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मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु भारत में राष्ट्रीय स्तर पर संस्थान | National level institute in India for the protection of human rights in hindi

मानव अधिकार

मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु भारत में राष्ट्रीय स्तर पर संस्थान

प्रस्तावना:-

भारत में मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु कई उपाय किए गए हैं। जैसे कि विधि में एक सिद्धांत है कि जहां अधिकार है वहां उपचार हैं, उसी को ध्यान में रखते हुए हमारे देश में ऐसे कई संस्थान हैं, जो मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं, जिसमें प्रथमत: हमारे देश का सर्वोच्च न्यायालय है जो कि मानव अधिकार के संरक्षण का एक परंपरागत संस्थान है, जिसने अपने अनेकों न्यायिक विनिश्चयों के माध्यम से मानव अधिकार को संरक्षित सदैव ही करवा रहा है ।

दूसरी हमारे देश में ऐसे अनेकों आयोगों की स्थापना की गई है जो मानव अधिकारों का संरक्षण का कार्य कर रहे हैं जैसे कि बाल आयोग, महिला आयोग इस के महत्वपूर्ण उदाहरण है। इनके अलावा भी राष्ट्रीय स्तर पर मानव अधिकार आयोग तथा संसद भी समय-समय पर मानव अधिकार संरक्षण हेतु विधि का निर्माण करती है। जो मानव अधिकार के संरक्षण हेतु कारगार साबित हुई है।

इनके अलावा भी कुछ गैर परंपरागत संस्थान है जो मानव अधिकार संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं।

मानव अधिकार संरक्षण में न्यायपालिका की भूमिका:-

मानव अधिकार संरक्षण में न्यायपालिका की भूमिका अग्रणी है जिसमें हमारे देश का सर्वोच्च न्यायालय सदैव ही मानव अधिकार के संरक्षक के रूप में सामने आया है।

सर्वोच्च न्यायालय में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत समादेश करने का अधिकार प्रत्याभूत किया गया है। जिसमें याचिकाओं के माध्यम से मानव अधिकार के हनन होने पर अनेकों विनिश्चयों मैं सर्वोच्च न्यायालय ने मानव अधिकार को संरक्षित करते हुए निर्णय पारित किए कुछ महत्वपूर्ण न्याय निर्णयन पर हम दृष्टिपात करते हैं जो इस प्रकार हैं-

केस :- विशाखा बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान (ए आई आर 1997) एस. सी.

यह मामला महिलाओं के कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संबंधित है। सर्वोच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि कामगार महिलाओं का यौन उत्पीड़न लैंगिक समता के अधिकार तथा प्राण एवं स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। इसकी तार्किक परणीति यह है, किसी व्यवसाय या पेशा करने के अधिकार का भी उल्लंघन है।

केस:-दिल्ली डोमेस्टिक वर्किंग विमेंस फोरम बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (ए. आई. आर. 1995) एस. सी.

इस मामले में दिल्ली श्रमजीवी महिलाओं के साथ 7 सेना के जवानों के द्वारा उत्पीड़न की घटना को न्यायालय में प्रस्तुत किया गया उक्त घटना तब घटी जब ये महिलाएं रांची से दिल्ली जा रही थी।

निर्णय:-सर्वोच्च न्यायालय के तीन न्यायमूर्तियों की खंडपीठ ने महिलाओं को प्रतिकर प्रदान करने तथा उनके पुनर्वास के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत विहित किए गए-

1. यौन शोषण शिकायतकर्ता को वकील के रूप में विहित सहायता दी जानी चाहिए;

2. पुलिस स्टेशन पर विधिक सहायता देना आवश्यक है;

3. पुलिस स्टेशन पर अधिवक्ताओं की सूची होनी चाहिए;

4.बलात्कार के सभी मामलों में पीड़ित व्यक्ति की पहचान का खुलासा ना किया जाए;

5.भारतीय संविधान के अनुच्छेद 38 (1)के नीति निर्देशक सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए आपराधिक क्षति प्रतिकर बोर्ड का गठन किया जाए।

केस :- सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन (ए आई आर 1982) एस सी.

