विनफील्ड के अनुसार, संप्रहार एवं हमला के संबंध में यह कथन उल्लेखनीय है : “यदि किसी कुत्ते का स्वामी अपने कुत्ते को एक शान्तिप्रिय नागरिक पर दौड़ाता है तो वह हमला और संप्रहार का ठीक उसी प्रकार दोषी होगा मानो कि उसने उस नागरिक पर पत्थर फेंका है या उस पर लाठी से वार किया है।”
हमला या आक्रमण (Assault) की परिभाषा
विनफील्ड के अनुसार : “प्रतिवादी का ऐसा कार्य जिससे वादी के मन में यह युक्तियुक्त आशंका उत्पन्न हो जाए कि प्रतिवादी उस पर संप्रहार करने वाला है ‘हमला’ है।”
सामण्ड (Salmond) के अनुसार — बिना वैध औचित्य के किसी व्यक्ति के शरीर के प्रति अभिप्रायपूर्वक बल का प्रयोग आक्रमण (Assault) कहा जाता है।
सर फेड्रिक पोलक (Sir Frederich Pollack) के अनुसार – “प्रतिवादी द्वारा वादी के शरीर पर अवैध रूप से हाथ रखना या उसको शारीरिक क्षति पहुँचाने का प्रयास करना, यदि प्रतिवादी को ऐसा कार्य करने की क्षमता और आशय विद्यमान है, आक्रमण कहलाता है।”
भरी हुई बंदूक से किसी व्यक्ति पर निशाना लगाना हमला है। यदि बंदूक भरी हुई न हो लेकिन उससे इस प्रकार निशाना लिया गया हो कि बंदूक भरी हुई होती, तो वह क्षति कारित कर सकती थी, यह भी हमला माना जाएगा। किन्तु जब वादी यह जानता है कि बंदूक भरी हुई नहीं है तो फिर यह हमला नहीं होगा। हमला माने जाने की कसौटी यह है कि वादी के मन में यह आशंका उत्पन्न हो जाए कि उसके विरुद्ध संप्रहार किया जाने वाला है चाहे उसको कोई हानि होती हो या नहीं।
केवल धमकी मात्र से हमले का अपराध नहीं बनता अपितु चोट पहुँचाने का उद्देश्य और उसके अनुसरण में किया जाने वाला कोई कृत्य हमले का अपराध गठित करता है।
हमले के अपराध के गठन के लिये यह भी आवश्यक है कि चोट पहुँचाने की क्षमता भी प्रथम दृष्टया अपकारी में विद्यमान हो। यदि मृत्यु शैया पर लेटा व्यक्ति किसी को मुक्का दिखाए या चलती गाड़ी से कोई किसी को मुक्का दिखाए या मकान की ऊपर की मंजिल से नीचे की ओर किसी को मुक्का दिखाए तो हमले का अपराध नहीं बनता।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 351 में हमला को परिभाषित किया गया है जिसके अनुसार –
जो कोई, कोई अंगविक्षेप या कोई तैयारी इस आशय से करता है, या यह संभाव्य जानते हुए करता है कि ऐसे अंगविक्षेप या ऐसी तैयारी करने से किसी उपस्थित व्यक्ति को यह आशंका हो जाएगी कि जो वैसा अंगविक्षेप या तैयारी करता है, वह उस व्यक्ति पर आपराधिक बल का प्रयोग करने ही वाला है, वह हमला करता है, यह कहा जाता है।
इस धारा में यह भी स्पष्टीकृत किया गया है कि केवल शब्द हमले की कोटि में नहीं आते, किन्तु जो शब्द कोई व्यक्ति प्रयोग करता है, वे उसके अंगविक्षेप या तैयारियों को ऐसा अर्थ दे सकते हैं जिससे वे अंगविक्षेप या तैयारियां हमले की कोटि में आ जाएं।
