हड़ताल (Strike)-प्रगति के पथ पर अग्रसर देश के लिए विकासमान औधौगिक स्थानों का बड़ा ही आर्थिक एवं सामाजिक महत्व है| यह अत्युक्ति नहीं होगी कि उद्योग ही राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की आधारशिला है हड़ताल तथा तालाबंदी के दौरान भी नियोजक – नियोजनी का संबंध बना रहता है ।
लुडविग टेलर ने कहा है – The employment relation is deemed to continue although in a state of belligerent.
पैटरसन ने कहा है – “ हड़ताले उपलब्ध औद्योगिक दशाओं के विरुद्ध पूर्व निश्चित एवं संगठित समर्थन है यह औद्योगिक अशांति के उसी प्रकार के प्रतीक है , जैसे शारीरिक विकार के रूप में फोड़े । “
औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 2 (q) में हड़ताल को परिभाषित किया गया है –
हड़ताल का मतलब कर्मकारों के समूह द्वारा एक दूसरे के मेल से इस उद्देश्य से काम बंद कर देने से कि नियोजक पर इस बात का दबाव पड़ सके कि उनकी मांगों को स्वीकार कर ले ।
केस :- श्री रामचंद्र स्पिनिंग मिल्स बनाम मद्रास राज्य (AIR 1956 मद्रास24)
हड़ताल श्रमिकों के हाथ में मांगे स्वीकार कराने का अस्त्र हैं और तालाबंदी नियोजक का अस्त्र है।
वेवस्टर डिक्शनरी – “अपने नियोजक से अपनी मांगो के पालन के लिए साधन के रूप में कर्मकारों द्वारा एक समझदारी की तरह काम को छोड़ देना हड़ताल है । “
एंडरसन लॉ डिक्शनरी – ” दूसरों द्वारा नियुक्त श्रमिक एक मत से मजदूरी में वृद्धि करने , श्रम के घंटो में कमी , मालिक के कारोबार के संचालन के ढंग में परिवर्तन या अन्य नीति को लागू करने के लिए नियोजक को बाध्य करने हेतु काम बंद करना हड़ताल है। “
हड़ताल के आवश्यक तत्व –
- एक उद्योग या कई उद्योग
- एक नियोजक या कई नियोजक
- ऐसे उद्योग या उद्योगों में कार्य करने वाले कर्मकार
- कर्मकारों के एक समूह द्वारा काम बंद करना या रोकना , काम बंद करने की अवधि महत्वपूर्ण नही होती ।
- कर्मकार आपस में मेल के आधार पर कार्य कर रहे हो जिसका उद्देश्य अपनी मांग को किसी औद्योगिक विवाद के बीच नियोजक द्वारा मनवा लेने का हो।
श्रमिक वर्ग का मिलकर ऐसा करना आवश्यक है । उद्योग के सभी श्रमिकों का सामूहिक रूप से हड़ताल पर होना और काम बंद कर देना के हड़ताल लिए अनिवार्य नहीं है । किसी विभाग या विभाग के कुछ कर्मकार भी यदि समन्वित होकर काम करने से इंकार करते है तो उसे हड़ताल माना जायेगा।
केस :- नार्थवुक जूट क. बनाम उसके कर्मकार(1960 )
ऐसे काम को इंकार करना हड़ताल नहीं होगा , जिसे करने के लिए कर्मकार बाध्य नहीं है ।
केस :- रामस्वरूप बनाम रेक्स(AIR 1949 )allahabad 218
समन्वित इंकार या कॉमन अंडरस्टैंडिंग से कार्य बंद करना हड़ताल के लिए आवश्यक है ।
हड़ताल के विभिन्न स्वरूप –
- सामान्य हड़ताल
- टूल्स डाउन स्ट्राइक या पेन डाउन स्ट्राइक – जब कर्मकार अपने काम पर तो उपस्थित होते है किंतु वस्तुत: काम नही करते । कर्मकारों का यह कार्य अतिचार का अपराध कहा जायेगा ।