यह मामला कैदियों के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार से संबंधित है।

निर्णय – सर्वोच्च न्यायालय में यह अभिनिर्धारित किया कि जेल में कैदियों को जिनके मामले परीक्षणाधीन है सिद्धदोष कैदियों के साथ रखना अनुच्छेद 19 व 21 का अतिक्रमण करता है। परीक्षणाधीन कैदी तब तक निर्दोष होते हैं जब तक उनका अपराध सिद्ध नहीं कर दिया जाता। उनके साथ अमानवीय व्यवहार करना मानव अधिकार का उल्लंघन है।

केस :- ए.डी.एम. जबलपुर बनाम शिवाकांत शुक्ला (ए आई आर 1976) एस.सी.1207

इस मामले में उच्चतम न्यायालय के समक्ष विचाराधीन एक प्रश्न था, की क्या मानव अधिकारों की सार्वजनिक घोषणा तथा दोनों मानव अधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदाये (1966) भारतीय आंतरिक विधि का भाग है।

उच्चतम न्यायालय ने बहुमत से निर्णय दिया कि वह भारत की आंतरिक विधि का भाग नहीं था, परंतु अपना विपरीत मत देते हुए न्यायमूर्ति खन्ना ने यह धारित किया की अंतरराष्ट्रीय संधि तथा भारत की आंतरिक विधि के मध्य कोई संघर्ष है तो भारतीय विधि ही मान्य होगी।

परंतु यदि समन्वय या सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है तो न्यायालय को ऐसा निर्वचन देना चाहिए, संवैधानिक उपबंधों का निर्वचन ऐसे किया जाना चाहिए कि जिससे संघर्ष से बचा जा सके।

इस मामले के समय तक भारत ने दोनों प्रसंविदाओं का अनुसमर्थन नहीं किया था, इसके बाद ही भारत ने दोनों प्रसंविदाओं का अनुसमर्थन 27 मार्च 1979 में किया।

केस:- मेनका गांधी बनाम भारत संघ (ए आई आर 1978) एस. सी.

इस मामले में पिटिशनर को पासपोर्ट एक्ट, 1967 के अधीन विदेश जाने के लिए पासपोर्ट दिया गया था। उसे अपना पासपोर्ट लौटाने का आदेश पासपोर्ट अथॉरिटी ने दिया।पिटीशनर ने पासपोर्ट वापस मांगे जाने के कारण पूछने पर सरकार ने लोकहित में देने से इनकार कर दिया तब याचिकाकर्ता ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 को एक नया आयाम दिया और इसके क्षेत्र को अत्यंत विस्तृत बना दिया। न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि “प्राण का अधिकार” केवल भौतिक अस्तित्व तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें मानव गरिमा को बनाए रखते हुए जीने का अधिकार है”।

केस:-  राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग बनाम अरुणाचल प्रदेश राज (ए आई आर 1996) एस.सी.

इसे “चकमा शरणार्थियों का मामला” भी कहते हैं।प्रस्तुत मामले में यह तथ्य था कि 1964 में भारी संख्या में चकमा शरणार्थी पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) से भारत आए असम मणिपुर में बस गए विगत 3 दशकों से यहां रह रहे थे|

इन्होंने भारत की नागरिकता पंजीयन हेतु आवेदन किया, राज्य सरकार ने इनका आवेदन केंद्र को नहीं भेजा एवं अरुणाचल प्रदेश के छात्र संघ ने इन्हें बलपूर्वक निष्कासित करने की धमकी दी। मानव अधिकार आयोग ने लोकहित वाद फाइल करके न्यायालय से इनकी सुरक्षा के लिए समुचित आदेश पारित करने की मांग की।

उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि राज्य का यह कर्तव्य है कि वह चकमा शरणार्थीओं के प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता की रक्षा का समुचित प्रबंध करे केंद्र सरकार समुचित सहायता करें। राज्य किसी व्यक्ति को यह अनुमति नहीं दे सकता कि वह चकमा शरणार्थीओं को धमकी देकर निष्कासित करे।

केस:- जोगिंदर सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (ए आई आर 1994) एस.सी.

