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मानव अधिकार का अर्थ , परिभाषा एवम् प्रकृति | Human rights meaning,definition and nature in hindi

मानव अधिकार अर्थ,परिभाषा एवम् प्रकृति | manav adhikar ka arth

प्रस्तावना (Introduction) :-

  • मानव अधिकारों से तात्पर्य उन सभी अधिकारों से है जो व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता एवं प्रतिष्ठा से जुड़े हुए हैं। यह अधिकार भारतीय संविधान के भाग -3 में मूलभूत अधिकारों के नाम से वर्णित किए गए हैं और न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय है।
  • ऐसे अधिकार जो अंतरराष्ट्रीय समझौते के फलस्वरुप संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा स्वीकार किए गए और देश के न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय है, को मानव अधिकार माना जाता है।
  • अभिरक्षा में यातनापूर्ण और अपमानजनक व्यवहार ना होने संबंधी अधिकार और महिलाओं के साथ प्रतिष्ठापूर्ण व्यवहार का अधिकार शामिल है।
  • मानव अधिकार सबको समान रूप से प्राप्त है। इन अधिकारों का हनन जाति ,धर्म, भाषा, लिंग के आधार पर नहीं किया जा सकता है। ये सभी अधिकार जन्मजात अधिकार है।

मानव अधिकार का अर्थ क्या है ?

मानव अधिकार शब्द हिंदी का युग्म शब्द है। जो  दो शब्दों मानव + अधिकार से मिलकर बना है। मानव अधिकार शब्द को पूर्णता समझने के पूर्व अधिकार शब्द को समझना होगा।

हैराल्ड लास्की के अनुसार,”अधिकार मानव जीवन की ऐसी परिस्थितियां हैं जिसके बगैर सामान्यतः कोई व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं कर सकता हैं।”

बोंसके के शब्दों में,”अधिकार वह मांग है जिसे समाज स्वीकार करता है और राज्य लागू करता है।”

अधिकार वे सुविधाएं हैं जो व्यक्ति को जीने के लिए उसके व्यक्तित्व को पल्लवित करने के लिए आवश्यक है। मानव अधिकार का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है, इसकी परिधि के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के नागरिक, राजनीतिक, सामाजिक ,आर्थिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों का समावेश है, अपनी व्यापक परिधि के कारण मानव अधिकार शब्द का प्रयोग भी अत्यंत व्यापक विचार- विमर्श का विषय बन गया है।

मानव अधिकार की परिभाषाएं क्या है?

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम ,1993 की धारा 2(d) मानव अधिकार से प्राण, स्वतंत्रता, समानता और व्यक्ति की गरिमा से संबंधित ऐसे अधिकार अभिप्रेत है जो संविधान द्वारा प्रत्याभूत किए गए हैं या अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदाओं में सनिष्ठ हैं और भारत में न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय है।

डी.डी. बसु के अनुसार,”मानव अधिकार वे अधिकार हैं जिन्हें प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के मानव परिवार के सदस्य होने के कारण राज्य तथा अन्य लोक सेवक के विरुद्ध प्राप्त होने चाहिए।”

मेरी रॉबिंसन के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को उसकी मौलिक स्वतंत्रताओं की सुरक्षा एवं उसे प्राप्त करने के व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्राप्त अधिकार मानव अधिकार कहलाते हैं।

केस:- Francis,carali mullin v. The administrator union territory of Delhi

इस बाद में कहा गया कि मानव जीवन का अर्थ है-  गौरवपूर्ण जीवन।

केस:- एम. नागराज बनाम भारत संघ (2007)

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी संविधान के बिना भी व्यक्तियों को आधारभूत मानव अधिकार केवल इस कारण से प्राप्त हैं कि वह मनुष्य वर्ग के सदस्य हैं।

मानव अधिकार के गुण(Characteristic of human right):-

1. निहित – 

मानव अधिकार अंतर्निहित है क्योंकि वे किसी व्यक्ति या प्राधिकरण द्वारा प्रदान नहीं किए जाते हैं मानव अधिकारों को खरीदना, अर्जित या विरासत में प्राप्त नहीं करना है। वे लोगों से केवल इसलिए संबंधित है क्योंकि वे मानव है। मानव अधिकार प्रत्येक व्यक्ति के लिए अंतर्निहित है।

2. मौलिक –

  मानव अधिकार मौलिक अधिकार हैं क्योंकि इनके बिना मनुष्य का जीवन और प्रतिष्ठा निरर्थक होगी।

3. अयोग्य – 

मानव अधिकारों को छीना नहीं जा सकता है किसी को भी किसी अन्य व्यक्ति को किसी भी कारण से वंचित करने का अधिकार नहीं है।

(अ) उन्हें एक स्वतंत्र व्यक्ति से अधिकार पूर्वक नहीं लिया जा सकता।

(ब) इन्हें दूर नहीं किया जा सकता है न ही जप्त किया जा सकता है।

4. अन्योन्याश्रित – 

मानव अधिकार अन्योन्याश्रित हैं क्योंकि एक की पूर्ति या अभ्यास दूसरे की प्राप्ति के बिना नहीं हो सकता है।

