मानहानि की परिभाषा क्या है?
केस:-डिक्सन बनाम होल्डेन (1869)
किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को क्षति कारित करना मानहानि है। यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को प्रतिष्ठा को क्षतिग्रस्त करता है, तो ऐसा वह स्वयं अपने जोखिम पर करता है। किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा उसको सम्पत्ति है, और वह अन्य सम्पत्ति की अपेक्षा अधिक मूल्यवान हो सकती है।
विनफील्ड के अनुसार: “मानहानि किसी व्यक्ति के बारे में ऐसे कथन को कहते हैं जिससे वह व्यक्ति समाज के विवेकशील व्यक्तियों की नजरों से गिर जाए और लोग उसकी उपेक्षा करने लगे।”
सामण्ड के अनुसार: “मानहानि के अपकृत्य में किसी व्यक्ति के संबंध में बिना किसी औचित्य के मिथ्या एवं मानहानिकारक कथन का प्रकाशन होता है।
केस:- कैसोडी बनाम डेली मिरर न्यूज पेपर्स लिमिटेड, (1929) 2 के. बी. 331
इस मामले में अभिनिर्धारित किया गया कि मानहानि के लिये आशय आवश्यक नहीं है।
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि किसी व्यक्ति द्वारा ऐसे कथन का प्रकाशन जिससे अन्य व्यक्ति की प्रतिष्ठा गिरती है और जिसका कोई औचित्य न हो, मानहानि कहा जाता है।
मानहानि के आवश्यक तत्व क्या है ?(Essential Elements of Defamation ) :
मानहानि के आवश्यक तत्व निम्नलिखित हैं:
(1) कथन मानहानिकारक हो (The statement should be defamatory);
(2) कथन को वादी के प्रति निर्दिष्ट होना चाहिये (The statement should refer to the plaintiff);
(3) ऐसे कथन को प्रकाशित होना चाहिये (The statement should be published)।
(1) कथन मानहानिकारक हो (The statement should be defamatory) –
केस:- एस० एन० एम० आब्दी बनाम प्रफुल्ल कुमार महन्ता, AIR 2002
के वाद में यह निर्णय दिया गया कि यह आवश्यक नहीं है कि आरोप पूर्ण वक्तव्य वादी को समाज के प्रत्येक व्यक्ति अथवा उससे परिचित प्रत्येक व्यक्ति की नजर से गिरा दे। मानहानि के लिये इतना काफी है कि प्रकाशन किया गया कथन वादी को समाज के पर्याप्त प्रतिष्ठित वर्ग के आंकलन में नीचा दिखाए, चाहे वह वर्ग पूरे समाज की तुलना में कम संख्या में हो।
उक्त वाद में 8-9-1990 के Illustrated weekly of India के अंक में एक लेख छापा गया जिसमें असम के पद से हटाए गये deposed) मुख्यमंत्री, प्रफुल्ल कुमार महन्ता, अनुचित बल प्रयोग के आरोप लगाये गये थे।
इस लेख को मानहानि जनक ठहराया गया तथा वादी को 5 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान किया गया।
केस:- साउथ इण्डिया रेलवे कम्पनी बनाम रामकृष्ण (1890)
के वाद में एक रेलवे गार्ड ने जो वाद इण्डियन रेलवे कम्पनी का एक कर्मचारी था, रेल के एक डिब्बे में टिकट की जाँच करने के लिये प्रवेश किया और वादी को टिकट दिखलाने के लिये बुला रहा था, तब उसने अन्य यात्रियों की उपस्थिति में उससे यह भी कहा, मुझे सन्देह है कि तुम एक गलत टिकट के साथ यात्रा कर रहे हो। वादी ने अपना टिकट प्रस्तुत कर दिया, जो एक सही टिकट था वादी ने इसके बाद रेलवे कम्पनी के प्रतिकूल यह तर्क लगाते हुये दावा कर दिया कि रेलवे गार्ड ने अन्य यात्रियों के समक्ष उसके विपरीत जिन शब्दों का उच्चारण किया था, उससे उसकी मानहानि हुई है।
