृत्य विधि- एम एन शुक्ला
- अपकृत्य विधि -भीमसेन खेत्रपाल
- अपकृत्य विधि- MCQ BOOK
FAQ
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उपताप क्या है ?
“एक अपकृत्य के रूप में ‘उपताप’ से तात्पर्य किसी व्यक्ति द्वारा भूमि के उपयोग और उपभोग या उस पर या उससे सम्बन्धित कुछ अधिकार के साथ विधि-विरुद्ध हस्तक्षेप है।”
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उपताप के आवश्यक तत्व क्या है ?
उपताप के आवश्यक तत्व निम्नानुसार हैं :-
(1) अनुचित हस्तक्षेप
(2) भूमि के उपभोग में ऐसा हस्तक्षेप ।
(3) क्षति | -
उपताप कितने प्रकार के होते है ?
उपताप दो प्रकार के होते है-
1. लोक उपताप या सार्वजनिक बाधा (Public Nuisance )
2. वैयक्तिक उपताप या प्राइवेट न्यूसेंस (Private Nuisance) -
विनफील्ड के अनुसार उपताप की क्या परिभाषा है ?
विनफील्ड के अनुसार: -“एक अपकृत्य के रूप में ‘उपताप’ से तात्पर्य किसी व्यक्ति द्वारा भूमि के उपयोग और उपभोग या उस पर या उससे सम्बन्धित कुछ अधिकार के साथ विधि-विरुद्ध हस्तक्षेप है।”
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प्राइवेट न्यूसेंस क्या है ?
विनफील्ड के शब्दों में : “ प्राइवेट न्यूसेंस किसी व्यक्ति के भूमि के या भूमि के ऊपर या उससे संबंधित किसी अधिकार के प्रयोग या उपयोग में अवैध हस्तक्षेप है।”
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लोक उपताप (Public Nuisance ) क्या है ?
वह उपताप जो सामान्य जनता या लोगों के एक वर्ग को प्रभावित करता है लोक उपताप कहलाता है। लोक उपताप एक अपराध है।
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आईपीसी किस धारा में लोक उपताप को परिभाषित किया गया है?
आईपीसी की धारा 268 में लोक उपताप को परिभाषित किया गया है।
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उपताप के उदाहरण क्या हैं ?
उपताप के उदाहरण जैसे – शोर मचाना, ऊँचे स्वर में गाना, चिल्लाना, दुर्गन्ध फैलाना आदि।