उदाहरण:- (1) य पर अपना मुक्का क इस आशय से या यह संभाव्य जानते हुए हिलाता है कि उसके द्वारा य को यह विश्वास हो जाए कि क, य को मारने वाला ही है। क ने हमला किया है।
(2) क एक हिंसक कुत्ते की मुखबंधनी इस आशय से या यह संभाव्य जानते हुए खोलना आरंभ करता है कि उसके द्वारा य को यह विश्वास हो जाए कि वह य पर कुत्ते से आक्रमण कराने वाला है। क ने य पर हमला किया है।
(3) य से यह कहते हुए कि “मैं तुम्हें पीटूंगा” क एक छड़ी उठा लेता है। यहां यद्यपि क द्वारा प्रयोग में लाए गए शब्द किसी अवस्था में हमले की कोटि में नहीं आते और यद्यपि केवल अंग-विक्षेप बनाना जिसके साथ अन्य परिस्थितियों का अभाव है, हमले की कोटि में न भी आए तथापि शब्दों द्वारा स्पष्टीकृत वह अंगविक्षेप हमले की कोटि में आ सकता है।
हमले के संबंध में स्टीफेन्स बनाम मार्क्स, (1830) 4 सी. एण्ड पी. 349 का वाद महत्वपूर्ण है।
इस मामले में एक परिषद् की सभा में प्रतिवादी उग्र हो गया तो बहुमत से यह फैसला लिया गया कि उसे सभाकक्ष से बाहर कर दिया जाए। इस पर प्रतिवादी गुस्से में अध्यक्ष की ओर मुक्का दिखाकर यह कहते बढ़ा कि इससे पहले वह अध्यक्ष को उसकी कुर्सी से हटा देगा किन्तु उसे लोगों द्वारा पकड़ लिया गया। अध्यक्ष की ओर से लाए गए वाद में न्यायालय ने प्रतिवादी को हमला के लिये उत्तरदायी ठहराया।
हमले के आवश्यक तत्व :-
- प्रतिवादी की भाव-भंगिमा या तैयारी जो धमकी या बल प्रयोग का गठन करती हो।
- प्रतिवादी की भाव-भंगिमा या तैयारी ऐसी हो जिससे वादी के मन में यह आशंका पैदा हो जाए कि प्रतिवादी हमला करने वाला है।
- प्रतिवादी ऐसी स्थिति में हो कि तत्काल बल प्रयोग कर सकता हो ।
केस – रेड बनाम कोकर, (1853) 13 सी० वी०
इस वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि प्रहार के लिए यह आवश्यक है कि हिंसा की धमकी से कुछ अधिक हो।
केस – स्टीफेन्स बनाम मार्क्स ( 1830) 4 C & P 349]
इस वाद में वादी एक परिषद् का अध्यक्ष था। प्रतिवादी भी उसी मेज पर बैठा था, परन्तु प्रतिवादी और वादी के बीच छः – सात अन्य व्यक्ति भी बैठे थे बहस जब गर्म हो उठी, तब प्रतिवादी उग्र बन गया। उसने सभा की कार्यवाही में व्यवधान उपस्थित किया। सभा के एक बड़े बहुमत द्वारा यह निश्चित किया गया कि प्रतिवादी की सभाकक्ष से निकाल बाहर कर दिया जाये।
इस पर प्रतिवादी मुक्का दिखाकर, यह कहता हुआ अध्यक्ष की ओर बढ़ा कि उसे स्वयं अपने को सभा कक्ष से बाहर कर दिये जाने के पूर्व ही वह अध्यक्ष को उनकी कुर्सी से हटा देगा, परन्तु उसे अध्यक्ष के ठीक बगल में बैठे एक व्यक्ति द्वारा रोक दिया गया। प्रतिवादी को हमला के लिये उत्तरदायी ठहराया गया।
केस – ब्लैक बनाम बर्नार्ड (1890)
प्रतिवादी ने वादी के ऊपर भरी हुई पिस्टल तानी और वादी को गोली मारने की धमकी दी। न्यायालय का मत था-प्रतिवादी का कार्य आक्रमण होगा यदि वह यह प्रमाणित न कर दे कि पिस्टल खाली थी। यह बात महत्वहीन है कि उसका आशय धमकी पूरा न करने का था या नहीं।
