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बेल बनाम लीवर्स ब्रदर्स लिमिटेड 1932 | Bell v. Levers Brothers Ltd. 1932 A.C. 161

बेल बनाम लीवर्स ब्रदर्स लिमिटेड 1932 | Bell v. Levers Brothers Ltd. 1932 A.C. 161

बेल बनाम लीवर्स ब्रदर्स लिमिटेड 1932

बेल बनाम लीवर्स ब्रदर्स लिमिटेड का वाद संविदा विधि के अन्तर्गत भूल (Mistake) से सम्बन्धित है।

बेल बनाम लीवर्स ब्रदर्स लिमिटेड वाद के तथ्य तथा विवाद –

प्रतिवादो कम्पनी ने वादी को अपनी एक अधीनस्थ कम्पनी नाइजर कम्पनी (Niger Co.) में 5 साल के लिए 8,000 पौंड प्रतिवर्ष की आय पर डाइरेक्टर नियुक्त किया। तत्पश्चात् नाइजर कम्पनी एक अन्य निगम में मिला ली गई; अतः वादी की सेवाओं की आवश्यकता नहीं रह गई। अतः प्रतिवादी कम्पनी ने वादी की सेवाओं को समाप्त करने के लिए एक मुआवजा की संविदा की थी जिसके अन्तर्गत उसको नियत समय से पहले हटाने के लिए 30,000 पौंड देने का निश्चय किया।

बाद में यह धनराशि (30,000 पौंड) दे दी गई। यह धनराशि दे देने के पश्चात् कम्पनी को इस बात का पता चला कि वह बेल को बिना इस धनराशि के दिये हुए सेवा से मुक्त कर सकते थे, क्योंकि अपने सेवाकाल में बेल कई बार अपने कर्त्तव्य भंग का दोषो था। बेल ने अपनी सेवा में अपने नाम कुछ सट्टे के संव्यवहार कर रखे थे जिसके लिए उसे बिना किसी मुआवजा दिये सेवामुक्त किया जा सकता था।

अतः प्रतिवादी का यह तर्क था कि जब उसने बेल के साथ यह मुआवजा की संविदा की थी तब प्रतिवादी इन भूलों के प्रभाव में था कि उसे बिना मुआवजा दिये नहीं हटाया जा सकता; अतः संविदा शून्य घोषित की जानी चाहिये। कोर्ट आफ अपील ने प्रतिवादी के इस तर्क को मानते हुए यह निर्णय दिया था कि प्रारम्भ से ही संविदा शून्य थी, क्योंकि यदि प्रतिवादी को यह पता होता तो वह ऐसी संविदा कभी नहीं करता। इस आदेश के विरुद्ध बेल ने हाउस आफ लाईस में अपील प्रस्तुत की।

बेल बनाम लीवर्स ब्रदर्स लिमिटेड वाद का निर्णय –

साधारण बहुमत से हाउस आफ लाइंस ने कोर्ट आफ अपील के निर्णय को उलट दिया। तथा बेल के पक्ष में निर्णय दिया। लार्ड एटकिन (Lord Atkin) ने अपने निर्णय में कहा कि संविदा वैध थी तथा दोनों पक्षकारों पर बाध्य थी। उन्होंने अपने निर्णय को स्पष्ट करते हुए कहा कि किसी विशेष संविदा को समाप्त करने के लिए कोई करार इस आधार पर अवैध न होगा कि करार के बाद यह पता चला कि किसी दूसरे प्रकार से भी पहली संविदा को समाप्त किया जा सकता है।

मुक्ति पाने वाले पक्षकार को वास्तव में वही प्राप्त होता है जो वह चाहता है, अर्थात् कम्पनी बेल की सेवाओं को समाप्त करना चाहती थी और उसने इस नई संविदा द्वारा इस उद्देश्य को प्राप्त कर लिया। इस बात से कोई अन्तर नहीं पड़ता कि प्रतिवादी कम्पनी यही परिणाम किन्हों दूसरे ढंगों से प्राप्त कर सकती थी।

बेल बनाम लीवर्स ब्रदर्स लिमिटेड वाद का निष्कर्ष –

उपर्युक्त सिद्धान्त के आधार पर हाउस आफ लाइंस ने वादी के पक्ष में निर्णय देते हुए कहा कि वादी के साथ मुआवजा की संविदा वैध थी तथा दोनों पक्षकार उससे बाध्य थे।

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