- धीरे -धीरे काम बंद – मंदगति से काम करके उत्पादन को प्रभावित करना ।
केस :- सुगर वर्क्स प्रा. लि. बनाम शोवराती खान (AIR1960 SC 160)
हड़ताल 2 (q) में उपबंधित हड़ताल की परिभाषा में नही आती बल्कि यह एक गंभीर दुराचार है जिसे युक्तियुक्त नही कहा जा सकता।
- भूख हड़ताल – जिसमे अपनी मांग मनवाने के लिए कर्मकार कार्यस्थान या नियोजक के निवास – स्थान पर उपवास करते है।
- सहानुभूति हड़ताल – अन्य हड़तालियों के प्रति सहानुभूति प्रकट करने के लिए किया जाता है ।
- सांकेतिक हड़ताल
- नियमानुसार काम संबंधी हड़ताल
- लाइटनिंग स्ट्राइक – इसमें पहले अचानक हड़ताल की जाती है फिर विवाद के बिंदुओं पर विचार – विमर्श होता है। इसके अलावा Liodown Strike स्लोगेयर तथा सेक्शनल स्ट्राइक भी उल्लेखनीय है।
हड़ताल के कारण –
- नियोजक द्वारा कर्मकारो व उनके संघ की मांग पूरा न करना ।
- दूसरे प्रतिष्ठान के यूनियन के सहानुभूति के लिये
- काम का बोध
- औधोगिक अशान्ति
- नियोजक द्वारा अभद्र व्यवहार
- कर्मकारों की खराब सामाजिक दशा
- कर्मकारों की सौदेबाजी क्षमता के अनुपयुक्त होने के कारण
- अभियोग को वापस लेने का आग्रह छंटनी , जबरन छुट्टी , निलंबन , निष्कासन , सेवाच्युति , तालाबंदी श्रमिक के अधिकार का हनन आदि ।
हड़ताल के उद्देश्य –
- किसी कर्मकार के निलंबन , छांटे जाने निष्कासित तथा सेवायुक्त करने पर पुनर्नियुक्ति की मांग ।
- मशीनीकरण का विरोध
- सामूहिक समझौते की शर्तों को मानने के लिए नियोजन को बाध्य करना
- प्रदत्त धन के लिए उसे किसी पंचार समझौते की अंतर्गत देय है ।
हड़ताल करने की शर्तें –
औधोगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 22 लोकोपयोगी सेवा की बात करता है यह एक विशिष्ट धारा है जबकि धारा 23 गैर लोकोपयोगी है । यह सामान्य धारा है । धारा 22 और 23 यह बताती है कि हम हड़ताल कैसे शुरू करेंगे परन्तु हड़ताल शुरु करना अलग बात है और हड़ताल को जारी रखना अलग बात है । धारा 23 हड़ताल शुरू करते समय लागू होता है ।
जनोपयोगी सेवाओं से संबद्ध उद्योगों में हड़ताल की पूर्ववर्ती शर्ते –
लोकोपयोगी सेवाओं के सामाजिक एवं राष्ट्रीय महत्व को दृष्टिगत रखते हुए निम्नलिखित नियम लागू होते है। उसमें नियोजित कोई भी व्यक्ति –
- नियोजक या स्वामी को हड़ताल करने से पूर्व छ: सप्ताह हड़ताल की नोटिस दिए बिना या उसके पश्चात ;
- ऐसी नोटिस देने की तिथि से 14 दिनों के अंदर ;
हड़ताल शुरू करने की नोटिस कब दी जायेगी –
धारा 24 लोकोपयोगी सेवा में हड़ताल करने के पहले नियोक्ता को 42 दिन पहले नोटिस देना पड़ेगा । फिर 14 दिन इंतजार करने के बाद ही 15 वें दिन हड़ताल शुरू कर सकते है । अर्थात् हड़ताल 15 वें दिन से 42 वें दिन के बीच ही हड़ताल शुरू कर सकते है । उसके बाद हड़ताल चाहे जितना दिन कीजिये कोई फर्क नहीं पड़ता है । हाँ किस दिन हड़ताल शुरू करना है ( 15 वें दिन से 42 वें दिन के बीच ) उस तारीख को नियोक्ता को बताना पड़ेगा ।
केस :- मिनरल माइनर्स यूनियन बनाम कुद्रेमुख और कं. लि. (AIR1989 LLJ 279कर्नाटक