संप्रहार (Battery) की परिभाषा
विधिपूर्ण औचित्य के बिना साशय अन्य व्यक्ति पर बल का प्रयोग करना “संप्रहार” कहलाता है।
शत्रु भाव से या किसी की इच्छा के विरुद्ध उसके शरीर का स्पर्श करना “संप्रहार” है चाहे वह कितना ही तुच्छ क्यों न हो। एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति पर थूकना, पानी फेंकना, आदि भी सम्प्रहार है।
संप्रहार का अपकार तब घटित होता है जब कोई व्यक्ति बिना किसी विधिपूर्ण औचित्य के साशय दूसरे व्यक्ति पर बल का प्रयोग करता है।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 350 के अनुसार “कोई व्यक्ति संप्रहार का उत्तरदायी तब होता है जब वह क्रोधावेश में आकर किसी अन्य व्यक्ति को डराने या हानि पहुँचाने की नीयत से, उसके शरीर पर वास्तव में प्रहार करता है या उसे स्पर्श करता है।” इस प्रकार संप्रहार वह अपकृत्य है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के शरीर को गैर-कानूनी ढंग से स्पर्श करता है।
इस अपकृत्य के लिए यह बात निरर्थक है कि वादी को स्पष्ट चोट आई है या नहीं। यह भी आवश्यक नहीं है कि वादी अपने शरीर के अंगों द्वारा ही स्पर्श करे, छड़ी के द्वारा स्पर्श भी प्रहार कहा जायेगा। किसी व्यक्ति के ऊपर थूक देना, पानी या कूड़ा फेंकना भी संप्रहार माना गया है।
केस – हर्स्ट बनाम पिक्चर थियेटर्स लि० [(1915) 1 KB]
वादी एक सिनेमा शो का टिकट खरीद कर सीट पर बैठा था मैनेजर के आदेश से उसे सीट से बलपूर्वक निकाल दिया गया। मैनेजर की यह गलत धारणा थी कि उसने सीट का किराया नहीं दिया है। न्यायालय ने वादी को संप्रहार के अपकृत्य के लिए एक अच्छी क्षतिपूर्ति का अधिकारी माना।
संप्रहार के आवश्यक तत्व हैं :-
- बल का प्रयोग।
- बिना किसी विधिपूर्ण औचित्य के बल का प्रयोग ।
(1) बल का प्रयोग –
यदि बल अत्यन्त कम हो और उससे कोई हानि न होती हो तो भी वह संप्रहार कहलाएगा।
केस – कोल बनाम टर्नर, 6 Mod. 149-67 E.R. 907
इस वाद में यह अभिनिर्धारित किया गया कि यदि कोई व्यक्ति क्रोध में किसी व्यक्ति को छू भी दे तो वह संप्रहार की कोटि में आ जाता है।
किसी व्यक्ति को कॉलर पकड़कर ‘देख लेने’ की धमकी देना, किसी का चिकित्सा परीक्षण उसकी इच्छा के विरुद्ध कराना, जानबूझकर किसी व्यक्ति पर थूक देना आदि भी संप्रहार के अंतर्गत आता है।
केस – इन्नेस बनाम बायली (1884)
इस वाद में एक पुलिस कर्मचारी ने विधिविरुद्ध रीति से वादी को क्लब के परिसर में प्रवेश करने से रोक दिया। यह धारित किया गया कि यदि पुलिसकर्मी किसी दीवार की भाँति वादी को कक्ष में प्रवेश करने से रोकने के लिये निष्क्रियता के साथ दृढ़ रहता है, तो उसे संप्रहार की कोटि में नहीं रखा जा सकता।
(2) बिना किसी विधिपूर्ण औचित्य के बल का प्रयोग –
