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प्राथमिक साक्ष्य तथा द्वितीयक साक्ष्य में अंतर | Difference Between Primary Evidence and Secondary Evidence in hindi

प्राथमिक साक्ष्य तथा द्वितीयक साक्ष्य में अंतर

प्राथमिक साक्ष्य तथा द्वितीयक साक्ष्य में अंतर एवं दोनों की परिभाषा

प्राथमिक साक्ष्य को कानून की नजर में सर्वोच्च मूल्य का प्रमाण माना जाता है। इसके विपरीत, द्वितीयक साक्ष्य गैर-प्राथमिक साक्ष्य हैं जिनका उपयोग तब किया जाता है जब प्राथमिक साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है।

प्राथमिक साक्ष्य किसे कहते हैं?

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 62 के अनुसार, “प्राथमिक साक्ष्य से न्यायालय के निरीक्षण के लिए पेश की गई दस्तावेज स्वयं अभिप्रेत है।

स्पष्टीकरण:- जहां कि कोई दस्तावेज कई मूल प्रतियों में निष्पादित है, वहां हर एक मूल प्रति उस दस्तावेज का प्राथमिक साक्ष्य है।

जहां कि कोई दस्तावेज प्रतिलेख में निष्पादित है और हर एक प्रतिलेख पक्षकारों में से केवल एक पक्षकार या कुछ पक्षकारों द्वारा निष्पादित किया गया है, वहां हर एक प्रतिलेख उन पक्षकारों के विरुद्ध, जिन्होंने उसका निष्पादन किया है, प्राथमिक साक्ष्य है।

स्पष्टीकरण :- जहां कि अनेक दस्तावेजें एक रूपात्मक प्रक्रिया द्वारा बनाई गई हैं जैसे कि मुद्रण शिला मुद्रण या फोटो चित्रण में होता है, वहां उनमें से हर एक शेष सबकी अंतर्वस्तु का प्राथमिक साक्ष्य है, किंतु जहां की वे सब किसी सामान्य मूल की प्रतियां है वहां वे मूल की अंतर्वस्तु का प्राथमिक साक्ष्य नहीं है।

दृष्टांत :- दर्शित किया जाता है कि एक ही समय एक ही मूल से मुद्रित अनेक प्लेकार्ड किसी व्यक्ति के कब्जे में रखे हैं। इन प्लेकार्ड में से कोई भी एक अन्य किसी भी अंतर्वस्तु का प्राथमिक साक्ष्य है, किंतु उनमें से कोई भी मूल की अंतर्वस्तु का प्राथमिक साथ नहीं है।

प्राथमिक साक्ष्य का अर्थ सर्वोत्तम या सर्वोच्च साक्ष्य से है।

प्राथमिक साक्ष्य के प्रकार :-

निम्नलिखित चार चीजें प्राथमिक साक्ष्य की परिभाषा में आती हैं –

  1. जिस दस्तावेज का साक्ष्य दिया जाता है ,वह स्वयं पेश किया जाए।
  2. जहां कोई दस्तावेज कई मूल प्रतियों में बनाया गया है वहां प्रत्येक प्रति प्राथमिक साक्ष्य हैं।
  3. जहां कोई दस्तावेज प्रतिलेख के रूप में बनाया गया हो और हर प्रतिलेख एक पक्षकार या कुछ पक्षकारों द्वारा निष्पादित किया गया है वहां हर प्रतिलेख पक्षकारों के विरुद्ध प्राथमिक साक्ष्य हैं।
  4. जहां दस्तावेजें एकात्मक प्रक्रिया द्वारा बनाई गई हैं जैसे मुद्रण ,शिला मुद्रण या फोटोचित्रण वहां हर एक शेष सबकी अंतर्वस्तु का प्राथमिक साक्ष्य है।

केस :- मलय कुमार गांगुली बनाम सुकुमार मुखर्जी (ए आई आर 2010) एस सी 1162।

इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वे दस्तावेज जो अन्यथा अग्राह्य हैं वह साक्ष्य के रूप में ग्रह्य नहीं किया जा सकता।

द्वितीयक साक्ष्य किसे कहते हैं?

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 63 में द्वितीयक साक्ष्य को परिभाषित किया गया है।

किसी भी दस्तावेज का अस्तित्व, दशा या अंतर्वस्तु या तो प्राथमिक साक्ष्य द्वारा साबित किया जा सकता है या उसके द्वितीयक साक्ष्य द्वारा। मूल दस्तावेज जब साक्ष्य में पेश किया जाता है तो वह प्राथमिक साक्ष्य होता है। मूल के स्थान पर जो साक्ष्य दिया जाता है उसे द्वितीयक साक्ष्य कहते हैं।

केस :- कल्यान सिंह बनाम श्रीमती छोटी और अन्य (ए.आई. आर. 1990) एस सी 396.