इस मामले में कर्नाटक H.C. ने विनिश्चय किया है कि धारा 22 आज्ञात्मक प्रकृति का है । अतः नोटिस में उस तिथि का उल्लंघन करना अत्यंत आवश्यक है जिस पर कर्मकार हड़ताल पर जाना चाहते है । निर्धारित तिथि के बीत जाने पर या समझौते कार्यवाही की विफलता के कारण यदि नोटिस देंना आवश्यक है तो नोटिस दी जानी चाहिए । बिना नोटिस के हड़ताल अवैध होगी।
हड़ताल शुरू करने की नोटिस कौन और किसे देगा – धारा 22 में यह बात स्पष्ट है कि बिना पूर्व सूचना के हड़ताल अवैध होगी , क्योंकि नोटिस देना परमादेश है ।
धारा 22 (4) के तहत नोटिस ऐसी संस्था द्वारा या ऐसे व्यक्तियों की ओर से ऐसी रीति में दी जाएगी जैसा कि इस सम्बन्ध में विहित की जाएगी ।
(अ) नोटिस कौन देगा – श्रमिक संघ ऐसी नोटिस दे सकता है । यदि संघ हड़ताल का आव्हान करने वाली है , तो उसका मंत्री नियोजक या उद्योग स्वामी को लिखित सूचना दे देगा । जिस उद्योग में संघ नही है , या है किंतु पंजीकृत नही है , तो कर्मकारों द्वारा नोटिस दी जा सकती है । यदि हड़ताल की पहल किसी फेडरेशन की ओर से है , तो नोटिस फेडरेशन के अधिकारी देंगे ।
(ब) नोटिस किसे दी जाय – सामान्य नियमों के अनुसार नोटिस उद्योगों के स्वामी को दी जाएगी । यदि किसी उद्योग के कई सहस्वामी है , तो उनमें किसी एक को , या स्थापन मिल , कंपनी के डायेरक्टर , लेवर ऑफिसर या प्रबन्धक विभाग के अध्यक्ष को नोटिस दे देना पर्याप्त है। सरकारी विभागों में, जैसे – रेलवे , पोस्ट ऑफिस के जनरल मैनेजर को नोटिस दी जा सकती है । संबंधित विभाग के मंत्री को नोटिस देना आवश्यक नहीं है । लेकिन हितकर आवश्यक होगा , ताकि वह भी हड़ताल रोकने के लिए यतोचित कदम उठा सके ।
धारा 22 (6) के अंतर्गत हड़ताल की नोटिस पाने पर नियोजक को चाहिए कि वह प्रतिवेदन पाने के 5 दिन के अंदर ही उसकी सूचना समुचित सरकार के पास प्रेषित कर दे ।
केस :- यू. पी. स्टेट ब्रिज का. लि. बनाम राज्य सेतु निमम सं. कर्मचारी संघ (2004)4 H.C.C. 268
S.C. के निर्णयानुसार धारा 22 के अंतर्गत हड़ताल के नोटिस की आवश्यकता केवल जनोपयोगी सेवा से संबन्धित उद्योगों में होती है , अन्य सामान्य प्रकृति के उद्योगों में नहीं ।
हड़ताल कब अवैध होगी – धारा 22 के प्रावधानों के उल्लंघन होने (नोटिस न दिए जाने ) पर हड़ताल |
केस :- म्युनिसिपल कमेटीपठानकोट बनाम इंडस्ट्रियल ट्रिव्यूनल पंजाब (AIR 1972) S.C.1216
s.c.के निर्णयानुसार निश्चित रूप से अवैध मानी जाएगी और ऐसी दशा में न्यायालय के शब्दों में ” कर्मकारों की माँगो का सही होना किसी हड़ताल को उचित नही बनाती , जो अन्यथा अवैध है ।
केस- बकिंघम एंड कर्नाटक कं. लि. बनाम उसके कर्मकार(AIR 1958) S.C .47