संप्रहार के लिये यह आवश्यक है कि बल का प्रयोग बिना किसी विधिपूर्ण औचित्य के किया गया हो। कोल बनाम टर्नर के वाद में मुख्य न्यायाधीश होल्ट ने यह मत व्यक्त किया कि यदि दो या अधिक व्यक्तियों का एक पतली गली से गुजरते समय शरीर स्पर्श हो जाए और हिंसा या हानि की कोई परिकल्पना ना हो तो इसे संप्रहार नहीं कहा जाएगा किन्तु किसी व्यक्ति के द्वारा हिंसा एवं बल प्रयोग किया जाता है तो यह संप्रहार होगा।
अपवाद –
स्वेच्छया हानि सहन करना इसका अपवाद है अतः जब वादी की सम्मति हो तो संप्रहार का अपराध नहीं बनता। जब हानि दुर्घटनावश हुई हो और जानबूझकर न की गई हो तो वह वाद योग्य नहीं है।
केस – स्टेनले बनाम पॉवेल, (1891) 11 क्यू.बी. 86
इस मामले में वादी और प्रतिवादी शिकार पार्टी के सदस्य थे। प्रतिवादी ने एक पक्षी पर गोली चलाई जो एक पेड़ से टकराकर वादी को लग गई जिसके कारण वह क्षतिग्रस्त हो गया। न्यायालय ने प्रतिवादी को उत्तरदायी नहीं माना।
केस – प्रताप दागाजी बनाम बी० बी० एण्ड सी० आई० रेलवे (1875)
इस वाद में भूल से टिकट न खरीद सका और यात्रा करने के लिये प्रतिवादी की रेलवे के एक डिब्बे में सवार हो गया। एक बीच के स्टेशन पर उसने टिकट की माँग की, परन्तु टिकट देना अस्वीकृत कर दिया गया। एक दूसरे स्थान पर उसे डिब्बे में से निकल जाने को कहा गया, क्योंकि उसके पास टिकट नहीं था। जब उसने डिब्बे से निकलना अस्वीकार कर दिया, तब उसे डिब्बे से बाहर निकालने के लिये बल का प्रयोग किया गया।
वादी ने इस प्रकार बलपूर्वक बाहर निकाले जाने के विरुद्ध जब कार्यवाही की, तब यह धारित किया गया कि न्यायोचित टिकट न रहने के कारण वादी एक अतिचारी था उसके प्रति बल का प्रयोग न्यायोचित था तथा प्रतिवादी उत्तरदायी नहीं थे।
स्पष्टीकरण– संप्रहार के तत्वों का परीक्षण करने पर निम्नलिखित मामले संप्रहार में नहीं आते हैं-
(1) किसी के साथ हाथ मिलाना- इसमें सहमति समझी जाती है,
(2) पुलिस द्वारा कानून के पालन में किसी को गिरफ्तार करने में बल-प्रयोग,
(3) किसी व्यक्ति का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए साधारण ढंग से झकझोरना।
आक्रमण तथा संप्रहार का न्यायोचित्य अथवा बचाव (Justification of or defences in an action of Assault and Battery)
आक्रमण एवं संप्रहार के अपकृत्यों से प्राप्त क्षतिपूर्ति के लिए लाये गये वाद में प्रतिवादी निम्नलिखित बचाव ले सकता है। ये बचाव वे परिस्थितियाँ हैं जिनमें किया गया आक्रमण एवं प्रहार अनुयोज्य नहीं माना जाता है-
1. आत्मरक्षा (Self-defence ) –
आत्मरक्षा पति, पत्नी, माँ-बाप एवं अपने बच्चों व स्वामी की रक्षा सदैव अनुमेय (Permissible) है। आत्मरक्षा में किये गये आक्रमण या संप्रहार अनुयोज्य नहीं होते हैं। यह सिद्धान्त “Son asault demesne” कहा जाता है जिसका अर्थ होता है कि जिस अपकृत्य की शिकायत की गई है वह वादी के स्वयं के ही हमले का प्रभाव था।”
