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सामाजिक अनुसंधान विधि क्या है ? | Social Research In Hindi

सामाजिक अनुसंधान विधि क्या है ? | Social Research In Hindi

सामाजिक अनुसंधान –

मनुष्य स्वभावत: एक जिज्ञाशील प्राणी है। अपनी जिज्ञाशील प्रकृति के कारण वह समाज व प्रकृति में गठित विभिन्न घटनाओं के संबंध में विविध प्रश्नों को खड़ा करता है, और स्वयं उन प्रश्नों के उत्तर ढूंढने का प्रयत्न भी करता है। सामाजिक अनुसंधान के वैज्ञानिक प्रक्रिया, वस्तुतः अनुसंधान का उद्देश्य वैज्ञानिक प्रक्रियाओं के प्रयोग द्वारा प्रश्नों के उत्तरों की खोज करता है| प्राकृतिक एवं जीव विज्ञानों की तरह  सामाजिक शोध भी वैज्ञानिक होता है क्योंकि इसमें वैज्ञानिक गतिविधियों की सहायता से निष्कर्षों पर पहुंचा जाता है।

सामाजिक अनुसंधान का समाजशास्त्र में एक विशेष योगदान है। सामाजिक अनुसंधान नए सिद्धांतों का निर्माण करता है।सामाजिक अनुसंधान एक ऐसी विधि है जिसमें परिकल्पना की उपयुक्तता की जांच अथवा परीक्षण किया जाता है। अतः सामाजिक शोध एक व्यवस्थित पद्धति है, जिसमें सामाजिक तथ्यों की वास्तविकता, उनके कार्य – करण  संबंधों एवं क्रियाओं के बारे में क्रमबद्ध स्थान प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।

शोध (अनुसंधान) का अर्थ :-

शोध अर्थात् कुछ नया तलाशने की दिशा में किया गया प्रयास।

रेडमैन एवं मौरी के अनुसार, नवीन ज्ञान को प्राप्त करने के लिए एक व्यवस्थित प्रयास ही अनुसंधान है।

स्माल के अनुसार, “सरल भाषा में अनुसंधान” अर्थात् शोध केवल वस्तुओं को खोज निकालने का एक प्रयास है।

सामाजिक अनुसंधान का अर्थ :-

सामाजिक अनुसंधान का अभिप्राय उस अनुसंधान से है, जिसमें तर्क प्रधान व क्रमबद्ध विधियां प्रयुक्त करके सामाजिक घटना से संबंधित नवीन ज्ञान प्राप्त किया जाता है।

सामाजिक अनुसंधान शब्द दो शब्दों सामाजिक + अनुसंधान से बना है। सामाजिक अनुसंधान का अर्थ है सामाजिक शोध जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है- सामाजिक जीवन के बारे म नवीन तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने से संबंधित है।

सामाजिक अनुसंधान में दो शब्द है- “सामाजिक+ अनुसंधान”

सामाजिक का अर्थ है- समाज से संबंधित, अर्थात् जो किसी एक ही व्यक्ति, निर्जीव पदार्थों तथा मनुष्य के अलावा किसी अन्य प्राणी से संबंधित न हो।

‘अनुसंधान’ शब्द का अर्थ है- अनुसंधान शब्द अंग्रेजी के ‘Research’ शब्द का हिंदी रूपांतर है इसे दो भागों Re+search को अलग किया जा सकता है और Re शब्द का अर्थ है पुनः तथा search शब्द का अर्थ है खोज करना अर्थात अनुसंधान का अर्थ बार-बार खोजने से है।