इस वाद में बिना सूचना के रात्रि की पाली में 8 से 10 बजे तक 2 घण्टे कर्मकार ने काम बंद कर दिए । इसका कारण यह था कि 1 नवम्बर 1948 को सूर्यग्रहण के उपलक्ष्य में कर्मकारो ने दोपहर पश्चात अवकाश की माँग की जिसे प्रबंधकों ने स्वीकार नही किया । अधिकरण ने उसे हड़ताल नही माना किन्तु अपील में S.C. ने निर्णय दिया कि इस प्रकार की बंदी कार्य की निरंतरता का भंग है , यह किसी एक कर्मकार द्वारा काम पर न लौटने की घटना नहीं हैं बल्कि बहुसंख्यक कर्मकारों द्वारा सम्मिलित रूप से की गई कार्यवाही है । अतः हड़ताल है ।
हड़ताल कब अवैध न होगी – जो कारण हड़ताल को अवैध बनाते है , उन्ही के अभाव में हड़ताल वैध होगी । हड़ताल के पूर्व और पश्चात नियमों का पालन किये जाने से उसकी अवैधता का कोई प्रश्न ही नहीं उठेगा ।हड़ताल करने का मात्र प्रस्ताव पारित करना अनुशासन भंग का कार्य नहीं होगा । कोई भी अनुशासनात्मक कार्यवाही प्रस्तावक या अनुमोदन के खिलाफ नहीं की जा सकती है –
- काम पर कुछ ही कर्मकारो के अनुपस्थित रहने को अवैध हड़ताल नहीं कहा जायेगा बशर्ते वे सम्बंधित ढंग से ऐसा नहीं करते है ।
- यदि किसी स्थापन में , जो लोकोपयोगी उद्योग नहीं है हड़ताल बिना नोटिस के ही की गई है, तो उसे अवैध हड़ताल कहेंगे ।
केस:- नार्थ बुक जूट कं. लि. बनाम उनके कर्मकार(AIR 1960) SC 879
इस मामलेमें SC. ने कहा है कि अतिरिक्त काम करने से इंकार करना अवैध हड़ताल नहीं है ।
हड़ताल न्यायोचित एवं अन्यायोचित –
केस :-रामकृष्ण आयरन फाउंड्री हावड़ा बनाम उनके कर्मकारगण(1954 LLJ (37 अपील अधिकरण
इस वाद में अवैध हड़ताल को दो भागों में विभक्त किया गया है –
- अवैध किन्तु न्यायोचित
- अवैध किन्तु अन्यायोचित
न्यायोचित हड़ताल का मतलब होता है कि जब कर्मकार , नियोजक के समक्ष अपनी मांग रखते है ‘ ओर नियोजक कर्मकारों के मांग को स्वीकार कर लेते है तब उसके बाद कर्मकार हड़ताल पर चले जाते है जो हड़ताल अन्यायोचित हो जायेगा । हड़ताल करने का कारण उद्योग से सम्बंदित नहीं है और कर्मकार आर्थिक मांग का बहाना बनाकर हड़ताल करते है तो यह अन्यायोचित हड़ताल है ।
केस :-गुजरात स्टील ट्यूब बनाम गुजरात स्टील ट्यूब मजदूर सभा(1980) L.L.J. 137 SC
इस वाद में न्यायाधीश कृष्ण अय्यर ने कहा कि अवैध हड़ताल पूर्ण रूप से न्यायोचित नही हो सकता है क्योंकि न्यायोचित और अन्यायोचित हड़ताल की अवधारणा एकदम स्थिर अवधारण नहीं हैं । कभी कोई हड़ताल न्यायोचित हो जाएगा और वही हड़ताल कुछ समय बाद अन्यायोचित हो जाएगा ।
जैसे – कोई न्यायोचित हड़ताल है लेकिन जैसे ही मारपीट , हिंसा , तोड़-फोड़ कर देते है तो वह हड़ताल अन्यायोचित हो जाएगा । लेकिन हड़ताल वैध है और बाद में मारपीट , हिंसा , तोड़ – फोड़ है तो वह हड़ताल वैध ही रहेगा , भले ही वह हड़ताल न्यायोचित से अन्यायोचित हो जाये ।
केस :-क्राप्टन ग्रीव्ज लि. बनाम उनके कर्मकारगण (1978)2 L.L.J. 80
इस वाद में यह सिद्धांत प्रतिपादित हुआ है कि कोई हड़ताल युक्तिसंगत उचित तथा वैध है , अथवा नहीं यह एक तथ्यात्मक प्रश्न है ।
क्या हड़ताल के दौरान वेतन मिलेगा – मानवाधिकार की दृष्टि से यह सबसे बड़ा मुद्दा है परंतु sc ने कहा कि हड़ताल न्यायोचित और वैध होगी ।
केस:- बैंक ऑफ इंडिया बनाम टी. एम. कोलावाल(1920)2 L.L.J.