2. सम्पत्ति की सुरक्षा (Defence of Property) —
सम्पत्ति की सुरक्षा में किया गया आनुपातिक एवं आवश्यक बल प्रयोग क्षम्य है। इस प्रकार मकान, माल एवं जानवरों के कब्जा की सुरक्षा के लिए स्वामी को अधिकार है कि वह बलपूर्वक घर में प्रवेश करने वाले को बाहर निकाल दे।
3. सम्पत्ति का पुनर्ग्रहण (Retaking of Property ) —
सम्पत्ति के वास्तविक स्वामी एवं उसके सेवक को उसकी आज्ञा पर यह अधिकार है कि वह किसी व्यक्ति द्वारा गैर-कानूनी ढंग से हस्तगत की गई सम्पत्ति को उससे वापस ले ले। इस स्थिति में किया गया आक्रमण एवं संप्रहार अनुयोज्य नहीं है।
4. अवश्यम्भावी दुर्घटना ( Inevitable accident) –
यदि किसी अवश्यम्भावी दुर्घटनावश किसी व्यक्ति का शरीर उसकी इच्छा के विरुद्ध स्पर्श करना पड़े और यह स्पर्श अन्यथा अवैध न हो तथा उपेक्षापूर्वक न किया गया हो तो वह क्षम्य होता है।
5. विधिपूर्ण सुधार (Lawful Corrections)—
इसे पैतृक या पैतृक कल्प कृत्य भी कहते है। माँ-बाप एवं अभिभावक अपने बच्चों को सुधारने हेतु युक्तियुक्त एवं उचित बल-प्रयोग कर सकते हैं जो आक्रमण या प्रहार रूप में अनुयोज्य नहीं माना जायेगा।
6. अनुमति (Leave and Licence ) —
अनुमति एवं अनुज्ञा के अन्तर्गत किये गये कृत्य,अपकृत्य होते हुये भी अनुयोज्य नहीं माने जाते हैं।
7. सार्वजनिक शान्ति की सुरक्षा (Maintenance of Public Tranquility)—
सार्वजनिक शान्ति की सुरक्षा के लिए उचित बल-प्रयोग करते हुए यदि व्यक्ति को आक्रमण या प्रहार करना पड़े तो वह अनुमोदन नहीं माना जाता है।
8. विधिक प्रक्रिया (Legal Process)—
विधिक उद्देश्यों की पूर्ति में जिसमें किसी विधि के अन्तर्गत तलाशी एवं गिरफ्तारी का कर्तव्य भी सम्मिलित है, यदि किसी व्यक्ति के विरुद्ध आक्रमण या संप्रहार करना पड़े तो वह अनुयोज्य नहीं माना जाता है।
आक्रमण तथा संप्रहार में अन्तर (Difference between Assault and Battery)
यद्यपि आक्रमण एवं संप्रहार दोनों ही अपकृत्य के समान प्रकृति वाले लगते हैं परन्तु दोनों में मौलिक अन्तर भी है। इस अन्तर को हम इस प्रकार समझ सकते हैं-
(1) यद्यपि दोनों में गति (Motion) आवश्यक है, लेकिन किसी व्यक्ति के विरुद्ध अवैध बल का प्रयोग संप्रहार होता है जबकि किसी व्यक्ति को अवैध बल-प्रयोग के आसन्न भय में डाल देना, हालांकि बल का वास्तव में प्रयोग नहीं हुआ हो, आक्रमण (Assault) कहलाता है।
(2) सर फ्रेडरिक पोलक के अनुसार-संप्रहार (Battery) में आक्रमण ( assault) सम्मिलित रहता है। इस प्रकार आक्रमण एवं संप्रहार की दिशा में एक प्रयत्न या संप्रहार करने की धमकी है। आक्रमण को अपूर्ण संप्रहार (Inchoate Battery) कहा जाता है।
(3) संप्रहार में भौतिक स्पर्श (Actual physical Contact) आवश्यक है जबकि संप्रहार नहीं।
संदर्भ-
2. अपकृत्य विधि- जयनारायण पाण्डेय