इस मामले में पिटीशनर नवयुवक 28 वर्षीय अधिवक्ता था। उसे पुलिस ने बुलाया किसी काम का बोल कर और थाने में अवैध रूप से निरूध  कर दिया। अनुच्छेद 32 के तहत पिटीशनर को मुक्त करने के लिए उच्चतम न्यायालय में याचिका फाइल की गई।

उच्चतम न्यायालय ने जांच के दौरान एक व्यक्ति की गिरफ्तारी के संबंध में महत्वपूर्ण मार्गदर्शक सिद्धांत विहित किया ताकि व्यक्ति की अवैध गिरफ्तारी से रक्षा की जा सके। न्यायालय ने कहा किसी व्यक्ति को किसी अपराध के सहभागी होने का संदेह मानकर गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय पुलिस को इस बात से संतुष्ट होना आवश्यक है कि उसे गिरफ्तार करने का युक्तियुक्त औचित्य (कारण) है।

केस:- नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी बनाम भारत संघ (ए आई आर 2014)

(किन्नरों का मामला)

नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी ने किन्नरों के मानव अधिकारों का मामला उठाते हुए उच्चतम न्यायालय में अर्जी दायर की तथा कहा कि ट्रांसजेंडर को तीसरे जेंडरके रूप में मान्यता दी जाए साथ ही केन्द्र वह राज्य सरकारें किन्नरों के कल्याण के लिए सामाजिक योजनाएं चलाये पब्लिक अवेयरनेस कैपेंन भी, ताकि किन्नरों को सामाजिक मान सम्मान मिल सके।

निर्णय – 15 अप्रैल 2014 को उच्चतम न्यायालय ने निर्णय पारित करते हुए किन्नरों को तीसरे जेंडर के तौर पर मान्यता देते हुए कहा कि समाज को इनके प्रति सोच बदलने की जरूरत है। इनके मानवाधिकारों की रक्षा की जाए ताकि वह समाज में मान सम्मान पा सकते हैं सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान के तहत हर नागरिक को मानवाधिकार और मौलिक अधिकारों का संरक्षण दिया है। ट्रांसजेंडर को भी इससे वंचित नहीं किया जा सकता।

नेशनल लीगल अथॉरिटी की पहल पर सर्वोच्च न्यायालय ने तीसरे लिंग के हक का इतना बड़ा फैसला लिया।

जब तक सांस तब तक अधिकार –

उच्चतम न्यायालय ने कहा मानव अधिकार की रक्षा होनी चाहिए चाहे वह फांसी की सजा पाया मुजरिम ही क्यों ना हो जब तक सांस है तब तक मानवाधिकार सुरक्षित हैं।

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने फांसी की सजा प्राप्त मुजरिमों की सजा को उम्र कैद में तब्दील कर दिया। माननीय न्यायालय ने मुजरिमों की याचिका स्वीकार की जिसमें उन्होंने फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने का गुहार की थी। क्योंकि कई मुजरिमों की दया याचिका राष्ट्रपति के पास 5 से 12 साल तक लंबित थी। उच्चतम न्यायालय ने इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन माना तथा मुजरिमों की याचिका स्वीकार की कहा जब तक जिंदगी है तब तक हर इंसान का मानवाधिकार सुरक्षित है।