इस मामले में s.c. ने कहा कि अगर आपका हड़ताल केवल वैध है तो कर्मचारियों को वेतन नही मिलेगा।
केस:- सिंडिकेट बैंक बनाम के. उमेश नायक(1994)5 JT 648
इस मामले में न्यायालय ने कहा कि हड़ताल वैध और अन्यायोचित है तो यह ऐसे कर्मचारियों को हड़ताल अवधि के लिए अपना वेतन खोने से नहीं बचाता है ।
हड़ताल रोकने या कम करने के उपाय – हर सम्भव प्रयास किये गए है । अपने यहाँ कार्य – समिति , समझौते अधिकारी , समझौता बोर्ड , जाँच न्यायालय , कमीशन आदि का गठन इसी उद्देश्य से ही किया जाता है , ताकि नियोजक तथा कर्मकारों के सम्बन्ध में सामान्य और उनके बीच सौहार्द्रपूर्ण वातावरण बना रहे और हड़ताल टाली जा सके । इसे रोकने के लिए सरकार घोषणा द्वारा प्रतिबंध लगा सकती है । दण्ड और अन्याय प्रशस्तियों का विधान बनाया गया है|
केस:- दयाकर रेड्डी बनाम डी. रामविम आटो लि. (2001)9 S.C.C.249
इस वाद में S.C. द्वारा प्रदत्त विनिश्चयानुसार राज्य के स्वामित्व वाले उपक्रम को बंद करने की प्रक्रिया यह होगी कि पहले सरकार प्रशासनिक निर्णय लेगी तत्पश्चात क्वेसाई जूडिशियल निर्णय ।
हड़ताल के परिणाम – हड़ताल का नियोजितियों पर प्रभाव –
- वेतन की कटौती
- अवैध हड़ताल के लिए दंड विधान
- अवैध हड़तालों तथा ताला बंदियों को आर्थिक सहायता प्रदान करने पर प्रतिबंध
- बोनस न मिलना
- निलम्बन सेवायुक्ति या अनुशासनात्मक कार्यवाहियाँ
- नियोजक तथा नियोजिती का सम्बंध बिगड़ना
- उत्पादन पर बुरा प्रभाव
- जीवन का संकटमय हो जाना
सरकारी सेवक द्वारा हड़ताल किया जाना – राज्याधीन सेवको को राज्याधीन सेवाओं में कार्यरत कर्मकारों के हड़ताल पर जाने का अधिकारी निजी औधोगिक प्रतिष्ठानों में कार्यरत कर्मकारों के अधिकारों से पूर्णतया भिन्न है । वहाँ हड़ताल पर जाने के पूर्व कतिपय नियमों का पालन करना पड़ता है जो तत्समय प्रवर्तन में होते है । जोसेफ के वाद में स्पष्ट किया गया है कि हड़ताल के सम्बन्ध में सरकार द्वारा विहित नियम अथवा नियमावली की वैधता के लिए यह आवश्यक है कि संविधान में वर्णित मूल्य अधिकारों का अतिलंघन न करे ।
अवैध हड़ताल के कारण हुई हानि के लिए प्रतिकर प्राप्त करने का अधिकार – नियोजक द्वारा अवैध हड़ताल से हुई हानि के लिये प्रतिकर दिया जाना अवैध है। प्रतिकर धारा 28 के अंर्तगत नही प्राप्त किया जा सकता है । इसकी पुष्टि रोहतास इंडस्ट्रीज बनाम व्यवसाय संघ में s.c. द्वारा दिये गए विनिश्चय से होती है । प्रतिकर धारा 26 के अधीन प्राप्त किया जा सकता है ।
क्या हड़ताल करना संवैधानिक अधिकार है – भारतीय संविधान 1950 के अनु. 19(1) (जी) में इस बात का स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि किसी भी व्यक्ति को किसी पेशे को चुनने , अनु. (1) (बी) किसी भी स्थान पर शांतिपूर्ण ढंग से एकत्रित होने , अनु. 19 (1) (ए) पर विचार – विमर्श तथा मत प्रकट करने तथा अनु. 19(1) (सी) के तहत संगम या संघ बनाने की पूर्ण स्वतंत्रता है। अपनी माँगो को नियोजक से मनवाने का कर्मकारों के हाथों में हड़ताल एवं अहिंसात्मक उपाय एवं ब्रह्मास्त्र है , जिसके बल पर वे नियोजक को अपने अनुकूल रास्ते पर लाने में सफल होते है।
