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जमानतीय अपराध और अजमानतीय अपराध में अंतर | Difference between Bailable Offence and Non – Bailable Offence in hindi

जमानतीय अपराध और अजमानतीय अपराध में अंतर

जमानतीय अपराध और अजमानतीय अपराध में अंतर | Difference between Bailable Offence and Non – Bailable Offence in hindi

 

प्रस्तावना-:

दंड प्रक्रिया संहिता 1973, के तहत जमानत के आधार पर अपराधों को जमानतीय अपराध और अजमानतीय अपराध के रूप में बांटा जा सकता है,  जमानतीय अपराध में आरोपी को जमानत दी जा सकती है। अजमानतीय अपराध में आरोपी को सामान्य परिस्थितियों में जमानत नहीं दी जा सकती है।

अपराध क्या है:-अपराध को किसी भी कार्य या चूक के रूप में वर्णित किया जा सकता है जो किसी कानून के तहत दंडनीय है।

जमानतीय अपराध और अजमानतीय अपराध की परिभाषा -:

दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 2(क) में जमानतीय अपराध और अजमानतीय अपराध को परिभाषित किया गया है:

“धारा 2(क) के अनुसार, “जमानतीय अपराध” से ऐसा अपराध अभिप्रेत है जो प्रथम अनुसूची में जमानतीय के रूप में दिखाया गया है या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा जमानतीय बनाया गया है और  “अजमानती अपराध” से कोई अन्य अपराध अभिप्रेत है।

केस:-मोतीराम बनाम मध्य प्रदेश राज्य (ए आई आर 1978) एस. सी. 1594।

इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश कृष्ण अय्यर ने कहा कि “जमानत एक नियम है और जेल एक अपवाद है

जमानतीय अपराध और अजमानतीय अपराध में अंतर

जमानतीय अपराध(Bailable Offence)अजमानतीय अपराध(Non- Bailable Offence)
1. जमानतीय अपराध वह अपराध होते हैं जो प्रथम अनुसूची में जमानतीय दिखाए गए हैं और दूसरे अधिनियमों में जमानतीय बनाए गए हैं।अजमानतीय अपराध से कोई अन्य अपराध अभिप्रेत है।
2. साधारणतः जमानतीय अपराध वे अपराध होते हैं जो 3 वर्ष से कम कारावास के दंड से दंडनीय है या केवल जुर्माने से दंडनीय है।अजमानतीय अपराध मृत्यु दंड, आजीवन कारावास या 3 वर्ष के कारावास की अवधि से अधिक के दंड से दंडनीय होते हैं।
3. जमानतीय अपराध की प्रकृति कम गंभीर होती है।इनकी प्रकृति अपेक्षाकृत ज्यादा गंभीर/ जघन्य होती है।
4. इसमें जमानत प्राप्त करने का अधिकार अभियुक्त का होता हैइसमें न्यायालय का विवेकाधिकार होता है।
5. इसमें जमानत देने का अधिकार जांच अधिकारी या थाने के प्रभारी अधिकारी को होता है।इसमें जमानत देने का अधिकार न्यायिक मजिस्ट्रेट या न्यायधीश को होता है।
6. जमानतीय अपराध में स्त्री, वृद्ध, रोगी ,बच्चा, इनके लिए कोई विशेष उपबंध नहीं किए गए हैं।अजमानतीय अपराध में स्त्री, वृद्ध , रोगी, बच्चों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं।
7. जमानतीय अपराधों में अग्रिम जमानत का कोई प्रावधान नहीं होता है।अजमानतीय अपराध में सीआरपीसी की धारा 438 में अग्रिम जमानत का प्रावधान किया गया है।
8. उदाहरण :- धोखाधड़ी (धारा 407 आईपीसी), चुनाव के लिए रिश्वत (धारा 171 आईपीसी), साधारण चोट, सार्वजनिक उपद्रव आदि।उदाहरण:-बलात्कार (धारा 376 आईपीसी), दहेज हत्या (धारा 304बी आईपीसी), हत्या (धारा 302 आईपीसी), अपहरण(धारा 362 आईपीसी) आदि।
9. सीआरपीसी की धारा 436 में जमानतीय अपराध के लिए प्रावधान किया गया है।अजमानतीय अपराध के लिए प्रावधान सीआरपीसी की धारा 437 में किया गया है।
10. जमानत प्रक्रिया:-जब आरोपी अपनी गिरफ्तारी के बाद उचित जमानत लाता, तो जांच अधिकारी आरोपी को रिहा करने के लिए बाध्य होता है।जांच अधिकारी को आरोपी के गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना होता है। उस समय वह मजिस्ट्रेट को या तो स्वयं या वकील के माध्यम से जमानत के लिए आवेदन कर सकता है।

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भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –

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