मानव अधिकारों के संरक्षण में राष्ट्रीय आयोग की भूमिका –

मानवाधिकार के संरक्षण और संवर्धन का जो आंदोलन विश्व स्तर पर चल रहा था उसको मजबूत कड़ी के रूप में भारत के संविधान में मूल अधिकारों और आर्थिक तथा सामाजिक अधिकारों का समावेश किया गया था किंतु मानव अधिकारों के हनन की घटनाएं लगातार घटित हो रही थी जो चिंता का विषय बनी हुई थी, आत: मानवाधिकारों के  बेहतर संरक्षण के लिए भारत ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भारत की संसद ने 1993 में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम ,1993 पारित किया।

मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम,1993 का उद्देश्य

  • मानव अधिकारों के अधिक अच्छे संरक्षण के लिए तथा उससे संबंधित मामलों के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तथा राज्य मानवाधिकार आयोग हेतु प्रदान करने के लिए;
  • मानवाधिकार न्यायालयों के गठन करने हेतु प्रावधान के लिए।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का न्यायालय दिल्ली में है। आयोग के प्रथम अध्यक्ष न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा थे।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन-

धारा 3 मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम ,1993 के अनुसार,

  • गठन भारत सरकार करेगी।
  • इस अधिनियम में समनुदिष्ट कार्यों को करने के लिए आयोग का गठन किया जाएगा।
  • आयोग का गठन एक अध्यक्ष और 8 सदस्यों से मिलकर होगा।
  • अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति होगा जो भारत का मुख्य न्यायमूर्ति या  उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रहा हो।
  • एक सदस्य जो उच्चतम  न्यायालय का न्यायाधीश हो या रह चुका हो।
  • एक सदस्य जो किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश हो या रह चुका हो।
  • तीन  सदस्य,  जिनमे से कम से कम एक महिला सदस्य होगी ,ऐसे व्यक्ति होंगे जिन्हें मानव अधिकारों से संबंधित मामलों का ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव हो।

अन्य सदस्य

  • पिछड़ावर्ग के राष्ट्रीय अयोग का अध्यक्ष|
  • बालको  के राष्ट्रीय आयोग का अध्यक्ष|
  • अल्पसंख्यकों के राष्ट्रीय आयोग का अध्यक्ष।
  • महिलाओं के राष्ट्रीय आयोग का अध्यक्ष।
  • अनुसूचित जाति ,अनुसूचित जनजाति के लिए आयोग के अध्यक्ष।
  • दिव्यांगजनों के लिए मुख्य आयुक्त|
  • आयोग में एक महासचिव होगा जो आयोग का मुख्य कार्यपालिक अधिकारी होगा।

केस:- पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम भारतीय संघ तथा अन्य

इस बाद में सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी की राष्ट्रीय मानव अधिकार के सदस्य के रूप में नियुक्ति को चुनौती इस आधार पर की गई थी  कि भारत में पुलिस मानव अधिकारों के सबसे अधिक उल्लंघन करने वाले हैं न्यायालय ने इस तर्क को भी अस्वीकार कर दिया तथा कहा कि पुलिस के बारे में यह सामान्य बोध है। यदि लोक अप्रसन्नता को मानक बनाया जाए तो कानूनी पद खाली ही रहेंगे।

सदस्यों की पदावधी – मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्य पद ग्रहण करने से 3 वर्ष या 70 वर्ष की आयु जो भी पूर्व हो अपने पद पर रह सकते हैं।

आयोग के कार्य –

धारा 12 मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993-

  • निम्नलिखित से संबंधित पीड़ित व्यक्ति अथवा अन्य किसी व्यक्ति की शिकायत किए जाने पर स्वप्रेरणा से जांच करना-  (क) मानव अधिकारों का उल्लंघन अथवा दुष्प्रेरण।

(ख) ऐसे उल्लंघन के निवारण।

  • मानव अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित किसी न्यायालय में लंबित किसी मामले में न्यायालय की अनुमति से हस्तक्षेप करना।
  • राज्य सरकार को सूचित करते हुए चिकित्सा सुधार अथवा व्यक्तियों के जीवन दशा का अध्ययन करना।
  • संविधान विधि में मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए प्रावधान तथा उपायों की समीक्षा करना तथा उनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सुझाव देना।
  • मानव अधिकारों का उल्लंघन करने वाले कार्यों की समीक्षा करना तथा उपचार के सुझाव देना।
  • मानव अधिकार के क्षेत्र में शोध करना और कार्यों को प्रोत्साहित करना।
  • मानव अधिकारों के क्षेत्र में कार्यरत जैसी सरकारी संगठनों को प्रोत्साहित करना।