मानव अधिकार प्राकृतिक और मौलिक अधिकार होते हैं।

केस:- मोतीलाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

इस मामले में कहा गया कि मौलिक अधिकार  प्राकृतिक अधिकार और मानव अधिकार भी होते हैं।

5. अप्रतिदेय अधिकार – 

मानव अधिकार को हमसे कोई नहीं छीन सकता है।

केस:-  केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य,1973

इस वाद में कहा गया कि मौलिक अधिकार प्राकृतिक और अप्रतिदेय होते हैं।

  • मानव अधिकार उच्चतर अधिकार होते हैं इनका विभाजन नहीं किया जा सकता है।

केस:-  मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1979)

इस मामले में मूल अधिकारों की प्रकृति एवं महत्व के बारे में न्यायाधिपति श्री भगवती ने कहा है कि मूल अधिकार इस देश की जनता द्वारा वैदिक काल से संजोए गए आधारभूत मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

भारत में न्यायपालिका और मानव अधिकारों के विकास की भूमिका :-

भारत में मानव अधिकारों का विकास विभिन्न न्यायिक घोषणाओं के माध्यम से संभव हुआ।

केस :- पी. रथीनम बनाम भारत संघ 3 एस. सी.सी. 394 (1994)

इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसी व्यक्ति को मानवीय सम्मान के साथ जीने का अधिकार और जीवन की अवधारणा में संबंधित व्यक्ति की परंपरा, संस्कृति और विरासत शामिल है।

केस :- ओल्गा टेलिस बनाम बाम्बे नगर निगम (ए आई आर 1986 एस.सी.180)

इस मामले में अदालत के सामने एक सवाल था कि आजीविका के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के तहत कवर किया जाएगा इसलिए अदालत ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39(A) और अनुच्छेद 41 में राज्य को आजीविका के अधिकार और भारत के नागरिकों के लिए काम करने का अधिकार की सुरक्षा सुनिश्चित करता हैं।

केस:- चमेली सिंह बनाम यूपी राज्य (ए.आई. आर.1996  एस. सी.101)

इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय का अधिकार दिया है। न्यायालय ने कहा कि आश्रय का अधिकार जीवन के अधिकार के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है और इसे मौलिक अधिकार माना जाना चाहिए।

केस:- उपभोक्ता शिक्षा और अनुसंधान केंद्र और भारतीय बनाम भारत संघ (ए आई आर 1995 एस सी 922)

इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि मानवीय गरिमा, सामाजिक सुरक्षा, आराम करने और अवकाश का अधिकार कर्मकार का मूल्यवान अधिकार है। इन्हें भारतीय संविधान के प्रस्तावना और अनुच्छेद 38, 39 में मानव अधिकारों के चार्टर द्वारा आश्वासन दिया गया है।

केस:- परमानंद कटारा बनाम भारत संघ (1989  4Scc286)

इस वाद में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि किसी दुर्घटना के मामले में इलाज के लिए लाए गए हर घायल व्यक्ति को मूल मानव अधिकार को उसके बाद जीवन को संरक्षित करने के लिए तत्काल चिकित्सा सहायता दी जानी चाहिए। आपराधिक कानून प्रक्रियाओं की अनुमति दी जा सकती है अदालत ने माना कि जीवन का संरक्षण सर्वोपरि है।

केस:- पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लीवेर्टी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (AIR1997 SC568)

इस वाद में कहा गया है कि किसी व्यक्ति को एकांतता का अधिकार है।

केस:- M/S zee telifilms Ltd v. Union of India AIR 2005 SC 2677at pp 2714-15.

इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने देखा कि सभी क्षेत्रों में विकासशील देशों में विकास का अधिकार भी मानवीय अधिकार है और जैसे कि मानव की क्षमताओं में वृद्धि के साथ प्रत्यक्ष सांठगांठ भी है।

संदर्भ :-

  1. मानव अधिकार का अर्थ क्या है ?

    मानव अधिकारों से तात्पर्य उन सभी अधिकारों से है जो व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता एवं प्रतिष्ठा से जुड़े हुए हैं।

  2. मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम में मानव अधिकार की क्या परिभाषा दी गयी है ?

    मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम ,1993 की धारा 2(d) के अनुसार -मानव अधिकार से प्राण, स्वतंत्रता, समानता और व्यक्ति की गरिमा से संबंधित ऐसे अधिकार अभिप्रेत है जो संविधान द्वारा प्रत्याभूत किए गए हैं या अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदाओं में सनिष्ठ हैं और भारत में न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय है।

  3. मानव अधिकार की परिभाषा किस धारा में दी गयी है ?

    मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम ,1993 की धारा 2(d) में मानव अधिकार की परिभाषा दी गयी है |

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