सामाजिक अनुसंधान की परिभाषा:-

जब कोई भी अनुसंधान सामाजिक जीवन, सामाजिक घटनाओं अथवा सामाजिक जटिलताओं से संबंधित होता है, तब उसे सामाजिक अनुसंधान कहते हैं। सामाजिक अनुसंधान में आनुभाविक तथा अनुभव सिद्ध तथ्यों का पता लगाया जाता है, निरीक्षण, परीक्षण, वर्गीकरण तथा सत्यापन के आधार पर सामाजिक घटनाओं के कारणों को ढूंढ निकाला जाता है।साथ ही मानव व्यवहार से संबंधित सामान्य नियमों का पता लगाया जाता है I सामाजिक अनुसंधान में सामाजिक यथार्थताओं की वैज्ञानिक विधि द्वारा खोज पर विशेष बल दिया जाता है।

कुछ विद्वानों ने सामाजिक अनुसंधान को निम्न प्रकार परिभाषित किया है। :-

सी.ए.मोसर के अनुसार, – “सामाजिक प्रघटनाओं  एवं समस्याओं के संबंध में नवीन ज्ञान प्राप्त करने के लिए की गई व्यवस्थित खोज ही सामाजिक अनुसंधान है।

श्री बोंगार्ड्स के अनुसार –“एक साथ रहने वाले लोगों के जीवन में क्रियाशील अंतर्निहित प्रक्रियाओं का अनुसंधान ही सामाजिक है।

श्री छिटने का कथन -“ समाजशास्त्रीय शोध में मानव- समूह के संबंधों का अध्ययन होता है।

यंग के अनुसार – ” सामाजिक तथ्य परस्पर-संबंधित प्रक्रियाओं की विधिवत् खोज और विश्लेषण सामाजिक शोध है।

जी.एम. फिशर के अनुसार, – किसी समस्या को हल करने अथवा एक परिकल्पना की परीक्षा करने अथवा नई घटना या नये संबंधों को खोजने के उद्देश्य से सामाजिक परिस्थितियों में उपयुक्त कार्य-विधि का प्रयोग करना ही सामाजिक शोध है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सामाजिक अनुसंधान वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सामाजिक घटनाओं और सामाजिक समस्याओं के कारण इनके अन्त: संबंधों का ज्ञान, उसमें निहित प्रक्रियाओं का अध्ययन, विश्लेषण और तदनुसार परिणामों का ज्ञान प्राप्त किया जाता है।

सामाजिक अनुसंधान का उद्देश्य:- 

सामाजिक अनुसंधान का संबंध सामाजिक वास्तविकता से है, इसका मुख्य सामाजिक वास्तविकता को क्रमबद्ध वह वस्तुनिष्ठ रूप से समझना है इसके अतिरिक्त इसका उद्देश्य ज्ञान प्राप्त करने के साथ-साथ ज्ञान को व्यवहारिक जीवन में पाई जाने वाली समस्याओं के समाधान के लिए प्रयुक्त करना भी है इस प्रकार, सामाजिक अनुसंधान के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं-

  1. समाधान :- सामाजिक अनुसंधान का पहला उद्देश्य विशिष्ट समस्याओं का समाधान करना है।
  2. ज्ञान की प्राप्ति :- सामाजिक वास्तविकता के संबंध में विशुद्ध ज्ञान प्राप्त करना व सिद्धांतों को विकसित तथा विस्तृत करना।
  3. पुनः परीक्षण :- प्रचलित एवं वर्तमान सिद्धांतों का पुनः परीक्षण करना।
  4. नवीन सिद्धांतों का निर्माण करना तथा प्राचीन तथ्यों की नवीन ढंग से विवेचना करना।
  5. सामाजिक अनुसंधान का अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्य अन्य अनुसंधान की भांति ज्ञान प्राप्त करना है जिसे सैद्धांतिक उद्देश्य कहा जाता है। ऐसे अनुसंधान में सामाजिक घटनाओं के संबंध में नवीन तथ्यों की खोज पुराने नियमों की जांच या पहले से उपलब्ध ज्ञान में वृद्धि की जाती है।
  6. व्यावहारिक उद्देश्य:- सामाजिक अनुसंधान का व्यवहारिक उद्देश्य भी है अनुसंधान से प्राप्त ज्ञान का प्रयोग घटनाओं की समस्याओं के समाधान के लिए किया जाता है।