जांच से संबंधित शक्तियां – 

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 13 के अनुसार, आयोग के पास शिकायतों की जांच करने के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के तहत सिविल न्यायालय की शक्तियां प्राप्त हैं।

बाल अधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग :

बाल अधिकार आयोग का उद्देश्य:- 

बाल अधिकार की रक्षा के लिए आयोग अधिनियम,2005 का उद्देश्य बाल अधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय बाल आयोग एवं बाल न्यायालयों के लिए प्रावधान करना ताकि बालकों के विरुद्ध किए गए अपराधों के या उनके अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में शीघ्र बिचारण की व्यवस्था की जाए।

बाल अधिकार आयोग का गठन-

अधिनियम की धारा 3 के अनुसार,

  1. आयोग कुल 7 सदस्यों से मिलकर बनेगा।
  2. जिसमें एक अध्यक्ष तथा 6 सदस्य होंगे।
  3. 6 सदस्यों में से 2 महिला सदस्य होनी चाहिए।
  4. सदस्य बाल कल्याण से जुड़े क्षेत्रों से आते हैं, जैसे- बाल स्वास्थ्य, देखभाल, किशोर न्याय बाल श्रम समापन, मनोविज्ञान या समाजशास्त्र एवं बाल संबंधी विधियां।

बाल अधिकार आयोग के कार्य –

धारा 13 के अनुसार,

  1. बाल अधिकारों के उल्लंघन की जांच करना और उसके लिए कार्यवाही प्रारंभ करने के लिए संस्तुति करना।
  2. बाल अधिकारों के क्षेत्र में समाज के विभिन्न वर्गों में अधिकारों के बारे में साक्षरता को बढ़ावा देना।
  3. उन सभी कारको का परीक्षण करना जो बच्चों के अधिकारों के उपयोग को रोकते हैं।
  4. बाल अधिकारों के क्षेत्र में शोध करना और संवर्धन करना।
  5. कोई अन्य कार्य जो बाल अधिकारों के संवर्धन के लिए आवश्यक माना जाए।

केस:- एम. सी. मेहता बनाम तमिलनाडु राज्य (ए आई आर 1984) एस. सी.

इस मामले में विचाराधीन प्रश्न ज्वलनशील एवं विस्फोटक पदार्थों के कारखानों में लगे बाल श्रम से था।

उच्चतम न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 24 के उपबंधों के अनुसार उपरोक्त कारखानों में निर्माण प्रक्रिया में बाल श्रम प्रतिबंधित है बच्चों को परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जा सकता।

केस:- उन्नीकृष्णन बनाम स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश (ए आई आर 1993) एस. सी.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अभिनिर्धारित किया कि  14 वर्ष की आयु के बालक को निशुल्क शिक्षा का अधिकार मूल अधिकार है।

महिलाओं के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम ,1990

महिला आयोग का गठन :-

  1. अध्यक्ष तथा पांच अन्य सदस्य होंगे।
  2. इनका नामांकन केंद्र सरकार करेगी।
  3. एक सदस्य अनुसूचित जाति या जनजाति का होगा।
  4. अध्यक्ष व सदस्यों का कार्यकाल वही होगा जो केंद्र सरकार निर्धारित करें परंतु 5 वर्ष से अधिक नहीं होगा।
  5. विशेष मामलों से निपटने हेतु समितियों को नियुक्त कर सकते हैं।

महिला आयोग के कार्य:-

  1. संविधान तथा अन्य विधियों में महिलाओं के लिए सुरक्षा से संबंधित सभी मामलों की खोजबीन एवं जांच करना।
  2. स्वयं शिकायतें देखना-