यह धारित किया गया कि रेलवे गार्ड ने जिन शब्दों का उच्चारण किया था, वे सद्भावना (Bonafide) पर आधारित थे। मामले की परिस्थितियों के अन्तर्गत वादी की मानहानि नहीं हुई है, और रेलवे कम्पनी को उसके लिये उत्तरदायी नहीं बनाया जा सकता।
(2) कथन को वादी के प्रति निर्दिष्ट होना चाहिये (The statement should refer to the plaintiff
केस :- न्यूस्टेड बनाम लन्दन एक्सप्रेस न्यूजपेपर लिमिटेड (1939)
इस वाद में प्रतिवादीगण ने इस अभिकथन से युक्त एक लेख प्रकाशित किया था कि हैरोल्ड न्यूस्टेड, केम्बरवेल निवासी को द्विविवाह के लिये दोषसिद्ध किया गया था। यह कहानी हैरोल्ड न्यूस्टेड जो मत वितरक था, के सन्दर्भ में सच्ची थी। एक अन्य हैरोल्ड न्यूस्टेड द्वारा जो केम्पवेल का एक हज्जाम था, इस लेख के प्रकाश के विपरीत मानहानि की कार्यवाही की गई। प्रकाशित लेख में प्रस्तुत किये गये शब्द चूंकि यह अर्थ ध्वनित करते थे कि वादी को निर्दिष्ट किये गये हैं, अतः प्रतिवादीगण को उत्तरदायी माना गया।
केस :- धीरेन्द्र नाथ सेन बनाम रजत क्रान्ति भद्र AIR 1970
इस वाद में यह धारित किया गया है कि जब किसी समाचार-पत्र का सम्पादकीय लेख किसी समुदाय के आध्यात्मिक गुरु के प्रति मानहानिकारक होता है, तो उस समुदाय के किसी एक व्यक्ति को कार्यवाही का अधिकार नहीं प्राप्त हो सकता।
(3) ऐसे कथन को प्रकाशित होना चाहिये (The statement should be published)–
केस:- अरुमुगा मुदालियर बनाम अन्नामलाई मुदालियर (1966)
इस वाद में मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा यह धारित किया गया कि जब दो व्यक्ति वादी से सम्बन्धित मानहानिकारक विषय-वस्तु से युक्त पत्र संयुक्ततः लिखते हैं और उस पत्र को पंजीकृत डाक द्वारा वादी को भेज दिया जाता है तो वहाँ यह नहीं माना जायेगा कि मानहानिकारक विषय वस्तु को एक अपकृत्यकारी द्वारा दूसरे अपकृत्यकारी को प्रकाशित किया गया है,
क्योंकि संयुक्त अपकृत्य के बीच न तो प्रकाशन का होना स्वीकार किया जा सकता है और यदि इसकी पूर्व कल्पना नहीं की जा सकती तो यह भी स्वीकार नहीं किया जा सकता कि यदि वादी को प्रेषित पंजीकृत पत्र किसी अन्य व्यक्ति के हाथों में पड़ जाता है और वह व्यक्ति उस पत्र को अन्य व्यक्तियों की उपस्थिति में पढ़ता है तो यह पत्र को प्रकाशित करना है।
मानहानि के वाद के लिए बचाव क्या है ?:
(1) सम्मति ।
(2) औचित्यपूर्ण या सत्य ।
(3) न्यायपूर्ण टीका- टिप्पणी।
(4) विशेषाधिकार।
मानहानि के उपचार क्या है ? :
मानहानि के मुख्यतः दो उपचार हैं :-
(1) क्षतिपूर्ति प्राप्त करना।
(2) मानहानिजनक प्रकाशन को रोकने के लिए व्यादेश प्राप्त करना।
केवल वही व्यक्ति मानहानि का वाद ला सकता है जिसकी मानहानि की गई है। कोई अन्य व्यक्ति जो घटनावश या आनुषंगिक रूप से प्रभावित हुआ हो उसे ऐसा अधिकार नहीं है। मानहानि का अपकृत्य केवल जीवित व्यक्ति के बारे में हो सकता है।
मानहानि के प्रकार ( Kinds of Defamation) :
इंग्लिश विधि के अनुसार मानहानि दो प्रकार होती है :-
(1) अपमान लेख या अपलेख(Libel।
(2) अपमान वचन या अपवचन (Slander) |
(1) अपमान लेख या अपलेख (Libel) :
मानहानिकारक कथन का किसी स्थायी या दिखायी देने वाले रूप में प्रकाशन अपमान लेख कहा जाता है। जैसे लेखन, मुद्रण, चित्रांकन, कार्टून बनाना आदि। हम कह सकते है इसका संबोधन आँखों को किया जाता है। यह एक स्वतः अनुयोज्य (actionable per se) अपकृत्य होता है वादी को हुई कोई क्षति सिद्ध करना आवश्यक नहीं है।