सामाजिक अनुसंधान का महत्व एवं उपयोगिता:- 

सामाजिक अनुसंधान वर्तमान युग में दैनिक जीवन का एक अंग बन गया है। पिछड़े हुए देशों, अर्ध्द-विकासशील देशों या विकासशील देशों में सामाजिक नियोजन का इस दृष्टि से महत्व पाया जाता है कि उन्हें विकास के पथ पर आगे बढ़ना है, अपने यहां सुख समृद्धि लानी है, इसके लिए उन्हें समाज की संरचना को भली-भांति समझना होता है, ये सामाजिक अनुसंधान की सहायता से किया जा सकता है।

भारत जैसे विकासशील देश में सामाजिक अनुसंधान की विशेष उपयोगिता है क्योंकि उसे कल्याणकारी, धर्मनिरपेक्ष एवं समतावादी समाज की दिशा में आगे बढ़ने के लिए बहुत कुछ करना है, विकास योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू करना है।

सामाजिक अनुसंधान की उपयोगिता या महत्व को निम्न बिंदुओं द्वारा समझाया गया है-

1. अज्ञानता को दूर करने में सहायक:- 

अज्ञानता अनेक समस्याओं की जननी है। आज अनेक अंधविश्वासों, भ्रांत धारणाओं, संकुचित आस्थाओं स्वार्थों, सामाजिक क्रियाओं की सही जानकारी के अभाव एवं अशिक्षा के कारण भारत अनेक समस्याओं से ग्रसित है इन सब से छुटकारा प्राप्त किया जा सकता है, जब सामाजिक अनुसंधान के द्वारा अज्ञानता को दूर किया जाए।

2. नवीन ज्ञान की प्राप्ति में सहायक:-

मानव सभ्यता का विकास ज्ञान की प्राप्ति पर ही बहुत कुछ आधारित है। यदि यह कहा जाए कि सभ्यता का विकास एवं मानव की सुख सुविधाओं में वृद्धि का प्रमुख कारण नवीन ज्ञान की प्राप्ति ही रहा है तो इसमें किसी प्रकार की अतिशयोक्ति नहीं होगी।

हैरिंग ने ठीक ही कहा है कि- “अनुसंधान का प्रत्यक्ष प्रकार्य ज्ञान के मौजूदा भंडार में नवीन ज्ञान को जोड़ना है।

3. सामाजिक समस्याओं को हल करने में सहायक:-

वर्तमान मानव जीवन समस्याओं से परिपूर्ण है। सामाजिक अनुसंधान सामाजिक समस्याओं के समाधान हेतु सहायता प्रदान कर सकता है।

4. सामाजिक नियंत्रण में सहायक:-

सामाजिक अनुसंधान द्वारा प्राप्त ज्ञान सामाजिक नियंत्रण में भी सहायता प्रदान करते हैं सामाजिक अनुसंधान के द्वारा ही मानवीय संबंधों को व्यवस्थित बनाने वाली प्रक्रियाओं का पता लगाया जा सकता है और अनुसंधान व विघटन की स्थिति से छुटकारा प्राप्त किया जा सकता है।

5.कल्याणकारी कार्यों में सहायक:-

सामाजिक अनुसंधान समाज सुधार संबंधी प्रयास को वैज्ञानिक आधार देता है। सामाजिक अनुसंधान से विभिन्न सामाजिक कुरीतियों को समझकर उन्हें दूर किया जा सकता है। भारत एक कल्याणकारी राज्य है। यहां पिछड़े वर्गों, जनजातीय लोगों, श्रमिकों, बंधुआ मजदूरों आदि की अनेक समस्याएं हैं। इन्हें आर्थिक दृष्टि से रोजगार के अवसर प्रदान कर समाज की मुख्यधारा में लाना है।