महात्मा गांधी हड़ताल के हिमायती नहीं ये , गांधी विचार धारा के अनुसार हड़ताल एक सत्याग्रह है । लेकिन उसका प्रयोग परिस्थिति विशेष में ही शांतिपूर्ण ढंग से अन्य साधनों तथा उपायों के विफल होने पर ही किया जाना चाहिए ।
भारतीय संविधान के अनु. 43 कर्मकारों के लिये निर्वाह मजदूरी की बात करता है । जिसमें कर्मकारों के आर्थिक , सामाजिक विकास की बात कही गई है ।
अंतरराष्ट्रीय प्रावधान –
मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा , 1948 के अनुसार –
- प्रत्येक व्यक्ति को काम करने , अपनी इच्छा से अपना रोजगार चुनने , काम करने की उचित और अनुकूल परिस्थितियाँ पाने और बेरोजगारी के खिलाफ सुरक्षा का अधिकार प्राप्त है |
- प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी विभेद के समान कार्य के लिए समान वेतन पाने का अधिकार है।
- जो कोई भी काम करता है उसे न्यायसम्मत और लाभदायक पारिश्रमिक पाने का अधिकार ।
- अपने हितों की रक्षा के लिए प्रत्येक व्यक्ति को श्रमिक संघ बनाने और संघ में शामिल होने का अधिकार । मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को विश्राम और अवकाश का अधिकार है , जिसमें काम के घण्टो पर उचित सीमा लगाना और सवेतन अवकाश भी शामिल है ।
सिविल व राजनैतिक अधिकारों की अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदा , 1966 –
सिविल व राजनैतिक अधिकारों की अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदा के पक्षकार राज्य , रोजगार के अधिकार को स्वीकार करते है , जिसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पसंद का रोजगार चुनकर और अपनाकर अपनी जीविका कमाने का अवसर प्राप्त करने का अधिकार है ।
इस प्रसंविदा के पक्षकार राज्य यह स्वीकार करते है कि प्रत्येक व्यक्ति को काम करने की ऐसी न्यायसंगत और अनुकूल परिस्थितियों के उपभोग का अधिकार है । हड़ताल करने का अधिकार वशर्ते कि इस अधिकार का प्रयोग सम्बंधित देश के कानून का ख्याल रखते हुए किया जाये |
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन अभिसमय,1948 – अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन हमें व्यवसाय संघ बनाने की अनुमति जरूर प्रदान करता है सिर्फ सामूहिक सौदेबाजी को स्वीकार करता है परंतु स्पष्ट रूप से हड़ताल का अधिकार प्रदान नहीं करता है। भारत अंतरराष्ट्रीय संघ संगठन का सदस्य है परंतु उसने हड़ताल के अधिकार को स्वीकार नहीं किया है।
अंतर्राष्ट्रीय संघ संगठन ने सभी के लिए काम के अधिकार को मूल अधिकार घोषित किया है।
वे देश जो हड़ताल को कानूनी मान्यता प्रदान करते है :-
- पौलैंड ने 26 अगस्त 1981 में हड़ताल को कानूनी मान्यता प्रदान कर दिया है ।
- रवांडा ने अपने संविधान के अनु. 32 में राइट टू स्ट्राइक को एक अधिकार के रूप में प्रदान किया है
- इथोपिया के संविधान के संविधान में अनु. 42 में राइट टू स्ट्राइक को स्वीकार किया गया है ।
- अंगोला के संविधान में अनु. 34 में न केवल हड़ताल के अधिकार की गारंटी प्रदान करता है साथ ही तालाबंदी को भी सरंक्षित रखता है ।