(क) महिलाओं के अधिकारों से वंचित किया जाना,

(ख) महिलाओं के संरक्षण के लिए बनाई गई विधियों का क्रियान्वयन न होना तथा समानता एवं विकास के उद्देश्य की प्राप्ति;

(ग) महिलाओं के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए तथा महिलाओं को अनुतोष प्रदान करने के उद्देश्य से संबंधित नीति निर्णय जैसे मामलों को उपयुक्त प्राधिकारीओं                       के  पास ले जाना।

  1. संघ तथा राज्य की महिलाओं के विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना ।

मानव अधिकारों के संरक्षण में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका-

मानवाधिकारों के संरक्षण और संवर्धन में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका बहुत अहम है, बे भारतवर्ष में मानवाधिकार के क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रहे हैं और उनके द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका को मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम ,1993 में स्वीकार किया गया है। तभी अधिनियम की धारा 12(1) में मानवाधिकार के क्षेत्र में कार्यरत गैर सरकारी संगठनों और संस्थाओं के प्रयासों को प्रोत्साहित करने का कार्य मानवाधिकार आयोग को सौंपा गया है।

कुछ गैर सरकारी संगठन जिन्होंने मानवाधिकार के संरक्षण के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किए हैं उनके बारे में विवरण इस प्रकार है –

महिलाओ के संरक्षण हेतु गैर सरकारी संगठन:-

1. विशाखा – आज से करीब 26 साल पहले 1992 में राजस्थान के निकट भटेरी गांव की एक महिला भंवरी देवी ने बाल विवाह विरोधी अभियान में हिस्सेदारी ली , जिसकी बहुत बड़ी कीमत उन्होंने चुकाई। इस मामले में विशाखा और अन्य महिलाओं के संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी और कामकाजी महिलाओं के हितों के लिए कानूनी प्रावधान बनाने की अपील की गई थी। (विशाखा बनाम राजस्थान राज्य)

इस याचिका में उच्चतम न्यायालय ने कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा के लिए दिशा निर्देश जारी किए थे। विशाखा गाइडलाइंस जारी होने के बाद केंद्र सरकार ने अप्रैल 2013 में सेक्सुअल हरासमेंट ऑफ वुमन एट वर्कप्लेस एक्ट को मंजूरी दी थी।

इस प्रकार यह संस्था महिलाओं के प्रति हो रही यौन हिंसा से उनके संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

2. अनहाइड फॉर चेंज -स्थापना – पूर्वी तनवानी

स्थित -कोलकाता

कार्य – स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने और सरकारी स्कूलों में मासिक धर्म, स्वच्छता और शौचालय सुविधा, लिंग आधारित हिंसा आदि मुद्दों को लेकर महिलाओं के मानवाधिकार को संरक्षण करती हैं।

3. द कलेक्टिव इंपैक्ट पार्टनरशिप –  5 वैश्विक संगठनों द्वारा यह सामूहिक प्रयास महिला नेताओं को जमीनी स्तर पर सशक्त बनाता है।

पब्लिक हेल्थ इंस्टीट्यूट, ग्लोबल फंड फॉर वुमन और वर्ल्ड प्लस में एक प्रयास महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु महाराष्ट्र में महिला संगठनों में विभिन्न नेताओं के साथ काम कर रही है।

मुख्य कार्य –

  • कृषि में महिलाओं द्वारा संपत्ति का स्वामित्व बढ़ाना।
  • महिला श्रमिकों के लिए श्रमिक अधिकारों में अंतराल को संबोधित करना।
  • यौन संबंधों की रोकथाम की नीतियों का क्रियान्वयन।

जामीनी स्तर पर सशक्तिकरण का एक उदाहरण-कोल्हापुर गैर सरकारी संगठन की सदस्य अनुराधा भोंसले से आता है, जो कचरा बीनने के काम में महिलाओं की मान्यता और सम्मान बढ़ाने का प्रयास करती है।