6. प्रशासन एवं समाज सुधार में उपयोगिता:-

प्रशासनिक सेवा में उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों के लिए सामाजिक अनुसंधान द्वारा प्राप्त ज्ञान की विशेष उपयोगिता है। वे अपनी भूमिका को विभिन्न परिस्थितियों में उसी समय उत्तमता के साथ निभा सकते हैं। जब उन्हें इस बारे में सही जानकारी हो। यह जानकारी सामाजिक अनुसंधान ही प्राप्त प्रदान करता है।

7. समाज के वैज्ञानिक अध्ययन में सहायक:

सामाजिक अनुसंधान समाज सुधार संबंधी प्रयास को वैज्ञानिक आधार देता है। सामाजिक अनुसंधान समाज के विभिन्न पक्षों में व्याप्त जटिलताओं का वैज्ञानिक ज्ञान उपलब्ध कराने में सहायता प्रदान करता है।

8. भविष्यवाणी करने में सहायक:-

सामाजिक अनुसंधान द्वारा प्राप्त ज्ञान की इस रूप में विशेष उपयोगिता है कि इसके आधार पर वर्तमान को समझकर भविष्य के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है तथा भविष्य की सामाजिक घटनाओं के बारे में बताया जा सकता है।

9. सामाजिक विज्ञानों के विकास में योग:-

सामाजिक अनुसंधान की सहायता से सामाजिक घटनाओं के संबंध में अधिक वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त होती है।

10. सैद्धांतिक महत्व:-

सामाजिक अनुसंधान वास्तव में समाज-विज्ञानों का आधार है। आज विभिन्न विज्ञानों के लिए, अधिकाधिक प्रमाणिक सामग्री सामाजिक अनुसंधान के द्वारा ही प्राप्त होती है।

सामाजिक अनुसंधान की विशेषताएं एवं प्रकृति:-

सामाजिक अनुसंधान की विशेषताएं निम्न प्रकार हैं-

सामाजिक अनुसंधान की विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर इसके निम्नलिखित लक्षण है या विशेषताएं स्वयं ही स्पष्ट है जो इसकी प्रकृति पर डालते हैं-

  1. सामाजिक अनुसंधान का संबंध वैज्ञानिक विधियों के प्रयोग द्वारा सामाजिक प्रघटनाओं के सुक्ष्म रूप के अध्ययन से है।
  2. सामाजिक अनुसंधान अपने को विभिन्न वैज्ञानिक उपकरणों, प्रविधियों एवं पद्धतियों के उपयोग तक ही सीमित नहीं रखता बल्कि नवीन प्रविधियों के विकास पर भी जोर देता है।
  3. सामाजिक अनुसंधान में विभिन्न सामाजिक घटनाओं तथा समस्याओं का वैज्ञानिक या व्यवस्थित अध्ययन ही नहीं किया जाता बल्कि नवीन ज्ञान का सृजन भी किया जाता है।
  4. सामाजिक अनुसंधान विभिन्न सामाजिक तथ्यों या घटनाओं के बीच पाए जाने वाले कार्य-करण संबंधों को खोज निकालता है।
  5. सामाजिक अनुसंधान में जहां नए तथ्यों की खोज की जाती है वही पुराने तथ्यों या पूर्व -स्थापित सिद्धांतों की पुर्नपरीक्षा एवं सत्यापन का कार्य भी संपन्न किया जाता है।
  6. सामाजिक अनुसंधान एक ऐसी विधि है जिसमें प्रकल्पना की उपयुक्तता की जांच अथवा परीक्षण किया जाता है।
  7. मूलतः सामाजिक अनुसंधान अध्ययन से प्राप्त निष्कर्षों को सिद्धांतों के रूप में प्रयुक्त करने का एक वैज्ञानिक तरीका है अर्थात् इसके अंतर्गत नए सिद्धांतों का निर्माण किया जाता है।

