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संस्वीकृति तथा मृत्युकालिक कथन में अंतर | difference between confession and dying declaration in hindi

संस्वीकृति तथा मृत्युकालिक कथन में अंतर

 संस्वीकृति तथा मृत्युकालिक कथन में अंतर

 संस्वीकृति(Confession) किसे कहते है?

संस्वीकृति को भारतीय साक्ष्य अधिनियम में कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है। संस्वीकृति “अपराध की स्वीकृति”या “जुर्म का इकबाल है”। स्वीकृति की परिभाषा  संस्वीकृति पर भी लागू होती है, यदि वह सिविल मामलों में की जाती है तो वह स्वीकृति कहलाती है, यदि वह अपराधी द्वारा अपराध के संबंध में की जाती है तो वह संस्वीकृति कहलाती है।

केस :-साहू बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, (ए आई आर 1966)  एस..सी. 40।

इस मामले में कहा गया है कि कथन एक जाति है स्वीकृति उसकी उपजाति तथा संस्वीकृति अनुजाति।

मृत्युकालिक कथन (dying declaration) किसे कहते है ?

मृत्युकालिक कथन को भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 32(1) में वर्णित किया गया है।

मृत्युकालिक कथन उस कथन को कहते हैं, जिसमें कथन करने वाला व्यक्ति अपनी मृत्यु का कारण या उन संव्यावहारिक परिस्थितियों को, जिनकी परिणति उसकी मृत्यु में हुई, बताता है।

केस :- संत गोपाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (ए आई आर 1995)।

इस वाद में उच्च न्यायालय ने कहा कि “मृत्युकालीन कथन” से तात्पर्य उस व्यक्ति के लिखित या मौखिक सुसंगत कथनों से है जो मर चुका है।

 संस्वीकृति तथा मृत्युकालिक कथन में अंतर:- 

संस्वीकृति(Confession) मृत्युकालिक कथन (dying declaration)
 1. संस्वीकृति को भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 24 से 30 में वर्णित किया गया है। 1. मृत्युकालिक कथन को भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 32(1) में वर्णित किया गया है।
 2. संस्वीकृति किसी अपराध के अभियुक्त का लिखित या मौखिक कथन है जिसके कथनकर्ता     को  स्वयं द्वारा अपराध किया जाना स्वीकार किया जाता है। 2. मृत्युकालिक कथन किसी व्यक्ति का ऐसा कथन है जो मर गया है जिसमें उसने अपनी मृत्यु के कारण या उन परिस्थितियों पर प्रकाश डाला है जिसमें उसकी मृत्यु हुई है।
 3. संस्वीकृति कि ग्रह्यता के लिए कथनकर्ता की मृत्यु साबित करना आवश्यक नहीं है। 3. मृत्युकालिक कथन की ग्रह्यता के लिए कथनकर्ता की मृत्यु साबित करना आवश्यक है।
 4. संस्वीकृति कथनकर्ता को फंसाती है। 4. मृत्युकालिक कथन से दूसरा व्यक्ति फंसता है।
 5. संस्वीकृति यदि पुलिस अधिकारी को की गई है या पुलिस की अभिरक्षा में किसी व्यक्ति को की       गई है तो वह अभियुक्त के विरुद्ध ग्रह्य नहीं की जा सकती है। 5. मृत्युकालिक कथन यदि पुलिस अधिकारी को भी किया गया है तो वह मृतक की हत्या के लिए अभियोजित व्यक्ति के विरुद्ध साबित की जा सकती है।
 6. संस्वीकृति यदि स्वतंत्र तथा स्वैच्छिक है तो उस पर दोषसिद्धि आधारित हो सकती है। 6. असंपुष्ट मृत्युकालिक कथन को सामान्य रूप से दोष सिद्धि का आधार नहीं बनाया जाना चाहिए।

 

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