- दक्षिण अफ्रीका के संविधान में अनु. 23 में कर्मकारों को हड़ताल का अधिकार प्रदान करता है ।
- उसी तरह ब्राजील अनु. 9 , ग्रीक अनु. 23 , हंगरी अनु. 70 (C) , पोलैण्ड अनु. 59 , पुर्तगाल अनु. 57 आदि देशों ने अपने संविधान में हड़ताल को एक अधिकार के रूप में प्रदान किया है ।
अगर हम एशियाई देशों की बात करे तो पूंजीवादी देश जापान अनु. 28 में व दक्षिण कोरिया अनु. 33 में हड़ताल को अधिकार प्रदान करता है तथा काम के अधिकार में हड़ताल अधिकार को भी शामिल करते है । परंतु भारत में यह कोई अधिकार नही है ।
औधोगिक विवाद अधिनियम 1947 के अध्याय 5 में हड़ताल व तालाबंदी का प्रावधान है । परंतु संविधान में यह कोई मूल अधिकार नहीं है । धारा 22 हड़ताल और तालाबंदियों का प्रतिषेध करता है , वही धारा 28 साधारण प्रतिषेध करता है ।
हड़ताल करना मौलिक अधिकार नहीं है –
केस :-कामेश्वर प्रसाद बनाम बिहार राज्य(AIR 1966 S.C. 1166
इस वाद में sc ने स्पष्ट कर दिया है कि हड़ताल करना मौलिक अधिकार नहीं है । भारतीय संविधान के अनु. 19 (1) (A) में तथा (6) में प्रदत्त अधिकारों में हड़ताल पर जाने का अधिकार सम्मिलित नहीं है ।
केस:- राधेश्याम शर्मा बनाम पोस्ट मास्टर जनरल सेंट्रल सर्किल नागपुर(AIR1965) 311
इस वाद में आवश्यक सेवा अध्यादेश की धारा 3,4,5 हड़ताल का प्रतिबन्धित करता है , वैध है क्योंकि कर्मकारों को हड़ताल पर जाने का कोई अधिकार नहीं है ।
केस:- कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया बनाम भरत कुमार एवं अन्य (AIR1998) S.C.184)
इस वाद में;
- किसी भी व्यक्ति को हड़ताल करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है चाहे वे कोई भी राजनीतिक दल अथवा संगठन हो ।
- ऐसा कोई भी संवैधानिक प्रावधान नहीं है जो सरकारी कर्मचारियों की हड़ताल पर जाने का अशिकार प्रदान करता हो इसके विपरीत हड़ताल पर जाने प्रतिबंधित करने के लिये विधिक प्रावधान विद्यमान है ।
- संवैधानिक प्रावधानों के साथ सरकारी कर्मचारी हड़ताल पर जाने का दावा नही कर सकते क्योंकि इससे पूरी प्रशासनिक व्यवस्था चरमरा जाती है ।
- हड़ताल अफसरों पर लोक सम्पतियों को भी व्यापक क्षति पहुँचायी जाती है अतः यह समाज के विकास पर बुरा प्रभाव डालता है ।
केस:- भूतपूर्व कैप्टन हरीश उप्पल बनाम भारत संघ(2003)2 S.C.C.95
इस वाद में संविधान पीठ ने यह निर्णीत किया है कि अधिवकताओं को हड़ताल पर जाने का बहिष्कार का आयोजन करने का अधिकार नहीं है और यहाँ तक कि सांकेतिक हड़ताल का भी अधिकार नहीं है । न्यायालय ने आगे कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में हड़ताल को न्यायोचित उचित कारणों को सही नही ठहराया जा सकता था ।
केस:- टी. के. रंगराजन बनाम तमिलनाडु राज्य (२००३)6 S.C.C.581
इस वाद में तमिलनाडु सरकार ने तमिलनाडु आवश्यक सेवा अधिनियम 2003 के अंतर्गत राज्य कर्मियों द्वारा आहूत सामूहिक हड़ताल को प्रतिबंधित कर दिया । H.C. होते हुए sc गया। sc में निम्न मुख्य विचारणीय प्रश्न थे –
- क्या सरकारी कर्मचारियों को हड़ताल पर जाने का संविधान के अनु. 19 (1) के अंतर्गत मूल अधिकार है ?
- क्या हड़ताल पर जाना वैधानिक अधिकार है ?