सामाजिक शोध के प्रकार:-

सामाजिक शोध विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किए जाते हैं। यथा -जिज्ञासा शांत करने के लिए, उपकल्पनाओं के निर्माण व सत्यापन के लिए, तो किसी की समस्या के निराकरण हेतु विकल्पों की जानकारी प्राप्त करना। सामाजिक शोध के कई प्रकार सामने हैं जो इस प्रकार है-

  1. अन्वेषणात्मक सामाजिक शोध
  2. वर्णनात्मक सामाजिक शोध
  3. परीक्षणात्मक सामाजिक शोध
  4. विशुद्ध सामाजिक शोध
  5. व्यवहारिक सामाजिक शोध
  6. क्रियात्मक सामाजिक शोध
  7. मूल्यांकनात्मक सामाजिक शोध

1. अन्वेषणात्मक सामाजिक शोध :

जब शोधकर्ता किसी सामाजिक घटना के पीछे छिपे कारणों को खोजना चाहता है, तो इस परिस्थिति में जिस समाजिक शोध का सहारा लिया जाता है उसे अन्वेषणात्मक शोध कहते हैं।

2. वर्णनात्मक सामाजिक शोध :-

वर्णनात्मक सामाजिक शोध एक ऐसा शोध है जिसका उद्देश्य समस्या से संबंधित वास्तविक तथ्यों को एकत्रित कर उनके आधार पर विस्तृत विवरण प्रस्तुत करना है।

  • इसमें समस्या के विकृत पक्षों पर प्रकाश डाला जाता है
  • इसमें विषय के चयन में सावधानी बरती जाती है।

3. परीक्षणात्मक सामाजिक अनुसंधान :-

परीक्षणात्मक सामाजिक शोध द्वारा यह जानने का प्रयत्न किया जाता है कि नवीन परिस्थिति अथवा परिवर्तन का समाज के विभिन्न समूहों, सभाओं, समुदायों, संस्थाओं अथवा संरचनाओं पर ‘क्या’ एवं ‘कितना’ प्रभाव पड़ता है।

4. विशुद्ध सामाजिक अनुसंधान :- इसमें निम्न शामिल है-

  • नवीन ज्ञान की प्राप्ति।
  • नवीन अवधारणा का प्रतिपादन उपलब्ध अनुसंधान विधियों की जांच।
  • कार्य-करण संबंध बताना।
  • पूर्व ज्ञान का पुनः परीक्षण।

5. व्यावहारिक अनुसंधान :-

व्यवहारिक शोध में स्वीकृत सिद्धांतों के आधार पर किसी घटना/ समस्या का इस प्रकार से अध्ययन किया जाता है कि उसे एक व्यवहारिक समाधान के रूप में प्रस्तुत किया जा सके।

6. क्रियात्मक शोध :-

क्रियात्मक शोध की विशेषताएं:-

  • यह शोध किसी अत्यंत आवश्यक व्यवहारिक आवश्यकता के परिणामस्वरूप आरंभ होता है।
  • इसमें एक विकसित किया जा सकने वाला शोध स्वरूप उपयोग में लिया जाता है।
  • इसमें प्रमुख निर्देशक सिद्धांत मानव अंतः क्रिया का होता है।

3.मूल्यांकनात्मक अनुसंधान :-

मूल्यांकनात्मक शोध में समाज में उपस्थित गुणात्मक प्रकृति के तथ्यों तथा प्रवृत्तियों के अध्ययन और उनके विश्लेषण के साथ ही साथ उनकी उपयोगिता को भी मूल्यांकित किया जाता है।

सामाजिक अनुसंधान पद्धतियां (social research methodologtes) :-

सामाजिक अनुसंधान एक व्यवस्थित योजना के बाद सामाजिक वैज्ञानिकों द्वारा किया गया शोध है सामाजिक अनुसंधान पद्धतियों को मात्रात्मक (quantitative) और गुणात्मक (qualitative) के रूप में वर्गीकृत किया गया है:-