इस मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा संप्रेक्षित किया गया कि धारा 63 पांच प्रकार के द्वितीयक साक्ष्य का वर्णन करती है।

धारा 63 के अंतर्गत निम्नलिखित पांच प्रकार के द्वितीयक साक्ष्य होते हैं— द्वितीयक साक्ष्य से अभिप्रेत है और उसके अंतर्गत आते हैं–

  1. प्रमाणित प्रतियां एतस्मिन पश्चात अंतर्विष्ट उपबंधों के अधीन दी गई प्रमाणित प्रतियां। धारा 76 में प्रमाणित प्रतियों की परिभाषा एवं व्याख्या दी गई है। प्रमाणित प्रति दस्तावेज की शुद्ध प्रति है।
  2. मूल दस्तावेज :- मूल से ऐसी यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा, जो प्रक्रियाएं स्वयं ही प्राप्त की शुद्धता सुनिश्चित करती हैं, बनाई गई प्रतियां तथा ऐसी प्रतियों से तुलना की हुई प्रतिलिपियां,
  3. मूल से बनाई गई या तुलना की गई प्रतियां।
  4. उन पक्षकारों के विरुद्ध, जिन्होंने उन्हें निष्पादित नहीं किया है, दस्तावेजों के प्रति लेख (प्रतिरूप, मुसन्ना);
  5. किसी दस्तावेज की अंतर्वस्तु का उस व्यक्ति द्वारा, जिसने स्वयं उसे देखा है, दिया हुआ मौखिक वृतांत भी द्वितीयक साक्ष्य होगा।’देखा’ का अर्थ यहां मूल दस्तावेज के पढ़ने से है, केवल आंख से देखने से नहीं है।

दृष्टांत :- (क) किसी मूल का फोटोचित्र, यद्यपि दोनों की तुलना न की गई हो तथापि यदि वह साबित किया गया है कि फोटोचित्रित वस्तु मूल थी, उस मूल की अंतर्वस्तु का द्वितीयक साक्ष्य है।

(ख) न तो मूल से तुलनाकृत प्रति का मौखिक वृतांत और न मूल के किसी फोटोचित्र या यंत्रकृत प्रति का मौखिक वृतांत मूल का द्वितीयक साक्ष्य है।

विभिन्न प्रकार के द्वितीयक साक्ष्य निम्नलिखित हैं-

  • प्रमाणित प्रतियां हैं,
  • यांत्रिक प्रक्रिया द्वारा तैयार प्रतियां,
  • काउंटर फाइल
  • फोटोग्राफ,
  • जेरोक्स कॉपी
  • फोटोस्टेट कॉपी, कार्बन कॉपी,
  • टाइप की गई प्रतिलिपि
  • टेप रिकॉर्ड
  • मूल प्रति,
  • समकक्ष
  • मौखिक खातों से बनाई गई या तुलना की गई प्रतियां, पंजीकरण प्रति,
  • अप्रमाणित वसीयत,
  • आयु प्रमाण पत्र,
  • मतदाता सूची,
  • समाचार पत्र की रिपोर्ट.

प्राथमिक साक्ष्य तथा द्वितीयक साक्ष्य में अंतर

प्राथमिक साक्ष्य (Primary Evidence) द्वितीयक साक्ष्य(Secondary Evidence)
1. प्राथमिक साक्ष्य किसी दस्तावेज के अस्तित्व दशा और अंतर्वस्तु का सर्वोत्तम साक्ष्य होता है, जब मूल दस्तावेज न्यायालय के समक्ष उसके निरीक्षण के लिए पेश किया जाता है तो उसका अस्तित्व, दशा एवं अंतर्वस्तु साबित हो जाती है। 1. द्वितीयक साक्ष्य मूल दस्तावेज नहीं है बल्कि वे हैं जिनका उल्लेख धारा 63 में किया गया है जैसे प्रमाणित प्रतिलिपि। जिसे धारा 63 में दी गई किसी प्रक्रिया द्वारा निर्मित प्रति है।
2. सामान्यत: प्रत्येक तथ्य प्राथमिक साक्ष्य द्वारा ही साबित किया जाना चाहिए। 2. द्वितीयक साक्ष्य किसी तथ्य को साबित करने हेतु अपवादित परिस्थितियों में ही दिया जाना चाहिए।
3. प्राथमिक साक्ष्य प्रत्येक परिस्थिति में सर्वोत्तम साक्ष्य है। 3. द्वितीयक साक्ष्य सर्वोत्तम साक्ष्य नहीं है, बल्कि द्वितीयक या गौण प्रकृति का साक्ष्य है और धारा 63 में वर्णित अपवादात्मक परिस्थितियों में ग्राह्य है।
4. प्राथमिक साक्ष्य देने के पूर्व किसी को कोई नोटिस देने की जरूरत नहीं है। 4. द्वितीयक साक्ष्य देने के पूर्व उस व्यक्ति को नोटिस दिए जाने की अपेक्षा की जाती है। जिसके विरुद्ध द्वितीयक साक्ष्य दिया जाएगा।
5.प्राथमिक साक्ष्य का साक्षिक मूल्य सर्वोत्तम होता है। 5. द्वितीयक साक्ष्य का साक्षिक मूल्य सामान्यतया प्राथमिक साक्ष्य की अपेक्षा कम होता है।
6. प्राथमिक साक्ष्य देना सामान्य नियम है। 6. द्वितीयक साक्ष्य देना सामान्य नियम का अपवाद है। क्योंकि द्वितीयक साक्ष्य देने के पूर्व उसे देने वाले को यह दिखाना होगा कि धारा 65 के अनुसार उसे मूल की जगह द्वितीयक साक्ष्य देने का अधिकार है। यदि वह ऐसा नहीं करता तो दूसरा पक्षकार उस पर आपत्ति कर सकता है और पेश की गई कथित प्रति पर विचार नहीं किया जाएगा।

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