अपमानलेख के लिये आवश्यक है कि कथन मिथ्या हो। प्रतिवादी पर कथन की सत्यता को सिद्ध करने का भार होता है।
(2) अपमान वचन या अपवचन ( Slander) :
किसी व्यक्ति के प्रति मानहानिकारक वचन का प्रयोग ध्वनि या संकेत द्वारा किया जाए तो वह अपमान वचन कहा जाता है। इसका स्वरूप अल्पकालिक होता है। जैसे बोले गये शब्द, संकेत, मुखमुद्रा, भावभंगिमा आदि से अपमान करना। साधारणतया अपमान वचन में संबोधन कानों को किया जाता है। यह एक स्वतः अनुयोज्य अपकृत्य नहीं है अतः इसमें प्रतिवादी के विरुद्ध वाद चलाने के लिये वादी को हुई विशेष क्षति को सिद्ध करना आवश्यक है।
अपमान वचन कब स्वयं अपने आप में कार्यवाही के योग्य है :
निम्नलिखित मामलों में अपमान वचन स्वयं अपने आप में कार्यवाही के योग्य है और कोई क्षति सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है :-
(1) दाण्डिक अपराध का आरोप लगाया जाना ।
(2) किसी छूत की बीमारी या संक्रामक रोग होने का आरोप लगाना जिससे लोग उसके पास आने से परहेज करें।
(3) धारित पद के लिये अयोग्य, अक्षम या बेईमान होने का आरोप लगाना।
(4) स्त्री पर असतित्व या जारकर्म का आरोप लगाना ।
भारत में मानहानि से संबंधित प्रावधान क्या है :-
भारत में अपमान लेख और अपमान वचन में कोई अन्तर नहीं किया जाता है।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 499 के अंतर्गत अपमान लेख और अपमान वचन दोनों ही दाण्डिक अपराध है।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 499 के अनुसार जो कोई बोले गए या पढ़े जाने के लिए आशयित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्य रूपणों द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि की जाए, या यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि होगी, निम्नलिखित अपवादित दशाओं के सिवाय उसके बारे में कहा जाता है कि वह उस व्यक्ति की मानहानि करता है :-
(1) सत्य बात का लांछन जिसका लगाया जाना या प्रकाशित किया जाना लोक कल्याण के लिए अपेक्षित है।
(2) लोक-सेवकों का लोकाचरण ।
(3) किसी लोक प्रश्न के संबंध में किसी व्यक्ति का आचरण ।
(4) न्यायालयों की कार्यवाहियों की रिपोर्टों का प्रकाशन
(5) न्यायालय में विनिश्चित मामले के गुणागुण या साक्षियों तथा संपृक्त अन्य व्यक्तियों का आचरण ।
(6) लोक कृति के गुणागुण ।
(7) किसी अन्य व्यक्ति के ऊपर विधिपूर्ण प्राधिकार रखने वाले व्यक्ति द्वारा सद्भावपूर्वक की गई परिनिन्दा
(8) प्राधिकृत व्यक्ति के समक्ष सद्भावपूर्वक अभियोग लगाना।
(9) अपने या अन्य के हितों की संरक्षा के लिए किसी व्यक्ति द्वारा सद्भावपूर्वक लगाया गया लांछन ।
(10) सावधानी, जो उस व्यक्ति की भलाई के लिए, जिसे कि वह दी गई है या लोक कल्याण के लिए आशयित है।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 499 में निम्नानुसार स्पष्टीकरण भी दिये गये हैं:-
(1) किसी मृत व्यक्ति को कोई लांछन लगाना मानहानि की कोटि में आ सकेगा यदि वह लांछन उस व्यक्ति की ख्याति की, यदि वह जीवित होता, अपहानि करता, और उसके परिवार या अन्य निकट संबंधियों की भावनाओं को उपहत करने के लिए आशयित हो।