1. मात्रात्मक डिजाइन (Quantitative Design) :-

मात्रात्मक डिजाइन मात्रात्मक साक्ष्य के माध्यम से सामाजिक घटनाओं तक पहुंचते हैं और अवसर वैध और विश्वसनीय सामान्य दावों को बनाने के लिए कई मामलों या एक प्रयोग में जानबूझकर डिजाइन किए गए उपचार के सांख्यिकीय विश्लेषण पर भरोसा करते हैं।

2. गुणात्मक डिजाइन (Qualitative Design) :-

गुणात्मक डिजाइन प्रत्यक्ष अवलोकन प्रतिभागियों के साथ संचार या, ग्रंथों के विश्लेषण के माध्यम से सामाजिक घटनाओं की समझ पर जोर देते हैं, और सामान्यता पर प्रासंगिक व्यक्तिपरक सटीकता पर जोर दे सकते हैं।

3. सर्वेक्षण (Surveys) :-

एक शोध पद्धति के रूप में, एक सर्वेक्षण उन विषयों से डाटा एकत्र करता है जो व्यवहार और राय के बारे में प्रश्नों की एक श्रंखला का जवाब देते हैं, अवसर प्रश्नावली या साक्षात्कार के रूप में सर्वेक्षण सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल होने वाली अनुसंधान विधि है।

4. साक्षात्कार (Interview) :-

एक  साक्षात्कार शोधकर्ता और विषय के बीच आमने-सामने की बातचीत है और यह किसी विषय पर सर्वेक्षण करने का एक तरीका है।

5. प्रयोगात्मक (Experiments) :-

एक चर (variable) से दूसरे चर में प्रयुक्त परिवर्तन का निरीक्षण करने के लिए शोधकर्ताओं द्वारा एक प्रयोगात्मक शोध किया जाता है। प्रयोग एक सिद्धांत है जिसे सावधानी पूर्वक अवलोकन और विश्लेषण द्वारा सिद्ध या अस्वीकृत करने की आवश्यकता है।

6. अवलोकन (Observation) :-

अवलोकन संबंधी शोध में एक शोधकर्ता से सभी प्रतिभागियों के दैनिक जीवन में उनकी दिनचर्या उनके निर्णय लेने के कौशल, और उनकी पसंद और नापसंद को समझने के लिए शामिल होने की उम्मीद की जाती है।

सामाजिक अनुसंधान में उपधारणा(Concept in Social Research) :-

किसी भी सामाजिक अनुसंधान में अवधारणा का अपना अलग महत्व होता है। शोधकर्ता तथ्यों के अवलोकन तथा संकलन कर उन तथ्यों को शब्दों के द्वारा अभिव्यक्त करना चाहता है। तथ्यों की वैज्ञानिक अभिव्यक्ति के लिए अवधारणाओं की मदद ली जाती है। यह अवधारणाएं सोचने की एक अमूर्त प्रक्रिया है जिसके द्वारा घटनाओं व तथ्यों का वर्णन हो पाता है।

गुडे तथा हाट ने “अवधारणा” को एक तार्किक मानवीय सोच की प्रक्रिया बताया है जो हमारे सोचने, समझने की नैसर्गिक प्रक्रिया है।

सामाजिक अनुसंधान में उपकल्पना (Hypothesis in Social Research) :-

किसी भी शोध व अनुसंधान को एक सही निर्देश व् आधार प्रदान करने के लिए एक सैद्धांतिक आधार उसका प्रारूप होना आवश्यक है। उपकल्पना एक ऐसी स्थिति है जो शोधकर्ता को खोज करने से पूर्व कुछ अनुमान या कुछ वैज्ञानिक सोच को आधार मानकर काम करने के लिए प्रेरित करता है। कुछ कार्य उद्देश्य को ध्यान में रखकर किए जाते हैं। संभव है हमारा अनुमान सच हो या फिर यह गलत भी हो सकता है इस वैज्ञानिक पद्धति का सदुपयोग तब तक नहीं हो सकता जब तक हमें अपने अध्ययन विषय के संबंध में कुछ न कुछ आरंभिक ज्ञान एवं सामान्य अनुभव न हो। यह सामान्य अनुमान शोधकर्ता के लिए एक मार्ग -निर्देशक बन जाता है।