- क्या हड़ताल पर जाने का नैतिक या सामयिक औचित्य है ?
s.c. विभिन्न अवसरों पर यह स्पष्ट कर चुका है कि कर्मचारियोंको हड़ताल पर जाने अथवा हड़ताल का आयोजन करने सम्बन्धी कोई मूलाधिकार नहीं है । सेवा के किसी भी क्षेत्र में हड़ताल करने सम्बन्धी कोई मूल अधिकार नहीं है।
निष्कर्ष :-
श्रमिक कल्याण व मानवाधिकार की दृष्टि से हड़ताल का अधिकार मूल अधिकार होना चाहिए। विश्व के कई देशों के संविधान में हड़ताल का अधिकतर एक मूल अधिकार है जैसे पोलैण्ड, खाड़ी, इथोपिया, अंगोला , दक्षिण अफ्रीका , ब्राजील , मिश्र, पुर्तगाल आदि । इसी तरह सिविल व राजनैतिक अधिकारों की अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदा 1966 के अनु. 8 (ध) हड़ताल करने का अधिकार प्रदान करता है , बशर्ते कि इस अधिकार का प्रयोग सम्बन्धित ढंग से से कानून का ख्याल रखते हुए किया जाए ।
कार्लमार्क्स ने कहा है कि अगर पूंजीपति वर्ग श्रमिकों को बात नही मानेंगे तो श्रमिक अपने अधिकारों को उनको मारकर छीन लेंगे । क्योंकि कर्मकार हमेशा शोषित वर्ग होता है । नियोक्ता हमेशा न्यूनतम उत्पादन पर अधिकतम उत्पादन प्राप्त करना चाहता है , जिससे कर्मकार का शोषण होता है । अतः उसके पास हड़ताल ही अपनी बातों का मनवाने के लिए एक अस्त्र होता है ।
भारतीय और अमेरिकी विचारधारा समान है , यही नोटिस देकर हड़ताल किया जा सकता है । इंग्लैंड में ही इंडस्ट्रियल रिलेशन बिल 1971 में इस प्रकार के अधिकार को सुरक्षित किया गया है ।
केस :- मारगन बनाम फ्राइ(1968)3 W.L.R. 506
इस वाद में लार्ड डेनिंग ने अपना विचार इस वाद में इस प्रकार प्रकट किया है – कर्मकारों को हड़ताल करने का अधिकार है, बशर्ते ये पहले से ही नोटिस दे ।
केस:- ” वी. आर. सिंह बनाम भारत संघ “(1989)L.L.J.591.S.C.
इस वाद में sc ने कहा कि हड़ताल प्रदर्शन का एक लोकतांत्रिक माध्यम है । यद्यपि की संवैधानिक अनु. 19 (1) (B) में हड़ताल को नागरिकों के मूल अधिकार के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है फिर भी इसे सामान्य विधिक उपचार के रूप में मान्यता की गई है । court ने हड़ताल के अधिकार को आत्यन्तिक अधिकार न मानते हुए उस पर धारा 10 (3) , 10 ए में प्रतिबन्ध अथवा प्रतिषेध किये जाने को न्यायिक मान्यता प्रदान की है । शांतिपूर्ण ढंग से सीमित मात्रा में प्रदर्शन करने का अधिकार विचार व्यक्त करने के अंतर्गत आता है । उस पर रोक लगाना अनुचित होगा ।
केस:- पटेल आयल मिल्स बनाम रिलैक्सो रबर एवं एनाइड इंडस्ट्रीज इम्प्राइज यूनियन (1998)78 D.L.T.595
इस वाद में हड़ताल के अधिकार को मान्य करते हुए कहा गयाकि न्यायालय द्वारा ऐसा प्रतिबन्ध नहीं लगाया चाहिए जो शांतिपूर्ण हड़ताल को निष्प्रभावी बनाता हो या कर्मकारों को उनके लेजिटिमेट राइट से बंधित करता हो ।
श्रम कल्याण कि दृष्टि से हड़ताल के अधिकार को मानवाधिकार घोषित करते हुए मौलिक अधिकार बना देना चाहिए ताकि श्रमिको का कल्याण हो सके तथा श्रमिक अपने अधिकार को स्वयं नियोजकों से मांगे व राज्य का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए ।
सन्दर्भ-सूची :-
- सिंह इन्द्रजीत ” श्रमिक विधियाँ “सेंट्रल लॉ पब्लिकेशन , 23 वाँ संस्कर
- मिश्र , प्रो. सूर्य नारायण ” श्रम एवं औधोगिक विधि सेंट्रल लॉ एजेन्सी 20 वाँ संस्करण , 2019
- कक्षा व्याख्यान , डॉ. प्रदीप कुमार सह ।