बाल अधिकारों के संरक्षण हेतु गैर सरकारी संगठन:-

  1. बंधुआ मुक्ति मोर्चा – इस संगठन की स्थापना 1981 में Swami Agnivesh द्वारा की गई थी। इस संगठन ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे जबरन श्रम (बंधुआ मजदूरी) तथा बाल श्रम की रोकथाम के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है।

केस :-बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाम भारत संघ (ए आई आर 1984)

इस मामले में अभिनिर्धारित किया गया कि जब न्यायालय में लोकहित वाद के माध्यम से यह आरोप लगाया जाता है कि किसी स्थान पर बंधुआ मजदूर है तो राज्य को इसका स्वागत करना चाहिए क्योंकि इससे सरकार को यह जांच करने का कि क्या श्रमिकों से बलात श्रम लिया जा रहा है, साथ-साथ उसे कैसे समाप्त किया जाए यह अवसर मिलता है। इसके परिणाम स्वरूप संसद में बंधुआ मजदूर प्रणाली उन्मूलन अधिनियम 1976 पारित किया है।

  1. स्माइल फाउंडेशन – यह दिल्ली में स्थित है। यह संगठन देश में छोटे बच्चों को शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में सुधार के क्षेत्र में एक और प्रमुख नाम बनकर उभरा है।

यह 2002 में स्थापित संगठन, पहले से ही विशेष कार्यक्रम चला रहा है, जिसने पूरे भारत में 3 लाख से अधिक बच्चों को लाभान्वित किया है जिसमें बाल श्रम शामिल है।

पर्यावरण के संरक्षण हेतु गैर सरकारी संगठन:-

  1. राष्ट्रीय बौद्धिक मंच- यह गैर सरकारी संगठन पर्यावरण के संरक्षण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

केस :-इंटेलेक्चुअल फोरम तिरुपति बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (एआईआर 2006) एस.सी.

इस मामले में राष्ट्रीय बौद्धिक मंच में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका के द्वारा तिरुपति के 2 ऐतिहासिक महत्व के तालाबों की भूमि को सरकार द्वारा राज्य हाउसिंग बोर्ड को भवन निर्माण के लिए देने के आदेश को रद्द करने का निवेदन किया।

परंतु हाई कोर्ट ने याचिका को निरस्त कर दिया इसके बाद एन.जी.ओ. ने उच्चतम न्यायालय में अपील की, सुप्रीम कोर्ट ने अभिनिर्धारित किया कि उपयुक्त तालाब उस क्षेत्र के पर्यावरण को बनाए रखने व जल आपूर्ति हेतु महत्वपूर्ण है, न्यायालय ने कहा तालाब का संरक्षण व संवर्धन करना सरकार का अनुच्छेद 21, 48(A)तथा 51(A) के अंतर्गत संवैधानिक कर्तव्य है।

मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु अन्य उपाय:-

मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु सरकार द्वारा बहुत से नए विधान बनाए गए हैं जो मानव अधिकारों को बेहतर एवं प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन का काम कर रहे हैं।

  • अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम ,1989
  • नागरिक अधिकारों का संरक्षण अधिनियम ,1955
  • अयोग्यताओ साहित् व्यक्तियों का अधिनियम ,1995

निष्कर्ष:-

मानव अधिकारों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु कार्यरत विभिन्न संस्थानों, न्यायपालिका द्वारा उठाए गए कदम तथा उच्चतम न्यायालय के विनिश्चयो द्वारा बनाए गए विधानों का विवरण देखने से स्पष्ट होता है कि किस प्रकार यह हमारे समूचे देश में मानव अधिकारों की रक्षा कर रहे है|

संदर्भ:-

  • भारतीय संविधान – जे.एन. पांडे
  • भारतीय संविधान – टी.पी. त्रिपाठी
  • मानव अधिकार अधिनियम(Bare Act)
  • Human rights in India- wikipedia