उदाहरणार्थ यदि हमारा अध्ययन- विषय ‘बाल अपराध’ है तो हम अपनी आरंभिक ज्ञान व सामान्य अनुभव के आधार के आधार पर एक कामचलाऊ, अनुमान यह कर सकते हैं कि निर्धनता व टूटे परिवार ही बाल अपराध को जन्म देने का प्रभावशाली कारक है।

पी.वी. यंग के अनुसार,- कामचलाऊ प्रकल्पना का निर्माण वैज्ञानिक पद्धति का प्रथम चरण है।

 अतः हम कह सकते हैं कि ‘उपकल्पना’ का निर्माण वैज्ञानिक अनुसंधान का अंतिम लक्ष्य नहीं है।

सामाजिक अनुसंधान की समस्याऐं :-

प्रत्येक सामाजिक विज्ञान की अनुसंधान संबंधी अपनी-अपनी कुछ विशिष्ट समस्याएं होती हैं और यह बात समाजशास्त्रीय अनुसंधान के लिए भी सही है। इन समस्याओं के कारण समाजशास्त्र की वैज्ञानिक प्रकृति के संबंध में आपत्ति उठाई जाती है| यह समस्याएं इस प्रकार हैं-

1. अवधारणाओं में स्पष्टता का अभाव :-

प्रत्येक विज्ञान की अपनी कुछ विशिष्ट अवधारणाएं होती हैं जिनका उस विषय के सभी विद्वान समान अर्थ में प्रयोग करते हैं। यह अवधारणाएं सामाजिक अनुसंधान को आगे बढ़ाने में योग देती हैं। समाजशास्त्र में जिन अवधारणाओं का प्रयोग किया जाता है, उनके अर्थ के संबंध में विद्वानों में मतैक्यता का अभाव है। यदि किसी अवधारणा का सभी वैज्ञानिकों द्वारा समान अर्थ में प्रयोग नहीं किया जाएगा तो उससे सामाजिक अनुसंधान के मार्ग में बाधा ही आएगी। ऐसी स्थिति में अनुसंधान के परिणाम स्वरूप जो निष्कर्ष निकाले जाएंगे, उनमें वैज्ञानिक का अभाव होगा।

2. सामाजिक घटनाओं की जटिल प्रकृति :-

जटिल प्रकृति के कारण सामाजिक घटनाओं का एक और आसानी से अध्ययन नहीं किया जा सकता और दूसरी ओर ऐसे अध्ययन से प्राप्त निष्कर्षों को प्रामाणिक नहीं कहा जा सकता। इसका कारण यह है कि किसी एक सामाजिक घटना के लिए अनेक सामाजिक घटना के लिए, अनेक कारक उत्तरदायी होते हैं। ऐसी स्थिति में समाजिक अनुसंधान के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा आती है।

3. वस्तुनिष्ठता प्राप्त करने में कठिनाई :-

सामाजिक अनुसंधान में वस्तुनिष्ठता का विशेष महत्व है। इसके अभाव में सामाजिक अनुसंधान के आधार पर प्राप्त किसी भी निष्कर्ष को वैज्ञानिक निष्कर्ष नहीं कहा जा सकता। यहां अनुसंधानकर्ता इस समाज सामाजिक जीवन या सामाजिक घटना से संबंधित होता है।

4. सुनिश्चित माफ की समस्या :