(2) किसी कंपनी या संगम या व्यक्तियों के समूह के संबंध में उसकी वैसी हैसियत में कोई लांछन लगाना मानहानि की कोटि में आ सकेगा।
(3) अनुकल्प के रूप में, या व्यंगोक्ति के रूप में अभिव्यक्त लांछन मानहानि की कोटि में आ सकेगा।
(4) कोई लांछन किसी व्यक्ति की ख्याति की अपहानि करने वाला नहीं कहा जाता जब तक कि वह लांछन दूसरों की दृष्टि में प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उस व्यक्ति के सदाचारिक या बौद्धिक स्वरूप को हेय न करे या उस व्यक्ति की जाति के या उसकी आजीविका के संबंध में उसके शील को हेय न करे या उस व्यक्ति की साख को नीचे न गिराए या यह विश्वास न कराए कि उस व्यक्ति का शरीर घृणोत्पादक दशा में है या ऐसी दशा में है जो साधारण रूप से निकृष्ट समझी जाती है।
वक्रोक्ति (Innuendo)
कभी-कभी बातचीत में कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिनका साधारण अर्थ तो कुछ और होता है किन्तु व्यंग्यात्मक अर्थ कुछ और। ऐसे शब्दों को वक्रोक्ति कहा जाता है। साधारण भाषा में हम द्विअर्थी शब्दों को वक्रोक्ति कह सकते हैं। वक्रोक्ति में शब्द तो अपमानजनक नहीं होते किन्तु उनसे जो अर्थ निकलता है वह अपमानजनक होता है।
मानहानि FAQ
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मानहानि क्या है ?
किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को क्षति कारित करना जिससे वह व्यक्ति समाज के विवेकशील व्यक्तियों की नजरों से गिर जाए और लोग उसकी उपेक्षा करने लगे मानहानि है।
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विनफील्ड ने मानहानि की क्या परिभाषा दी है ?
विनफील्ड के अनुसार: “मानहानि किसी व्यक्ति के बारे में ऐसे कथन को कहते हैं जिससे वह व्यक्ति समाज के विवेकशील व्यक्तियों की नजरों से गिर जाए और लोग उसकी उपेक्षा करने लगे।”
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मानहानि के आवश्यक तत्व क्या है ?
(1) कथन मानहानिकारक हो (The statement should be defamatory);
(2) कथन को वादी के प्रति निर्दिष्ट होना चाहिये (The statement should refer to the plaintiff);
(3) ऐसे कथन को प्रकाशित होना चाहिये (The statement should be published)। -
मनहानि के वाद के लिए बचाव क्या है ?:
(1) सम्मति ।
(2) औचित्यपूर्ण या सत्य ।
(3) न्यायपूर्ण टीका- टिप्पणी।
(4) विशेषाधिकार। -
आईपीसी की किस धारा में मानहानि दी गरी है ?
आईपीसी धारा 499 में
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अपमान लेख (Libel) क्या है ?
मानहानिकारक कथन का किसी स्थायी या दिखायी देने वाले रूप में प्रकाशन अपमान लेख कहा जाता है। जैसे लेखन, मुद्रण, चित्रांकन, कार्टून बनाना आदि।
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अपमान वचन ( Slander) क्या है ?
किसी व्यक्ति के प्रति मानहानिकारक वचन का प्रयोग ध्वनि या संकेत द्वारा किया जाए तो वह अपमान वचन कहा जाता है। इसका स्वरूप अल्पकालिक होता है। जैसे बोले गये शब्द, संकेत, मुखमुद्रा, भावभंगिमा आदि से अपमान करना।
संदर्भ-
- अपकृत्य विधि-आर.के. बंगिया
- अपकृत्य विधि- जयनारायण पाण्डेय
- अपकृत्य विधि- एम एन शुक्ला
- अपकृत्य विधि -भीमसेन खेत्रपाल
- अपकृत्य विधि- MCQ BOOK