सामाजिक अनुसंधान में सामाजिक संबंधों, व्यवहारों एवं माननीय प्राकृतिक का प्रमुखता अध्ययन किया जाता है। 

इन सब सब को मापना संभव नहीं है क्योंकि यह गुणात्मक है न कि परीक्षणात्मक।  अनुसंधान या मानव प्रकृति व्यवहार को मापना, तौलना संभव नहीं है इसका कारण यह है कि सामाजिक घटनाओं को मापने का कोई पैमाना विकसित नहीं हुआ है।

5. प्रयोगात्मक अनुसंधान का अभाव :-

अभी सामाजिक विज्ञानों में प्रयोगात्मक विधियों का प्रयोग नहीं के बराबर पाया जाता है। इसका कारण यह है कि इन विधियों के प्रयोग के लिए सामाजिक विज्ञान में अभी समुचित दशाओं का अभाव पाया जाता है। इस कारण कार्य -कारण संबंधों की खोज में कठिनाई आती है। 

6. प्रमाणीकरण की समस्या :-

सामाजिक अनुसंधान के आधार पर प्राप्त किए गए निष्कर्षों की विश्वसनीयता का पता लगाना वैज्ञानिक दृष्टि से अत्यंत आवश्यक है। लेकिन यह कार्य सामाजिक विज्ञान में बहुत कठिन है क्योंकि यहां जिन घटनाओं का अध्ययन किया जाता है, उनकी पुनरावृत्ति करना संभव नहीं है। निष्कर्षों की विश्वसनीयता का परीक्षण सामाजिक अनुसंधान की एक प्रमुख समस्या है। मूलतः सामाजिक अनुसंधान अध्ययन से प्राप्त निष्कर्षों को सिद्धांतों के रूप में प्रयुक्त करने का एक वैज्ञानिक तरीका है अर्थात् इसके अंतर्गत नए सिद्धांतों का निर्माण किया जाता है।

निष्कर्ष या (सारांश) :-

सामाजिक शोध मानव के सामाजिक जीवन, सामाजिक घटनाओं एवं सामाजिक जटिलताओं के संबंध में अन्वेषण का एक वैज्ञानिक प्रयास है। जिसका उद्देश्य नवीन ज्ञान प्राप्त करना अथवा विद्यमान ज्ञान का परिष्कार करना है। सामाजिक शोध में वैज्ञानिक एवं तार्किक पद्धतियों की सहायता से सामाजिक व्यवहार का विश्लेषण करने के पश्चात् सिद्धांतों का निर्माण करने का प्रयास किया जाता है।

आधुनिक युग में सामाजिक शोध जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है। इसका प्रयोग समाज कल्याण की नीतियों के मूल्यांकन एवं उन्हें प्रभावशाली बनाने हेतु भी किया जाने लगा है। सामाजिक शोध में तटस्थता अर्थात् वस्तुनिष्ठता बनाए रखना एक प्रमुख समस्या है क्योंकि शोधकर्ता के मूल्य, सूची एवं उन्मुखीकरण निरंतर इसे प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। इतना ही नहीं सामाजिक घटनाओं की गुणात्मक प्रकृति एवं इनके लिए बहुकारकों का उत्तरदायी होना भी शोध में समस्या मूलक माना जाता है।

References :-

  • पुस्तक ; अनुसंधान विधियां – एम.के. सोलंकी
  • अनुसंधान संदर्शिका – प्रो. एस. पी. गुप्ता
  • https://www.nayadost.in
  • https://www.kailasheducation.com
  • https://www.scotbuzz.com
  • https://www.cscuniversity.ac.in
  • https://www.quentionpro.com

सामाजिक अनुसंधान पर यह आर्टिकल Neha Vishwakarma के द्वारा लिखा गया है जो की LL.M. 2nd
सेमेस्टर डॉ. हरी सिंह गौर सेंट्रल यूनिवर्सिटी सागर की छात्रा है I